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वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी ने आचार्य पद स्थली पारसोला में दी रत्नत्रय के प्रतिक तीसरी बार दी दीक्षा ब्रह्म प्रेम बने मुनि विवर्जित सागर जी

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पारसोला(विश्व परिवार)। प्रथमाचार्य चारित्र चक्रवती आचार्य श्री शांतिसागरजी की अक्षुण्ण मूल बाल ब्रह्मचारी पट्ट परम्परा के पंचम पट्टाधीश वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्धमान सागर जी वर्ष 2024 का वर्षायोग पारसोला में कर रहे है। इस बेला में दिनांक 21 अक्टूबर को ब्रह्मचारी प्रेम जी 108 मुनि श्री विवर्जित सागर जी सागर जी बने। आचार्य श्री वर्धमान सागर जी ने प्रवचन में बताया कि
संसार दुःख से भरा हुआ है संसार रूपी वन में बाहर निकलने का रास्ता नहीं मिलता है पुण्यशाली जीव प्रेम कुमार जैसे होते हैं जो गुरुओं की वाणी, संत समागम से दीक्षा रूपी रास्ता खोज लेते हैं ।आचार्य श्री धर्म सागर जी ने नैनवा की ओर बिहार किया था तब से ब्रह्मचारी प्रेम कुमार आचार्य परंपरा से जुड़ गए । मंगल दुख से , पापों का प्रक्षालन कर सुगति की ओर ले जाता है ।दुख से छुटकारा संयम दीक्षा धारण करने से मिलता है दीक्षा से जीवन परिपूर्ण होता है शिष्य को दीक्षा शिक्षा और प्रायश्चित देने का अधिकार केवल आचार्य को होता है। दीक्षा से जीवन में आमूल चूल परिवर्तन होता है व्रत की महिमा को समझ कर प्रतिमा व्रत धारण करने से जीवन आगे बढ़ता है क्रमशः कदम बढ़ाते हुए महाव्रत को धारण किया जाता है गुरु संगति में रहकर सेवा कर धर्म के संस्कार प्राप्त होते हैं दीक्षा से अब रिश्तेदारी बदल गई है दीक्षार्थी अब आचार्य शांति सागर जी की परंपरा से जुड़ गए हैं गुरु से प्राप्त ज्ञान से वैराग्य प्राप्त होता है और संयम धारण कर संसार रूपी समुद्र को पार कर किया जाता है इसी में मानव जीवन की सार्थकता है संयम महाव्रत की रक्षा करना प्रत्येक साधु का परम कर्तव्य है। मनोरंजन मनभंजक मन को दुखी करने वाला होता है।
आज दीक्षार्थी गुरु और परिवार परंपरा अनुसार दीक्षा ले रहे हैं शिष्य को दीक्षा लेकर गुरु के प्रति कृतज्ञता को दिल में समर्पण भाव के साथ धारण करने से साधना में सफलता मिलती है । यह धर्म देशना आचार्य वर्धमान सागर जी ने दीक्षा के अवसर पर प्रकट की । ब्रह्मचारी गज्जू भैया,नमन भैया राजेश पंचोलिया अनुसार आचार्य श्री ने उपदेश में बताया कि यह संसार प्रतिकूल है संयम से संसार को अनुकूल बनाया जाता है। इसके पूर्व दीक्षार्थी की शोभा यात्रा श्री वर्धमान सागर सभागार में पहुँची । दिगंबर जैन दशा हूमड़ समाज एवं वर्षायोग समिति के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित दीक्षा समारोह श्यामा वाटिका सभागार में भगवान और पूर्वाचार्यों का चित्र अनावरण दीप प्रज्वलन दीक्षार्थी परिवार द्वारा किया गया। जयंतीलाल कोठारी अध्यक्ष एवं ऋषभ पचोरी अध्यक्ष प्रवीण जैन चातुर्मास समिति ने बताया कि प्रथमाचार्य चारित्र चक्रवती आचार्य श्री शांति सागर जी एवम पूर्वाचार्यो को अर्ध्य समर्पित विभिन्न नगरों से पधारी समाज द्वारा किया गया।सौभाग्यशाली परिवार की 5 महिलाओं द्वारा चोक पूरण की क्रिया की गई। दीक्षार्थी ने आचार्य श्री ने दीक्षा की याचना की तथा आचार्य श्री एवम समस्त साधुओ दीदी भैया श्रावक श्राविकाओं तथा समाज से क्षमा याचना की।वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी के पंचामृत से चरण प्रक्षालन का सौभाग्य दीक्षार्थी परिवार को मिला। इस बेला में आचार्य श्री के द्वारा दीक्षार्थी के पंच मुष्ठी केशलोच किये गए तथा दीक्षा संस्कार मस्तक तथा हाथों पर किये गए। इसके बाद आचार्य श्री ने नामकरण किया।7 प्रतिमा घारी 74 वर्षीय ब्रह्मचारी प्रेम का दीक्षा उपरांत नूतन नाम 108 मुनि श्री विवर्जित सागर सागर किया गया। ग्रहस्थ अवस्था के पूर्व परिजनो मनोज मोहित पुण्यार्जक परिवार द्वारा पिच्छी कमंडल शास्त्र भेंट किये गए।कार्यक्रम का सुंदर एवम प्रभावशाली संचालन श्री पंडित कीर्ति पारसोला ने किया। आज दीक्षार्थी के केशलोच हो रहे थे, तब सभी वैराग्यमयी पलों से सभी द्रवित हो रहे थे। परिजनों के दोनों नेत्रों में एक नेत्र में खुशी के आंसू दूसरे नेत्र में दुख के आंसू भी थे। भक्तों के भजनों से वातावरण वैराग्य मय हो रहा आचार्य श्री मुनि अपूर्व सागरजी, मुनिश्री अर्पित सागर जी,मुनि श्री हितेंद्र सागर जी एवम् अन्य साधुओं ने दीक्षार्थी के केशलोचन किये।परिजनों एवम अन्य भक्त जिन्हें केशलोच झेलने का अवसर मिला। वह अपने को पुण्यशाली मान रहे थे । प्रातःकाल दीक्षार्थी ने श्री जी के दर्शन कर पंचामृत अभिषेक पूजन किया, इसके पश्चात आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज के दर्शन कर उनके चरणों का प्रक्षालन किया ।आचार्य वर्धमान सागर जी एवं साधुओं को आहार दिया साधुओं के आहार के बाद सन्मति भवन से आचार्य वर्धमान सागर जी के संघ सानिध्य में दीक्षार्थी की शोभा यात्रा हजारों धर्मावलंबियों की उपस्थिति में नगर के प्रमुख मार्गो से होती हुई श्यामा वाटिका में पहुंची। प्रातः 8:00 बजे आचार्य श्री वर्धमान सागर जी के सानिध्य में समवशरण मंदिर में प्रथमाचार्य श्री शांति सागर जी की प्रतिमा दीक्षार्थी प्रेम जी पुत्र मनोज,मोहित जैन जयपुर को प्रतिमा स्थापित करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इस अवसर पर जयपुर,कोटा,निवाई, आदि अनेक नगरों से हजारों भक्त दीक्षा समारोह देखने हेतु उपस्थित हुए‌।

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