Home जबलपुर विचारों का मूल्य होता है मात्र शब्दों का नहीं :- मुनि श्री...

विचारों का मूल्य होता है मात्र शब्दों का नहीं :- मुनि श्री प्रसाद सागर जी महाराज

32
0

जबलपुर(विश्व परिवार)। निर्यापक श्रमण मुनि श्री १०८ प्रसाद सागर जी महाराज ने शिक्षा के मूल्यों को उद्घाटित करते हुए कहा की स्वाध्याय मन की खुराक है। वह तन को ही नहीं बाह्य जगत् में भागते हुए मन को भी मन्त्र की तरह कीलित कर अन्तर्मुखी करता है। माँ जैसे अपने बेटे को अहित पथ से बचाकर सन्मार्ग में लगाती है, ठीक वैसे ही जिनवाणी माता भव्यात्माओं को सतपथ पर लगाकर स्वस्थसंपोषित करती है। भूमिका के अनुसार गुरु निर्देशन में किया गया स्वाध्याय विरागता का फल प्रदान कर, पर्त दर पर्त चेतना का शोधन करता है। आप पायेंगे कि वक्ता-श्रोता और ज्ञानीअज्ञानी के स्वरूप सन्दर्भों के साथ-साथ तत्व-सिद्धांत के सरस सीकरों से इस खण्ड को काफी हद तक अभिषित किया गया है।स्वाध्याय का अर्थ मात्र लिखना पढ़ना ही नहीं है बल्कि आलस्य, असावधानी के त्याग का नाम भी स्वाध्याय है।बार-बार पढ़ने से ज्ञान में रस आने लगता है यानि ज्ञान अनुभव में आ जाता है और अनुभव ही सबसे बड़ा मन्त्र है।शरीर भी एक खुली किताब का काम कर सकता है यदि चिन्तन की कला है तो।इसलिए वही पढ़ो, वही सीखो, वही करो जिसके उपसंहार में आत्मा सुख-शांति का अनुभव कर सके अतःशिक्षा वही श्रेष्ठ है जो जन्म-मरण का क्षय करती है।
“स्वाध्याय परमं तप:” कहा गया है यह बात ठीक है किन्तु ध्यान रहे तप, व्रत अंगीकार करने के बाद ही आता है। अत: व्रतों (अणुव्रत, महाव्रत) को अंगीकार किये बिना जो पठन-पाठन किया जाता है वह स्वाध्याय भले ही हो पर तप कभी नहीं हो सकता। ऐसा बता कर महाराज श्री ने उन सभी अध्यापक गण की विशेष प्रशंशा करी जो बच्चो के जीवन को उज्जवल बनाने में सदैव तत्पर रहते है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here