रायपुर {विश्व परिवार} : हर पाँच वर्षो में, सबसे बड़ी पशु बलि नेपाल देश के बारा जिले में गढ़ीमाई मंदिर में होती है, जो राजधानी काठमांडू से लगभग 200 किलोमीटर दक्षिण में है। एक महीने तक चलने वाले उत्सव के बाद, त्यौहार का समापन लाखों मूक जानवरों के अनुष्ठानिक वध के साथ होता है। मिली जानकारी अनुसार 2009 में अपने चरम पर, लगभग 3,00,000 बेज़ुबानों की दी बलि गई थी।
जानकारी के मुताबिक इस आयोजन के समापन पर शराब के नशे में धुत्त होकर लोग भैंसों, बकरियों, मुर्गियों, सूअरों, कबूतरों, बत्तखों और चूहों का सिर धातु के कुंद औजारों से काटा जाता है। अनुमान है कि 70 प्रतिशत जानवर ऐतिहासिक रूप से भारत से सीमा पार करके लाए जाते है, जो परिवहन के दौरान पर्याप्त भोजन, पानी या आश्रय के बिना कई दिनों तक कष्ट सहते रहते हैं। इसी प्रथा को रोकने के लिए सर्व जीव मंगल प्रतिष्ठान के संस्थापक डॉक्टर कल्याण गंगवाल { पुणे } द्व्रारा बेज़ुबानों की हो रही नरिमम हत्या को रोकने और बलि प्रथा के विरुद्ध जनता को जागरूक करने की पहल की है। इसी कड़ी में उन्होंने जनता को एक ई-मेल जारी कर ऐसी घटनाओं के विरुद्ध संबंधित अधिकारियों और पुलिस ऑफिसरों को जानकारी देने के लिए मेल माध्यम से एक अपील का निर्माण किया है, जिससे इस विध्वंशकारी घटना होने के पूर्व इस पर पूर्णतः प्रतिबंध लगया जा सके ।
मान्यताओं के अनुसार गढ़ीमाई की उत्पत्ति लगभग 265 साल पहले हुई थी, जब गढ़ीमाई मंदिर के संस्थापक भगवान चौधरी को एक सपना आया था कि देवी गढ़ीमाई उन्हें जेल से मुक्त करने, बुराई से बचाने और समृद्धि व शक्ति का वादा करने के बदले में रक्त चाहती हैं। देवी ने एक मानव बलि मांगी, परंतु चौधरी ने एक जानवर की बलि दी, और तब से यह परंपरा हर पांच साल में दोहराई जाता है। उत्सव में भाग लेने वाले लोग प्रार्थना में घंटियाँ बजाते हैं। इस हत्या का उद्देश्य देवी गढ़ीमाई को प्रसन्न करना है, ताकि लोगो की इच्छा पूर्ण हो सके एवं भविष्य में आने वाली आपदा भी टल जाए।
उक्त बलि प्रथा को रोकने के लिए संलग्न मेल आईडी पर अपना नाम अंकित कर विरोध दर्ज करे