हैदराबाद(विश्व परिवार)। जिन्दगी की इससे अच्छी परिभाषा और कौन सी हो सकती है-? बिना हक के लेने का जब मन करे तो समझना जिन्दगी महाभारत है,, और जब अपने हक का भी छोड़ देने का मन करे तो समझना जिन्दगी रामायण है। जिन्दगी को उलझाओ मत – उलझनों और व्यसनों में,, बल्कि सरलता, सहजता और विनम्रता से जीओ तो जीने का आनन्द ही कुछ ओर होगा।
जिन्दगी में हर प्रकार के नशे से दूर रहना, फिर वो गुटका हो, पान मसाला हो, बीड़ी-सिगरेट-तम्बाकू हो, शराब हो, पाऊच-हुक्का-ड्रग्स आदि हो। ये सभी नशे आदमी की दिशा और दशा को बिगाड़ने वाले ही हैं। नशा नाश करने वाला है। जिन्दगी में एक छोटा नशा भी आ गया तो तमाम नशे उसके पीछे पीछे चले आते हैं और फिर नशीले आदमी के गुर्दे, कलेजा, फेफड़े, आमाशय, आदि धीरे-धीरे शरीर को भीतर से खोखला करने लग जाते हैं और वह ऐसे असाध्य रोगों का शिकार हो जाता है कि फिर वह ना तो कार में बैठने के लायक रह जाता है,, ना सरकार (घर मुखिया) चलाने लायक बचता है।
आदमी एक बार नशा करता है,, फिर नशा आदमी के पूरे जीवन का सत्यानाश कर देता है…!!!।