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आर्जवधर्म: गुरुओं कि पवित्र वाणी सुनकर उसके अनुसार जो जीना प्रारंभ कर देता हैं, वह शीघ्र ही सिद्धी को प्राप्त करता हैं : दिगंबर जैनाचार्य श्री विशुद्धसागर जी महाराज

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नांदणी(विश्व परिवार)। दसलक्षण महापर्व महोत्सव के अवसर पर दिनांक 8 सितम्बर से 17 सितम्बर 2024 तक नांदणी (महाराष्ट्र ) में आध्यात्मिक श्रावक – साधना संस्कार शिवीर का आयोजन किया हैं। दिगंबर जैनाचार्य श्री विशुद्धसागर जी गुरुदेव ने पर्युषण पर्व पर “श्रावक संयम साधना संस्कार शिबीर” में संबोधित करते हुए कहा कि –
सरलता, सहजता, नम्रता, अहंकार से शून्य जीवन ही संसार में सर्व श्रेष्ठ हैं। नर तन पाकर जीवन उन्हीं का श्रेष्ठ है, जो अहंकार छोडकर मार्दव धर्म के साथ जीवन जिते हैं | जीवन में उत्कर्ष चाहिए, जीवन में उन्नती चाहिए, तो गुरुओं कि आज्ञा में जिना सीखो।
गुरुओं कि पवित्र वाणी सुनकर उसके अनुसार जो जिना प्रारंभ कर देता हैं, वह शीघ्र ही सिद्धी को प्राप्त करता हैं।
अहंकार, मान, अहं, घमंड, सर्व नाश का कारण हैं। विशुद्ध भाव बनाओ, विनम्र बनो ज्ञान बढता जायेगा। मान अनर्थकारी हैं। मानी के मान के कारण इसका पुरा धन, वैभव, यश सब – कुछ नष्ट हो जाता हैं।
जिस रावण के एक लाख पुत्र, सव्वा लाख नाती थे परंतू अहंकारी ने अहंकार के कारण सब कुछ नष्ट कर लिया। सभी पुत्र नाती युद्ध में मरण को प्राप्त हो गये।
अहंकारी अपने दुरव्यवहार से अपने सगों को भी शत्रू बना लेता हैं। अहंकार छोडकर हमे सरलता, नम्रता पूर्वक व्यवहार करना चाहिए। अहं और वहं आनंद को भंग कर देते हैं | अहं भी छोडो, वहं भी छोडो।

 

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