अंबिकापुर । (विश्व परिवार) उत्तर छत्तीसगढ़ में शिक्षा, स्वास्थ्य ,समाज सेवा के साथ धार्मिक गतिविधियों में जीवन समर्पित करने वाले राष्ट्रपति पुरस्कृत शिक्षक डा भागीरथी गौरहा (सकरी वाले) अब इस दुनिया में नहीं रहे। सोमवार की भोर में उन्होंने अंतिम सांसें ली। उनकी इच्छा के अनुसार पार्थिव देह मेडिकल कालेज अंबिकापुर को दान कर दी गई। डा गौरहा का पार्थिव देह अब चिकित्सा विज्ञान के काम आएगा। भागवताचार्य डा गौरहा को श्रद्धांजलि देने आज उनके निवास से लेकर मेडिकल कालेज तक शहर के हर वर्ग के लोग पहुंचे।
आदिवासी बहुल उत्तर छत्तीसगढ़ में डा भागीरथी गौरहा 1964 में आए थे। उस दौरान यहां सुविधाओं की कमी थी। बिलासपुर से बतौर शिक्षक सरगुजा में सेवा देने आए डा भागीरथी गौरहा यहीं के होकर रह गए। उन्होंने इसी क्षेत्र के लोगों की बेहतरी के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। सीतापुर में कुछ वर्षों तक सेवा देने के बाद डा उनका स्थानांतरण अंबिकापुर के मल्टीपरपज स्कूल में कर दिया गया था। यहां वर्षों तक वे एनसीसी अधिकारी के रूप में एक अनुशासनप्रिय शिक्षक के रूप में जाने जाते थे। उनके सानिध्य में कई विद्यार्थी आज अलग-अलग क्षेत्र में ख्याति अर्जित कर चुके हैं। मल्टीपरपज स्कूल में सेवा देने के बाद उनका तबादला सिलफिली में कर दिया गया था।
धर्मपत्नी ने भी किए थे अंगदान
डा भागीरथी गौरहा प्रकांड विद्वान थे। उनकी भाषा शैली गजब की थी। उनकी पत्नी का निधन वर्ष 1980 में हुआ था। ब्रेन ट्यूमर के कारण उन्हें दिल्ली के एक अस्पताल में भर्ती किया गया था। अंगदान को लेकर जब जागरूकता की कमी थी, उस दौर में उनकी धर्मपत्नी ने अंगदान किया था। उसी समय सँभवतः डा गौरहा ने भी देहदान का निर्णय लिया था। इस दंपती ने समाज को नया संदेश दिया है।
सात साल पहले जिन्हें आवेदन दिया आज वे देह लेने खड़ीं थी
उन्होंने वर्ष 2017 में देहदान का निर्णय लिया था । उस दौरान उन्होंने बिलासपुर के सिम्स अस्पताल में जाकर आवेदन दिया था। तब सिम्स के एनाटॉमी विभाग में डा आर्या पदस्थ थी। उन्होने ही उनके आवेदन की प्रक्रिया पूरी की थी। आज डा आर्या अंबिकापुर मेडिकल कालेज के एनाटामी विभाग की एचओडी है।डा गौरहा के निधन की सूचना पर मेडिकल कालेज से एंबुलेंस भेजा गया था।एंबुलेंस में उनका पार्थिव देह लेकर स्वजन और परिचित अस्पताल पहुंचे। यहां डा मूर्ति ने पार्थिव देह को देखते ही पहचान लिया। पुराने दिनों को याद कर श्रद्धांजलि अर्पित की।
भागवत में मिले दान को कुंवारी कन्याओं को किया भेंट
डा भागीरथी गौरहा भागवत के भी ज्ञाता था। सरगुजांचल में भागवताचार्य के रूप में भी उन्हें प्रसिद्धि मिली। भागवत को सहज -सरल स्थानीय बोली में प्रस्तुत करने का उनका तरीका इतना गजब का था कि वर्षों तक उन्हें एक गांव से दूसरे गांव तक बुलाया जाता रहा। सैकड़ों स्थानों पर उन्होंने भागवत पर प्रवचन दिया। इससे उन्हें अलग प्रसिद्धि मिली। इस दौरान उन्हें श्रद्धालुओं की ओर से जो भी दान में मिला उसे उन्होंने कभी अपने पास नहीं रखा। आयोजन स्थल के आसपास की कुंवारी कन्याओं को सभी उपहार स्वरूप भेंट दे दिया। उनकी तीन पुत्री,एक पुत्र का भरा-पूरा परिवार है।
जानिए डा भागीरथी गौरहा को
- संत गहिरा गुरु के साथ आदिवासी क्षेत्र में शिक्षा के प्रचार-प्रसार में योगदान।
- सरगुजा में वृद्धाश्रम की स्थापना और वर्षों तक अवैतनिक प्रबंधक के रूप में अपनी सेवाएं दी।
- रेडक्रास सोसायटी के माध्यम से वर्षों तक जरूरतमंद लोगों की मदद की।
- ब्लड बैंक के अलावा लाइफ लाइन चिकित्सा शिविर में योगदान।
- सामाजिक बुराइयों को दूर करने के लिए जनजागरण। एनसीसी के माध्यम से देशसेवा को समर्पित युवाओं की टीम।