Home जबलपुर श्रद्धा, बुद्धि से परे है लेकिन उसकी विरोधनी नहीं :- मुनि श्री...

श्रद्धा, बुद्धि से परे है लेकिन उसकी विरोधनी नहीं :- मुनि श्री शीतल सागर जी महाराज

182
0

जबलपुर(विश्व परिवार)। संगम कॉलोनी जबलपुर में वर्षायोग कर रहे निर्यापक मुनि प्रसाद सागर जी के संगस्थ साहित्य मनीषी साधक मुनि श्री 108 शीतल सागर जी ने भक्त और भगवान के संबंध को समझाते हुए कहा प्राचीन मंदिरों में दरवाजे बहुत छोटे बनाये जाते थे, उसका कारण है कि त्रिलोकीनाथ के दरबार में झुककर जाना जरूरी है क्योंकि अहंकार को गलाये बिना भगवद्भक्ति का आनंद आ ही नहीं सकता बुद्धि नहीं, हृदय ही वास्तव में भक्ति भावना तथा समर्पण का केन्द्र है। श्रद्धा की अभिव्यक्ति आचरण के माध्यम से ही होती है।
और श्रद्धा जब गहराती है तब वही समर्पण बन जाती है।
किसी पवित्र उद्देश्य की पूर्ति के लिये अपने आपको श्रद्धेय के प्रति सौंप देना ही समर्पण है। उदहारण देते हुए मुनि श्री ने बताया सीता, अंजना और मैना-सुन्दरी जैसी महान सतियों का जीवन नारी जगत् के लिये आदर्श है। उनके जीवन में कितनी ही विषम परिस्थितियाँ आई किन्तु उन्होंने धीरज और साहस को नहीं छोड़ा। जंगलों में भटकते हुए भी धर्म तथा कर्मफल पर अटूट आस्था रखी अतः श्वांस-श्वांस में यदि भक्ति और विश्वास जम जाये तो भवसागर से पार होने में देर नहीं ,श्रद्धा से अन्धकार में भी जो प्रतीत हो सकता है वह प्रकाश में संभव नहीं, प्रकाश में सुविधा मिल सकती है पर विश्वास नहीं एवं श्रद्धा, आस्था और अनुराग से अभिषिक्त मन में ही भक्ति का जन्म होता है।श्रद्धा का सेतु एक ऐसा सेतु है जो श्रद्धेय और श्रद्धालु की दूरी को पाट देता है।
मांगने से नहीं किन्तु अधिकार श्रद्धा से मिलते हैं। इसलिए हम सभी को नित्य प्रतिदिन अपने श्रद्धा गंतव्य की ओर बढ़ते रहना चाहिए।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here