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श्री दिगंबर जैन बड़ा मंदिर (लघु तीर्थ) में अष्टाह्निका महापर्व के अवसर पर श्री शांति नाथ भगवान का अभिषेक,शांति धारा की गई

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  • अष्टाह्निका पर्व में साधना से पापों से मुक्ति मिलती है आठ दिन तक करेंगे ध्यान, योग और स्वाध्याय : श्रेयश जैन(बालू)

रायपुर(विश्व परिवार)। श्री आदिनाथ दिगंबर जैन बड़ा मंदिर(लघु तीर्थ) मालवीय रोड में आज दिनाँक १४/११/२०२४ कार्तिक शुक्ल त्रयोदशी, चतुर्दशी,निर्वाण संवत् २५५१ दिन : वृहस्पतिवार के दिन जिनालय की पार्श्वनाथ भगवान की बेदी के समक्ष आध्यात्मिक प्रयोगशाला के माध्यम से प्रतिदिन नित्य नियम से चल रहे अभिषेक,शांतिधारा,पूजन धार्मिक शिविर में अष्टाह्निका पर्व के अवसर पर सुबह 8 बजे शांति भगवान का अभिषेक किया गया। उपस्थित धर्म प्रेमी बंधुओ ने सर्वप्रथम मंगलाष्टक पढ़ कर भगवान को पाण्डुक क्षीला में विराजमान किया प्रासुक जल को जलशुद्धि मंत्र से शुद्ध किया सभी ने रजत कलशों से भगवान का अभिषेक,एवं रिद्धि सिद्धि सुख शांति प्रदाता शांति धारा की। आज की रिद्धि सिद्धि सुख शांति प्रदाता शांति धारा करने का सौभाग्य आदेश जैन समता कॉलोनी परिवार को प्राप्त हुआ। शांति धारा का शुद्ध वचन अर्पित जैन चूड़ी वाले परिवार द्वारा किया गया।शांति धारा करने के बाद श्रीजी की मंगलमय आरती भी की गई। तत्पश्चात सभी ने अष्ट द्रव्यों से निर्मित अर्घ्य समर्पित कर देव शास्त्र गुरु पूजन एवं नंदीश्वर दीप पूजन करके विसर्जन किया। आज के कार्यक्रम में विशेष रूप से रवि जैन कुम्हारी,मनोज जैन चूड़ी वाला परिवार,प्रणीत जैन,आदेश जैन बंटी,प्रणीत जैन,किशोर जैन,अर्पित जैन,कृष जैन के साथ बड़ी संख्या में महिलाएं उपस्थित थी।
श्रेयश जैन बालू ने बताया कि अष्टाह्निका का शाब्दिक अर्थ होता है आठ दिनों का त्योहार। जैन साधक इन 8 दिनों में उपवास, प्रतिक्रमण, पूजन और ध्यान करते हैं। यह पर्व साधना के माध्यम से पापों से मुक्ति पाने और आत्मा की शुद्धि करने के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।अष्टाह्निका पर्व हर साल कार्तिक, फाल्गुन, और आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से लेकर पूर्णिमा तक बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व विशेष रूप से जैन धर्म में अत्यधिक महत्व रखता है और इसका उद्देश्य श्रद्धा और भक्ति के साथ आत्म-शुद्धि करना होता है।
अष्टाह्निका पर्व जैन धर्म में एक अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है, जो विशेष रूप से श्रद्धा, भक्ति और आत्मनिर्भरता के साथ मनाया जाता है। इस पर्व के दौरान, मनुष्य अपनी शक्ति की लघुता को ध्यान में रखते हुए और अपने आत्मसुधार की भावना से नन्दीश्वर द्वीप, वहाँ स्थित जिनमन्दिरों और जिनविम्बों की कल्पना करके पूजा करता है। हालांकि नन्दीश्वर द्वीप तक पहुंचना असंभव है, लेकिन श्रद्धालु इन दिव्य स्थलों की मानसिक पूजा करते हैं।
इस पर्व के दौरान श्रद्धालु विशेष रूप से व्रत, नियम और संयम का पालन करते हैं। उनकी यह भावना होती है कि इन दिनों उनके द्वारा किए गए कर्मों और साधनाओं से अत्यधिक पुण्य प्राप्त होता है। इन दिनों लोग सिद्धचक्र का पाठ भी करते हैं, जो आत्मा की शुद्धि और आध्यात्मिक उन्नति के लिए महत्वपूर्ण होता है। व्रत, संयम और एकाशन (एक समय का भोजन) आदि का पालन करते हुए, भक्त आत्मा का चिन्तन और साधना करते हैं। यह पर्व उनकी आत्मा की शुद्धि और धर्म के प्रति श्रद्धा को बढ़ाता है।

 

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