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संयमी साधकों की एक क्षण की अनुमोदना आपको असीमित दुःखों से छुड़ा देगी- भावलिंगी संत आचार्य श्री विमर्शसागर जी मुनिराज

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कृष्णानगर(विश्व परिवार)। संसार के समस्त दुःखों से निकालने का एकमात्र उपाय है. “भगवती जिनदीक्षा”। संसार-शरीर-भोगों से विरक्ति धारण करके ही यह जिनदीक्षा धारण की जाती है। दीक्षा धारण करने वाला दीक्षार्थी अत्यंत धैर्यशाली, समता स्वभावी, विकार – विभावों से रहित, कष्ट सहिष्णु, स्व-पर उपकारी, इन्द्रिय विषय आकांक्षाओं का दमन करने वाला और सर्वोत्कृष्ट त्याग तपस्या की साक्षात प्रतिमूर्ति हुआ करते हैं। 15 नवम्बर 2024 दिल्ली राजधानी में हुए ऐतिहासिक भगवती जिनदीक्षा महामहोत्सव में दीक्षित हुए विमर्शानुरागिनी आर्यिका श्री 105 विमर्शिता श्री माताजी सहित 13 दीक्षित साधिकाओं की “मुखशुद्धि एवं व्रतदान क्रिया” 06 दिसम्बर 2024 को कृष्णानगर जैन मंदिर में संपन्न की गयी । प्रातः काल की मंगल बेला में सुप्रभातम् के साथ मंगलाष्टक पाठ पूर्वक श्री जिनाभिषेक किया गया पुनः आचार्य संघ के साथ सभी नवोदित दीक्षित साधक-साधिकाओं ने सम्यग्दर्शन- सम्यग्ज्ञान-सम्यक्चारित्र एवं रत्नत्रय पूजन सम्पन्न की। पुनः आचार्य श्री ने अपने नवदीक्षित शिष्य शिष्याओं के मस्तक पर “श्रीः” लिखकर व्रतदान की मांगलिक क्रिया सम्पन्न की। आचार्यश्री के पाद‌मूल में सभी दीक्षित शिष्यों ने “आकाश पंचमी ” व्रत को उपवास पूर्वक ग्रहण किया। वहीं उपस्थित दीक्षित शिष्यों के गृहस्थ जीवन के एवं धर्म के माता-पिता ने भी अपनी शक्ति अनुसार व्रत-नियम – संयम धारण किए । विशाल धर्मसभा के मध्य मुखशुद्धि क्रिया की मंगल भक्ति पाठों के साथ सभी नवदीक्षित साधकों ने अपने हाथों से उपस्थित श्रावक-श्राविकाओं को मांगलिक द्रव्य प्रदान की।
सौभाग्यशाली पात्र एवं कर्मठ कार्यकताओं का किया स्वागत
भावलिंगी संत चातुर्मास 2024 एवं भगवती जिनदीक्षा महोत्सव के स्वर्णिम पलों की अनुभूतियाँ दिल्ली वाले भक्तों के हृदय से कभी विदा नहीं ले पायेंगी। चातुर्मास में तन-मन-धन से सेवा करने वाले श्रद्धालु भक्त श्रावकों एवं कर्मठ कार्यकर्ताओं का जिन्होंने भगवती जिनदीक्षा में कड़ी मेहनत करते हुए आयोजन को शिखर तक पहुँचाया, इन सभी गुरु भक्तों का चातुर्मास समिति एवं मंदिर कमेटी ने तहेदिल से गरिमामयी स्वागत सम्मान किया। आचार्य श्री ने कहा – “यह स्वागत आपका नहीं अपितु आपके श्रद्धा समर्पण एवं लगनशील मेहनत को प्रोत्साहन है, आप सदैव ऐसे ही सच्च देव-शास्त्र गुरु की भक्ति-आराधना करते रहें।

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