Home धर्म पारसोला में 81 वर्षीय आर्यिका श्री ज्योतिमति जी का 16 दिसंबर को...

पारसोला में 81 वर्षीय आर्यिका श्री ज्योतिमति जी का 16 दिसंबर को समाधि मरण विमान यात्रा डोला निकाला गया

26
0

दिन रात मेरे स्वामी, में भावना यह भावु। देहांत के समय मे तुमको न भूल जावू।
मरण समय गुरु पाद मूल हो व्रत संयम पालू, पंडित पंडित मरण हो ऐसा अवसर दो।
इन सार गर्भित भावनाओ को बिरले ही भव्य जीव अपने जीवन मे चरितार्थ करते है।

पारसोला(विश्व परिवार)। पंचम पट्टाधीश वात्सल्य वारिघि आचार्य श्री वर्धमान सागर से दीक्षित शिष्या 81 वर्षीय आर्यिका श्री ज्योतिमति जी का दिनांक 16 दिसंबर 2024 को रात्रि 11.37 बजे पारसोला राजस्थान में समस्त संघ सानिध्य में समाधिमरण हो गया। जयंतीलाल कोठारी अध्यक्ष जैन समाज तथा ऋषभ पचौरी अध्यक्ष वर्षायोग समिति ने बताया कि प्रातः 8 बजे समाधिस्थ 81 वर्षीय आर्यिका श्री ज्योतिमति जी का डोला विमान यात्रा वात्सल्य वारिघि पंचम पट्टाधीश आचार्य श्री वर्धमान सागर जी संघ सानिध्य और हजारों श्रद्धालुओं की उपस्थिति में निकाली गई। आर्यिका श्री के डोले के आगे कमंडल लेकर भूमि शुद्धि का ,आर्यिका श्री के डोले को कंधे लगाने का सौभाग्य परिजनों को प्राप्त हुआ। साबला रोड़ स्थित वैराग्य योग दर्शन समाधिस्थल परिसर में पंडित कीर्तिश ,पंडित अशोक जी के निर्देशन में मंत्रोचार से शुद्धि की गई। आर्यिका श्री ज्योति मति की पूजन शांति धारा और पंचामृत अभिषेक गृहस्थ अवस्था के परिजन पुत्र गोपाल एवं महेंद्र तथा लड़कियां श्रीमती संजू एवं श्रीमती मंजूपरिवार द्वारा किया गया। परम पूज्य आर्यिका माताजी की समाधि के कारण संघ के सभी साधुओं ने आज उपवास किया। अग्नि संस्कार के पश्चात उपस्थित आर्यिका संघ एवं समस्त समाज ने परिक्रमा देकर अपनी विनियाजंलि प्रस्तुत की।
सामान्य परिचय वर्ष 2007 में आर्यिका दीक्षा ली।
श्री गजू भैया एवम् राजेश पंचोलिया इंदौर ने बताया कि मालपुरा राजस्थान की 81 वर्षीय आर्यिका श्री ज्योतिमति ने नाम को सार्थक कर अध्यात्म की ज्योति जाग्रत कर आचार्य श्री वर्धमान सागर जी संघ समक्ष दीक्षा हेतु श्रीफल अर्पित कर 7 प्रतिमा धारी श्रीमति मनोरमा की सीधे आर्यिका दीक्षा वात्सल्य वारिघि पंचम पट्टाधीश आचार्य श्री वर्धमान सागर जी के सिद्ध हस्त कर कमलों से श्री क्षेत्र श्रवणबेलगोला में 17/11/2007 को हुई ।आपका नूतन नामकरण आर्यिका श्री ज्योतिमति जी किया गया ।

