मंडी बामोरा (विश्व परिवार)। संत शिरोमणि आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनिश्री 108 संधानसागर जी महाराज ने वर्ष के अंतिम दिन तथा इष्टोपदेश ग्रंथराज के समापन की बेला में श्रावकों को संबोधित करते हुए कहा कि- इष्टोपदेश गागर में सागर भरने जैसा यह बैजोड़ ग्रन्थ है। पतित से पावन बनाने वाला ग्रंथ है यह, नर से नारायण बनाने वाला गं्रथ है यह इष्टोपदेश। आज पूज्य मुनिश्री ने पुरे इष्टोपदेश गं्रथ से कुछ चुनिंदा कारिकाओं को अर्थ सहित हद्यंगम कराया। उन्होंने लगभग 15 कारिकाओं में बताया कि आचार्य पूज्यपाद स्वामी बहुत बड़ी सोच के थे, उन्होंने जात-पात से ऊपर उठकर इस ग्रंथ की रचना की जो मात्र जैन धर्म से संबंधित नहीं बल्कि जन-जन के लिए उन्होंने वो सूत्र दिये, जिन्हें अपनाकर प्रत्येक जीवन सुख-शांति और आनंद का अनुभव कर सकता है। मुनिश्री ने कहा कि- समयसार की 435 गाथायें पढऩे से पूर्व इष्टोपदेश का स्वाध्याय है, क्योंकि इष्टोपदेश ग्रंथ भटकने से बचा लेगा, स्वयं पूज्यपाद तीसरी कारिका में कहते हैं कि व्रतों के पालन से देव गति जाना श्रेष्ठ है, अव्रत से नरक जाने के अपेक्षा, उदाहरण दिया धूम में खड़े होकर इंतजार करने की अपेक्षा छाया में खड़े होकर इंतजार करें, इसी प्रकार भिन्न-भिन्न कारिकाओं में पूज्यवर ने बताया कि हेय-उपादेय, आत्मा एवं शरीर, निमित्त-उपादान, व्यवहार-निश्चय, कारण-कार्य की सांगोपांग परिभाषा बताने वाला है यह ग्रंथराज, इस ग्रंथ के माध्यम से प्रत्येक प्राणी सुखी हो सकता है। पूज्य मुनिश्री ने कहा कि- मंदिर या प्रवचन तो धर्म की पाठशाला है किन्तु उसकी प्रयोगशाला तो घर-ऑफिस-दुकान-खेत आदि है, वहां पर जो काम करते हुए भी प्रतिपल इन कारिकाओं को ध्यान में जो रखता है वही जीवन में आनन्दित रह सकता हे। पूज्य मुनिश्री ने अंत में इन सभी महत्वपूर्ण कारिकाओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भावनाभव नाशनी नामक पुस्तक में ये सब अर्थ सहित है, इनका प्रतिदिन पाठ करें।
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