Home धर्म श्री महावीर जी संग्रहालय: इतिहास और दुर्लभ जैन प्रतिमाओं का खजाना

श्री महावीर जी संग्रहालय: इतिहास और दुर्लभ जैन प्रतिमाओं का खजाना

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(विश्व परिवार)। श्री महावीर जी संग्रहालय, जैन धर्म और भारतीय संस्कृति की अद्भुत विरासत को संरक्षित करने वाला एक महत्वपूर्ण स्थल है। यहां संग्रहित दुर्लभ जैन प्रतिमाएं न केवल कला का उत्कृष्ट नमूना हैं, बल्कि इतिहास और आध्यात्मिकता का भी प्रतीक हैं।
संग्रहालय की विशेष धरोहर
सात सर्पफण, केश सहित वृषभ लांछन एवं नवग्रह से सुशोभित भगवान ऋषभदेव की अति दुर्लभ जिन प्रतिमा दर्शनीय है।
यह अद्वितीय धातु की प्रतिमा 9वीं सदी की है, जो बनारस से प्राप्त हुई है। इसे श्री महावीर जी संग्रहालय को पूज्य चैत्य सागर मुनिराज के आचार्य पद आरोहण दिवस (1 मार्च, 2007) के अवसर पर सतेंद्र चौहान जैन (बनारस) द्वारा भेंट किया गया था। यह प्रतिमा अपनी अनोखी संरचना और धार्मिक महत्व के कारण संग्रहालय का प्रमुख आकर्षण है।
कुषाण कालीन देवी अंबिका की मृण प्रतिमा
संग्रहालय में देवी अंबिका की एक दुर्लभ मृण प्रतिमा भी मौजूद है। इस प्रतिमा में देवी की गोद में बालक अंकित है, जो इस मूर्ति को विशेष बनाती है। इसे भी श्री सतेंद्र चौहान जैन ने संग्रहालय को समर्पित किया। यह प्रतिमा अत्यंत प्राचीन होने की संभावना है और बनारस में हुए उत्खननों से इसके महत्व को प्रमाणित किया गया है।
संग्रहालय का निर्माण और योगदान
श्री महावीर जी संग्रहालय का निर्माण पद्म श्री ओ. पी. अग्रवाल जी (इनटेक) की प्रेरणा और सहयोग से संभव हुआ। यह संग्रहालय भारतीय संस्कृति, जैन धर्म और इतिहास प्रेमियों के लिए एक अनमोल धरोहर है।
पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण संग्रहालय के अधीक्षक डा विजय कुमार झा ने बताया कि संग्रहालय में प्रदर्शित यह दुर्लभ जैन प्रतिमाएं, जिनमें सात सर्पफण, देवी अंबिका और अन्य प्राचीन मूर्तियां शामिल हैं, इतिहास और धर्म का गहन अध्ययन करने वालों के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं। यह संग्रहालय न केवल जैन धर्म के अनुयायियों, बल्कि कला और इतिहास प्रेमियों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत है।

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