Home धर्म संत समागम से समय का सदुपयोग कर पुण्य का अर्जन करें –...

संत समागम से समय का सदुपयोग कर पुण्य का अर्जन करें – आर्यिका श्री महायश मति जी

39
0

पारसोला(विश्व परिवार)। आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज अपने संघ सहित पारसोला धरियावद विराजित हैं आज की धर्म सभा में शिष्या आर्यिका श्री महायशमति ने प्रवचन में बताया कि दीपावली पर्व किन कारणों से मनाई जाती है, कषाय कितनी होती है, लेश्या किसे कहते हैं कि कितने प्रकार की होती है, समय का सदुपयोग कैसे करना चाहिए, आचार्य संघ रूपी संत समागम से कैसे लाभ लेना चाहिए इसकी प्रवचन में विवेचना की। एक कथा के माध्यम से बताया कि दो मित्रों को एक देवी ने रतन के खजाने में छोड़ दिया की नियत 1 घंटे में आप जितने रन बटोर सकते हैं आप ले लें एक मित्र ने पुरुषार्थ कर समय का उपयोग कर रन इकट्ठे कर लिए जबकि दूसरा व्यक्ति आलस में सो गया कि मैं जब उठेगा जब मैं ले लूंगा तो एक व्यक्ति खाली हाथ रहा और दूसरे को रन की प्राप्ति हुई इसी प्रकार चार माह का चातुर्मास रूपी संत समागम आपको मिला है आप सोचते हैं हम बाद में जाकर धर्म लाभ ले लेंगे व्रत नियम ले लेंगे किंतु कुछ लोग व्रत नियम लेकर जीवन और समय का सदुपयोग करते हैं जबकि कुछ खाली हाथ रह जाते हैं। मनुष्य जीवन बहुत ही पुण्य से प्राप्त होता है इस जन्म में जो पूर्ण अर्जित करोगे उसका फायदा अगले जन्म में मिलेगा इसलिए जितना समय मिला है उसका हर पल हर क्षण का सदुपयोग करना चाहिए प्रमादी नहीं होना चाहिए। प्रथमाचार्य श्री शांति सागर जी महाराज का आचार्य पद का शताब्दी महोत्सव का शुभारंभ पारसोला से हुआ है इसमें आपने आचार्य श्री के जीवन को पढ़कर, सुनकर देखकर ,समझकर,क्या ग्रहण किया है यह सोचने की बात है। महोत्सव में आचार्य श्री ने 36 मूल गुण के धारी आचार्य श्री के जीवन से प्रेरणा लेकर 36 एकासन व्रत करने की प्रेरणा आप सभी भक्तों को दी है। यह मंगल देशना आर्यिका श्री महायश मति माताजी ने धर्म सभा में भक्तों के समक्ष दी ।गज्जू भैया ,राजेश पंचोलिया अनुसार माताजी ने प्रवचन में आगे बताया कि आत्मा और शरीर का बंधन क्यों है आप जो क्रोध कषाय करते हैं उसके कारण आत्मा में कर्मों का आश्रव होता है इस वजह से आप बार-बार अनेक भव में जन्म लेते हैं। क्रोध मान माया लाेभ यह चार प्रकार की कषाय होती है आपके परिणाम और भावों के कारण यह लेश्या में परिवर्तित हो जाती है। कषायो के कारण ही नरक गति ,तियंच गति मिलेगी। छः प्रकार की लेश्या में तीन शुभ और तीन अशुभ होती है इसलिए आपको अपने भाव और परिणाम मैत्री के ,करुणा,दया के रखना चाहिए। दीपावली पर्व आप भगवान के निर्वाण दीप उत्सव ,साफ-सफाई ,मिठाई और खुशी के रूप में मनाते हैं भगवान राम 14 वर्ष का वनवास समाप्त कर अयोध्या लौटे थे इस कारण तभी से दीप उत्सव मनाने की प्रथा चली है ।भगवान राम श्री 1008 मुनि सुब्रतनाथ भगवान के समय में हुए थे। कार्तिक माह में भगवान महावीर स्वामी को मोक्ष निर्वाण हुआ था, उसी शाम को प्रथम गणघर गौतम स्वामी को भी केवल ज्ञान प्राप्त हुआ था हम इस कारण दीपावली पर्व जैन समाज द्वारा मनाया जाता है। जिस प्रकार प्रकाश से अंधकार दूर किया जाता है, उसी प्रकार मोह,अज्ञान ,और पापों को केवलज्ञान रूपी लक्ष्मी से दूर किया जाता है इसलिए केवलज्ञान लक्ष्मी की पूजन करना चाहिए। पटाखे के बारे में माताजी ने बताया कि पटाखे फोड़ने से ध्वनि और वायु प्रदूषण होता है पटाखे के कारण अनेकानेक जीवों का घात होता है इसलिए सभी को पटाखे नहीं फोड़ना चाहिए। मुनि श्री चिंतन सागर जी ने अपने चिंतन में बताया कि सभी को धर्म के स्वरूप को सुनकर, समझकर याद करना चाहिए ।एक सूत्र दिया कि जो हमारे लिए प्रतिकूल है वह दूसरे के लिए भी प्रतिकूल होगा इसलिए वह कार्य नहीं करना चाहिए। आत्म प्रशंसा और दूसरे की निंदा नहीं करना चाहिए किसी के धर्म कार्य में बाधा नहीं डालना चाहिए ।सभी के प्रति विनय ,प्रेम ,मैत्री भाव रखना चाहिए। जयंतीलाल कोठारी अध्यक्ष एवं ऋषभ पचोरी, प्रवीण जैन अनुसार श्रीजी के पंचामृत अभिषेक पूजन के पश्चात आचार्य श्री वर्धमान सागर जी की पूजन की गई। पूर्वाचार्यौ के चित्रों का अनावरण और दीप प्रज्वलन अतिथियों द्वारा किया गया। आचार्य श्री के सानिध्य में दोपहर को स्वाध्याय ,तत्व चर्चा शाम को आरती नियमित होती है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here