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जिन्दगी के इस रण में, खुद को ही कृष्ण और, खुद को ही अर्जुन बनना पड़ता है..!

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हैदराबाद(विश्व परिवार)। रोज अपना ही सारथी बनकर, जीवन की महाभारत को खुद से लड़ना पड़ता है। इसलिए घर, परिवार और समाज में जीना है तो अपनी बुराई सुनने की आदत डालो। क्योंकि दुनिया में बुरे लोगों की कमी नहीं है। वह तुम्हारी बुराई जरूर करेंगे। अपने में सहनशीलता पैदा करो क्योंकि — यहाँ खुशियों की जिंदगी जीने वालों को, बहुत कुछ सहना पड़ता है।
परिस्थितियों के अनुरूप अपने आप को बदलना सीखो। क्योंकि इसके अलावा और कोई चारा भी नहीं है। जो माँ बाप मिलने थे, वो मिल गए, अब उन्हें तुम बदल नहीं सकते। जो पत्नी मिलना थी, वह भी मिल गई, अब उसे भी तो नहीं बदला जा सकता। जो बेटे बेटियाँ मिलने थे, वे भी मिल गए, उन्हें भी नहीं बदला जा सकता। अब कुछ नहीं बदला जा सकता है। बस, अब बदल सकते हो तो, तुम अपने आप को बदल सकते हो। अपना स्वभाव बदल सकते हो। अपने जीने का ढंग बदल सकते हो। अपनी आदत को बदल सकते हो। बदलाव की केवल यही एक प्रक्रिया शेष है। तुम अपने स्वभाव को बदलकर, नर्क बने जीवन को स्वर्ग में तब्दील कर सकते हो। यह अधिकार भी तुम्हें है।
यह तुम्हारी अपनी जन्मजात स्वतंत्रता है..
यह स्वतंत्रता कल भी थी, आज भी है और कल भी रहेगी…!!!।

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