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पर्युषण पर्व धूम धाम से मनाया गया एवम श्री जी की शोभायात्रा निकाली गयी

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भाटापारा(विश्व परिवार)। सकल दिगंबर जैन समाज भाटापारा ने श्री दिगम्बर जैन परवार पंचायती मंदिर के तत्वाधान में दशलक्षण पर्व बड़े ही हर्षोल्लास से मनाया गया।भाटापारा जैन समाज के श्रावकों ने श्री दिगम्बर जैन परवार पंचायती मंदिर में प्रतिदिन सुबह आचार्य श्री विशुद्ध सागर महाराज जी के परम शिष्य बा.ब्र.अंकित भैया जी के सानिध्य में श्री जी का विधि विधान पूर्वक पूजन अभिषेक किया वही शाम को मंगल आरती की गई।
जैन समाज अध्यक्ष पीयूष जैन ने बताया की दसलक्षण धर्म के ११ वे दिवस श्री जी को पालकी में बैठाकर शोभायात्रा विभिन्न मार्गों से निकाली गयी जिसमे समाज के सभी सदस्यों की उपस्थिति रही तथा पूरे जैन समाज ने शोभायात्रा में श्री जी की पालकी के सामने भक्ति की एवम आरती की।शोभायात्रा के पश्चात भाटापारा जैन समाज के ७ तपस्वियों राजमती,निधि ,सेजल ,प्राची संस्कृति,पारस,आदि जैन का समाज एवम परिवार के सदस्यों द्वारा पारणा कराया गया,उसके पश्चात समाज का वात्सलय भोजन धीरज,नितिन ,सुनील छाबड़ा परिवार ने १० उपवास के उपलक्ष्य में आयोजित किया गया।
रात्रि में दसलक्षण धर्म के दस दिवस में आयोजित किए गए विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम के सभी विजेता को सम्मान एवम मोमेंटो समाज के वरिष्ठ सदस्यो एवम कमेटी के द्वारा प्रदान किया गया । प्रतापगढ़ से पधारे ब्र. अंकित भैया जी ने अपने प्रवचन में बताया कि यह पर्व हमारे जीवन में विशेष महत्व रखता है।दशलक्षण महापर्व अनादि से चला आ रहा महापर्व है,जिसके अंतर्गत दस धर्म होते है – प्रथम दिन – उत्तम क्षमा धर्म जोकि क्रोध कषाय के अभाव मे उत्तम क्षमा धर्म प्रकट होता, ओर क्रोध के कारण व्यक्ति अपना विवेक खो देता है, जिससे आत्मा मे कर्मो का बंध तीव्र गति से होता है,इसके लिए हमे उत्तम क्षमा को धारण करना चाहिए। दूसरा दिन उत्तम मार्दव धर्म – मान कषाय के अभाव मे उत्तम मार्दव धर्म प्रकट होता है, अथार्थ हमे अपने जीवन मे अहंकार का त्याग करते हुए, सभी के प्रति विनय का भाव रखना चाहिये, तीसरा दिन उत्तम आर्जव धर्म – मायाचारी के अभाव मे उत्तम आर्जव धर्म प्रकट होता है,
मायाचारी करने से तिर्यंच गति का बंध होता है,मायाचारी का त्याग ओर सरलता का जीवन जीना चाहिए।
चौथा दिन उत्तम शौच धर्म – लोभ कषाय के अभाव मे उत्तम शौच धर्म प्रकट होता है,हमे अपने जीवन मे शुचिता का जीवन जीना चाहिए, चिंतन को सुचिमय बनाने लिए चित्त का शुद्ध होना आवश्यक है,पांचवा दिन उत्तम सत्य धर्म – हमारा जीवन झूठ की बुनियाद पे कभी नही टिक सकता है, कटु वचन नीम से भी ज्यादा कड़वा होता है, लेकिन हमे हमारे जीवन को संतुलित बनाये रखने के लिए उत्तम सत्य धर्म का पालन करना चाहिए,
छठा दिन उत्तम संयम धर्म – जीवन को चलाने के लिए हर व्यक्ति के अंदर संयम का होना अनिवार्य है,ताकि जीवन संयमित ओर अनुशाषित रह सके इसके अभाव मे व्यक्ति का जीवन दयनीय हो जाता है,उत्तम संयम को धारण करके मोक्ष मार्ग की शुरुआत हो जाती है,सातवा दिन उत्तम तप धर्म – उत्तम संयम धर्म को धारण करने के बाद उत्तम तप की शुरुआत होती है , तप दो प्रकार के होते है अंतरंग तप ओर बहिरंग तप जो की मुनिराज ओर श्रावक दोनो के लिए होते है , ओर कर्मो की निर्जरा के लिए तप अतिआवश्यक है,आठवा दिन उत्तम त्याग धर्म – जैन धर्म मे त्याग का बहुत महत्व है जिसमे श्रावक मुनिराज को चार प्रकार के दान देता है औषध दान,शास्त्र दान,अभय दान,आहार दान जिससे मुनिराज का रत्नत्रय का पालन अच्छे से होता है
नवमा दिन उत्तम आंकिचन्य धर्म – हमे हमारे जीवन मे परिग्रह को कम करना चाहिए, ओर परिग्रह परिमाण करके चलना चाहिए, जिससे जीवन सुखी रहता है,दसवा दिन उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म – ब्रह्म का अर्थ आत्मा, ओर चर्य का अर्थ रमण करना ,अथार्थ हमे आत्मा मे रमण करना चाहिए, ताकि हमारा जो लक्ष्य है आत्मा से परमात्मा बनना वो आसान हो जाता है, शीघ्र ही मुक्ति रमा को वर करके हमारी आत्मा सिद्धालय मे विराजित हो सके।

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