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व्यंतर देवों का उपसर्ग हमारे कर्मों अनुसार होता हैं पूजन में अर्जित पुण्य से हमारे कष्ट दूर होते हैं – आचार्य श्री वर्धमान सागर जी

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पारसोला(विश्व परिवार)। पंचम पट्टाघीश आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज सन्मति भवन में संघ सहित विराजित है आचार्य श्री संघ सानिध्य में स्थानीय श्यामा वाटिका में सर्वतोभद्र विधान की महामंडल की पूजन चल रही है नंदीश्वर जिनालयों की पूजन पूर्ण हो चुकी है।आज कुंडल गिरी, रुचक गिरी व्यंतर ,किन्नर ,किंपुरुष,महोरग ,गंधर्व , यक्ष ,राक्षस भूत,पिशाच ज्योतिषक देवों के भवनों में स्थित जिनालयों की पूजन चल रही है। जयंतीलाल कोठारी अध्यक्ष जैन समाज, ऋषभ पचौरी अध्यक्ष वर्षायोग समिति राजेश पंचोलिया अनुसार आचार्य श्री ने विधान में प्रवचन में बताया कि जिनवाणी से हमें ज्ञान मिलता हैं ज्ञानमति माताजी द्वारा रचित इस विधान में जिनागम भरा हुआ है। अकृत्रिम जिनालयों स्वयं सिद्ध शास्वत है। पूजन मन लगाकर करना चाहिए ।अभिषेक के बिना पूजन अधूरा हैं।पूजन से कर्म और कष्ट दूर होता है। सुभौम चक्रवर्ती और रसोईया का प्रसंग से बताया कि व्यंतर देवों का प्रकोप हमारे कर्मों पर निर्भर है इसलिए किसी से बैर नहीं करना चाहिए कषाय नहीं करना चाहिए। पूजन में जो द्रव्य लिखे गए हैं वही चढ़ाना चाहिए।

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