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क्षमा सबसे बड़ा धर्म है , संगम कॉलोनी में हुआ क्षमा वाणी पर महा संगम

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जबलपुर(विश्व परिवार)। आज क्षमावाणी का दिन है। क्षमा की सीमा अपरम्पार है। किसी के साथ वैर-भाव, मात्सर्य भाव न रहे, किसी को भी हीन दृष्टि से, नीच दृष्टि से न देखना, अपने बराबर समझना, यह वास्तविक क्षमा है।
संगम कॉलोनी में वार्षिक अभिषेक एवं क्षमा वाणी मिलन समारोह का आयोजन हुआ जिसमें जबलपुर संस्कारधानी में विराजित समस्त संघ का मिलन हुआ एवं सभी संतो ने क्षमा धर्म का उपदेश दिया
निर्यापक मुनि श्री 108 प्रसाद सागर जी ने बताया की
शरीर जब शिथिल हो जाता है, तब ज्ञान में शिथिलता आ जाती है, क्षायोपशम ज्ञान में परिवर्तन हो जाता है। मन की भी ऐसी ही स्थिति हो जाती है, कषायों की बाढ़ चालू हो जाती है, परन्तु सम्यक्त्व, क्षमा, विवेक अगर साथ है, तो कषायों का वेग शांत हो जाता है। प्रतिकूल वातावरण में भी अनुकूल वातावरण का अनुभव करना, क्षमा के बिना सम्भव नहीं है।
वीतराग मुद्रा को तालों में बन्द रखने से दुनिया के लोगों को शंकाएँ होती हैं, उसे ताले में बन्द नहीं रखना। मुनि लोग यही भावना करते हैं सर्वत्र कुशलता हो, किसी भी प्राणी को तकलीफ न हो। वे क्षमा, मार्दव आदि गुणों के धारक होते हैं।
विराजित सभी भक्त जनों को उपदेश देते हुए उपाध्याय विश्रुत सागर जी जी ने कहा हमारा प्रेम पुद्गल के साथ नहीं होना चाहिए। सभी जीव सुखी रहें, दुनियाँ का कल्याण हो, यह क्षमा मूर्ति मुनि महाराज ही विचारते हैं। क्षमा के बल पर तीर्थकर प्रकृति का बंध हो सकता है। अनंत के साथ क्षमा की प्रादुभूति हो जाती है तब तीर्थकर प्रकृति का बंध हो जाता है। तीर्थकर प्रकृति का बंध करने वाला व्यक्ति चाहे मुनि हो या श्रावक। जो अनंत की सेवा (वैयावृत्य) करना चाहता है, वह अनन्तानुबन्धी को कम करता है वह यह नहीं सोचता कि सत्ता को मिटा दूँ, मैं बना रहूँ। वह सोचता है सभी का क्षेम हो, सभी को ज्ञान प्राप्त हो, सबका दुख मिट जाये।
बोर्डिंग में चातुर्मास रत मुनि श्री 108 अस्तिक्य सागर जी महाराज ने कहा जब अनन्तानुबन्धी मिट जाती है, तब अनंत दुख मिट जाता है, आत्मा सामने खड़ा हो जाता है, अन्य पदार्थ गौण हो जाते हैं। मिथ्यात्व के अभाव में ही आत्मा की प्रादुभूति होती है । उपस्थित समस्त जनों ने पद्म सरिता का दिव्य प्रसाद पाया और मुनि श्री पद्म सागर जी ने बतायाजहाँ पूर्ण क्षमा है, वहाँ गति नहीं, जहाँ गति नहीं वहाँ विश्राम है। विसंवाद छोड़ो, संवाद पर आ जावो। संवाद भी समीचीन रूप हो। मोक्ष मार्ग की चर्चा हो। दूसरों के उद्धार के साथ मेरा भी उद्धार कैसे हो यही प्रश्न दिमाग में हो। विषय कषाय को दबाओ। मोहरूपी डाट को हटाओ और वास्तविक क्षमा को धारण करो। मेरी भावना है, यही वीर प्रभु से प्रार्थना है।
यही वीर से प्रार्थना, अनुनय से कर जोर।
हरी भरी दिखती रहे, धरती चारों ओर।
प्रवचन के उपरांत मुनि श्री शीतल सागर जी द्वारा दिव्य मंत्र द्वारा शांति धारा करवाई गई।

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