रायपुर(विश्व परिवार)। एक 37 वर्षीय महिला को 10 साल पहले जन्मजात दिल की बीमारी (एबस्टीन एनोमली) के कारण एक जटिल सर्जरी (फॉन्टेन ऑपरेशन) से गुजरना पड़ा था। इस सर्जरी में उनके दिल को 4 चैम्बर वाले दिल से 2 चैम्बर वाले दिल में बदल दिया गया था, क्योंकि उनके दिल का दाहिने तरफ का हिस्सा काम नहीं कर रहा था।
आमतौर पर गंदा खून दाईं तरफ के दिल में जाता है, लेकिन इस सर्जरी के बाद इसे सीधे फेफड़ों में भेजा जाता है (जैसे मछली के दिल में होता है)। फेफड़ों में साफ होने के बाद खून दिल के बाईं तरफ जाता है और फिर शरीर में पंप किया जाता है।
हालांकि, सर्जरी के लगभग 8 साल बाद, उन्हें दिल की धड़कन में अनियमितता के कारण बेहोशी के दौरे आने लगे, जो इस तरह की सर्जरी के बाद लगभग 5% मामलों में होता है। अलग-अलग डॉक्टरों से परामर्श लेने के बाद, वे अगस्त 2024 में हमारे पास आए और हमारे बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. किंजल बख्शी द्वारा जांच की गई। जांच में पाया गया कि उन्हें “सिक साइनस सिंड्रोम” है, जिसमें दिल की धड़कन 20 धड़कन प्रति मिनट से 140 धड़कन प्रति मिनट तक घटती-बढ़ती थी।
इस तरह की समस्या का सबसे अच्छा उपचार पेसमेकर लगाना है।
लेकिन इस महिला के मामले में पेसमेकर लगाना चुनौतीपूर्ण था क्योंकि उनके दिल के चैम्बर तक पहुंचना मुश्किल था। आम तौर पर, शरीर के ऊपरी हिस्से से गंदा खून लाने वाली रक्त वाहिकाओं (सबक्लेवियन वी- सुपीरियर वेना कावा सिस्टम) का उपयोग पेसमेकर लीड को पेश करने के लिए किया जाता है, जो दिल के दाईं तरफ से जुड़ा होता है। फिर पल्स जनरेटर को लीड से जोड़ा जाता है और छाती की दीवार में लगाया जाता है। लेकिन इस महिला के मामले में, सुपीरियर वेना कावा पल्मोनरी आर्टरी (फेफड़ों की रक्त वाहिका) से जुड़ा था।
हमारे अस्पताल में डॉ. सुमनता शेखर पांधी (क्लिनिकल लीड – कार्डियोलॉजी विभाग) और डॉ. किंजल बख्शी (सीनियर बाल रोग विशेषज्ञ) के नेतृत्व में एक नवीन दृष्टिकोण के साथ दिल के दाईं तरफ के छोटे से हिस्से तक पहुंचने और सफलतापूर्वक पेसमेकर लगाने में सफल रहे। इस प्रक्रिया को पूरा करने में लगभग 5 घंटे लगे। प्रक्रिया के बाद उन्हें चौथे दिन अस्पताल से छुट्टी दे दी गई।
अस्पताल के फैसिलिटी डायरेक्टर श्री अजीत कुमार बेलमकोण्डा ने कार्डियोलॉजी विभाग को ऐसे जटिल प्रक्रिया की सफलता की अपार बधाई दी और प्रोत्साहना की।
यह एक बहुत ही दुर्लभ और असामान्य मामला है, जो छत्तीसगढ़ और मध्य भारत में पहली बार किया गया है।
एम. एम. आई. नारायणा मल्टीस्पेशलिटी हॉस्पिटल के बारे में:
एम. एम. आई. नारायणा मल्टीस्पेशलिटी हॉस्पिटल, रायपुर अगस्त 2011 में तब अस्तित्व में आया जब पहले से स्थापित 56 बेड हॉस्पिटल को अत्याधुनिक उपकरण, सुविधओं, नवीनतम ऑपरेशन थिएटर और चिकित्सकीय कौशल से संयुक्त 157 बेड क्षमता वाले हॉस्पिटल में रूपान्तरित किया गया।
आज यह हॉस्पिटल 250 बेड की क्षमता के साथ मध्यभारत का अग्रणी चिकित्सकीय संस्थान बन गया है जो हृदयरोग, मष्तिस्क विज्ञान, गुर्दारोग, जनरल एवं लेप्रोस्कोपी सर्जरी, कैंसर रोग विभाग और हड्डीरोग जैसे क्षेत्रों में विस्तृत एवं उत्कृष्ट सेवाएं दे रहा है।
हॉस्पिटल का लगभग 1.26 लाख वर्ग फुट इमारती क्षेत्र 3 एकड के परिसर में फैला है। रायपुर शहर के सबसे मध्य इलाके में बसा यह हॉस्पिटल मरीजों शीघ्र स्वस्थ्यलाभ के लिए सबसे उपयुक्त जगह है।