वर्ष 2017 में 8 वर्षों की नियम संल्लेखना धारण की। भगवान बाहुबली सपने में आए।
वर्ष 2018 में श्री बाहुबली भगवान के मस्तकाभिषेक देखने के लिए पहुंची आर्यिका श्री ज्योति मति जी ने आचार्य श्री भद्रबाहु स्वामी के चरण स्थल श्रवणबेलगोला पर 6 जून 2017 को 8 वर्षों की नियम संलेखना धारण की। विगत दिनों माताजी माताजी ने आचार्य श्री वर्धमान सागर जी को बताया कि मैंने सपने में भगवान बाहुबली के दर्शन कर अभिषेक देखा है। अगले दिन माता जी को बाहुबली भगवान का पंचामृत अभिषेक दिखाया गया।
संस्तरारोहण एवं यम संल्लेखना
9 नवंबर को 2024 को आचार्य श्री के समक्ष संस्तरारोहण हेतु निवेदन किया।
6 दिसंबर 2024 को आचार्य श्री एवम् संघ के सभी साधुओं से क्षमा याचना कर चारो प्रकार के अन्न जल आदि का आजीवन त्याग कर यम संल्लेखना धारण कर सभी प्रकार के आहार का त्याग किया। प्रतिदिन तन्मयता एकाग्रता पूर्वक गुरुजनों का सम्बोधन सुनना श्री जी के अभिषेक देखती । क्षपकोतमा आर्यिका श्री ज्योति मति जी को प्रतिदिन आचार्य श्री वर्धमान सागर जी मुनि श्री चिन्मय सागर जी मुनि श्री हितेंद्र सागर जी सहित संघ के साधु संबोधन करते रहे। यम सल्लेखना के 10 उपवास सहित शांत परिणामो से निराकुलता सहित दिनांक 16 दिसंबर 2024 को रात्रि 11.37 बजे उत्कृष्ट समाधिमरण निर्यापकाचार्य आचार्य श्री वर्धमान सागर जी संघ सानिध्य में आचार्य श्री के श्री मुख से अरिहंत सिद्ध सुनते हुए हुआ। क्षपकोतमा आर्यिका श्री की विमान डोल यात्रा श्री सुपार्श्वमति सन्त निवास से रवाना होकर समाधि स्थल पहुंची।

धार्मिक विधि विधान पूर्वक अंतिम संस्कार हुए
राजस्थान प्रांत के अनेक नगरों मालपुरा, रीछा ,टोडा, रायसिंह,धरियावद,नरवाली , मुंगाडा, के हजारों गुरुभक्तों ने भाग लिया। समाधिस्थल पर पूर्ण विधि विधान से विमान यात्रा पूर्व नियत स्थल पर ले गए जहाँ पर पूर्ण विधि विधान से समाधिस्थ आर्यिका श्री के धार्मिक संस्कार कर पूजन पंचामृत अभिषेक किए गए। अग्नि संस्कार पूर्व गृहस्थ अवस्था के पुत्र एवम् परिजनों द्वारा किये गए।
कठोर तप साधना विगत दो माह में 30 से अधिक उपवास किये
माह नवंबर एवं दिसंबर 2024 में आर्यिका श्री ज्योतिमति माताजी ने 10 बेले अर्थात 20 उपवास तथा 10 लगातार उपवास 30 से अधिक उपवास कर संयम तप साधना कर कर्मों की निर्जरा की।

आचार्य श्री के सानिध्य में पूर्व में भीअनेक संल्लेखना हुई ।
पारसोला नगर में इसके पूर्व भी आचार्य श्री वर्धमान सागर जी के सानिध्य में वर्ष 1997 में क्षुल्लक श्री नम्रसागर जी की,वर्ष 2002 में आर्यिका श्री सौम्यमती की ,वर्ष 2004 में आर्यिका श्री सुप्रभामति जी सहित अनेक संलेखनाएं हुई है। उल्लेखनीय है कि पारसोला नगर के पुण्यशाली भव्य साधुगण है ।

सल्लेखना धारी साधु के दर्शन करना तीर्थ यात्रा बराबर हैअनेक साधु पधारे
छपक साधु की सम्यक समाधि होने पर आगामी दो भव से आठ भव में निश्चित ही सिद्ध शिला पर पहुंचते हैं। इस कारण अनेक साधु तथा समाज के श्रद्धालु दर्शन करते हैं।परम पूज्य आर्यिका श्री ज्योतिमति जी को संबोधन देने के लिए मुंगाणा से आचार्य श्री सुनील सागर जी के 3 मुनि शिष्य श्री श्रुतेश सागर,श्री सुश्रुत सागर ,श्री सक्षम सागर जी एवं आर्यिका श्री संगीतमति माताजी, क्षुल्लिका श्री सद्‌दु‌ष्टिमति माताजी, क्षुल्लिकाश्री पदममति माताजी ने वात्सल्य वारिधि आचार्य रत्न वर्धमान सागर जी के दर्शन, आशीर्वाद पश्चात छपकोत्तमा आर्यिका श्री ज्योतिमति जी के दर्शन कर आशीर्वाद लिया।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here