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दादा गुरु आचार्य श्री ज्ञानसागर जी की शिष्या कंचनबाई जी की हुई 106 वर्ष में समाधि

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सागर(विश्व परिवार)। अजमेर नगर में जन्मी दादा गुरु आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज की शिष्या दसम प्रतिमाधारी कंचनबाई जी जिनका नाम यशोमति रखा गया है, वर्तमान में निर्यापक मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी व आर्यिका श्री उपशान्तमति माता जी ससंघ के सानिध्य में जिनकी समाधि विगत 3.5 माह से सल्लेखना चल रही थी, आज शनिवार, 7 दिसम्बर 2024 को 106 वर्ष की आयु में उनकी सल्लेखना पूर्वक समाधि वर्णी भवन, मोरा जी, सागर में सम्पन्न हुई।
वंदनीया बाई जी आचार्यश्री विद्यासागर जी के आर्यिका गुरुकुल की शिक्षिका रही थी, आपने अन्य भी 3 बाईजी के साथ रहकर आर्यिका गुरुमति, दृढ़मति जी आदि 170 आर्यिकाओं को तैयार किया। बाद में आचार्यश्री ने समाधि साधना के दृष्टिकोण से आपको आर्यिकाश्री उपशान्तमति माताजी के संघ में रखा।
वंदनीया बाई जी प्रतिदिन पूज्य मुनिश्री के चरणों का पाद-प्रक्षालन करती और गंधोदक को अपने मस्तक पर धारण करती थी, नित प्रतिदिन पूज्यश्री का मंगल उद्बोधन उन्हें प्राप्त होता रहा। समाधि के समय उनके परिणामों में गजब की जागृति थी। प्रतिदिन की तरह आज भी जगतपुज्य निर्यापक श्रमण श्री सुधासागर जी महाराज आहार के बाद उनको उद्बोधन व शुभाशीष देने गए, पूज्य मुनि श्री के कहने पर उन्होंने आँख खोली, ॐ नमः सिद्धेभ्य: का उच्चारण किया और समाधि को प्राप्त हुई।
ऐसी महान आत्माओं का दर्शन सम्मेद शिखरजी से भी ज्यादा महत्वपूर्ण होता है। जिनकी सेवा विगत 10 वर्षों से आर्यिका उपशान्तमति माता जी के संघ में चली। वर्तमान में मुनि संघ व आर्यिका संघ के सानिध्य में अंतिम समय निकलना ये दुर्लभतम दुर्लभ है। जिन्होंने दादागुरु आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज को ब्रह्मचारी अवस्था में देखा है। हे भगवान ऐसी समाधि की भावना हमारी भी बने।
वन्दनीय बाई जी का डोला आज 7 दिसम्बर 2024, दोपहर 1:00 बजे मोराजी से मंगलगिरी ले जाया गया जहाँ उनकी अंतिम संस्कार की क्रियाये संपन्न हुई।

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