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मोहन यादव सरकार के 60 दिन… जनजातीय समाज की समृद्धि और सम्मान का पूरा हो रहा संकल्प

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मध्यप्रदेश (विश्व परिवार)- देश में जनजातीय समाज को विकास की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विकसित भारत के संकल्प को पूरा करने के लिए प्रतिबद्धता के साथ आगे बढ़ रही है. मध्य प्रदेश की डॉ. मोहन यादव की सरकार पीएम मोदी की हर गारंटी को पूरा करने के मिशन में जुटी है. मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद कमजोर वर्ग के हितों को लेकर मुख्यमंत्री डॉ.यादव ने तेंदूपत्ता संग्राहकों के हित में बड़ा फैसला किया. सरकार ने इस वर्ग के लोगों के पारिश्रमिक को 3 हजार से बढ़ाकर 4 हजार प्रति मानक बोरा कर दिया. इससे प्रदेश के 35 लाख से अधिक तेंदूपत्ता संग्राहकों को लाभ होगा.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनजातीय कल्याण की दिशा में ऐतिहासिक कार्य किए हैं. 2014 के बाद जनजातीय कल्याण के बजट में कई गुना बढ़ोत्तरी हुई है. पहले जहां 167 एकलव्य विद्यालय हुआ करते थे, मोदी सरकार ने इनकी संख्या बढ़ाकर 690 कर दी है. मध्यप्रदेश को भी इसका फायदा मिला है.

जनजातीय जिलों में बहुउद्देशीय केंद्र

प्रधानमंत्री जन-मन योजना के तहत प्रदेश के विशेष पिछड़ी जनजाति बहुल जिलों में 7 हजार 300 करोड़ रु से अधिक की लागत से आंगनवाड़ी केंद्रों, छात्रावासों, बहुउद्देश्यीय केंद्रों और आवासों के निर्माण का निर्णय लिया गया है. इस योजना के तहत प्रदेश के 23 जिलों की 4 हजार 597 बसाहटों में निवास करने वाले बैगा, सहरिया, भरिया जनजाति के 11 लाख से अधिक जनजातीय भाई बहनें लाभान्वित होंगे.

इसी तरह आहार अनुदान योजना में विशेष पिछड़ी जनजातियों की बहनों के खातों में 29 करोड़ रु से अधिक की धनराशि अंतरित की गयी है. मोदी सरकार ने 200 करोड़ रूपये की लागत से देशभर में जनजातीय स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालय स्थापित करवा रही है. जनजातियों के प्रमुख जननायक टंट्या मामा, भीमा नायक, खज्जा नायक, संग्राम सिंह, शंकर शाह, रघुनाथ शाह, रानी दुर्गावती, रानी कमलापति, बादल भोई, राजा भभूत सिंह, रघुनाथ मंडलोई भिलाला, राजा ढिल्लन शाह गोंड, राजा गंगाधर गोंड, सरदार विष्णु सिंह उईके जैसे जनजातीय नायकों को मध्यप्रदेश सरकार ने पूरा सम्मान दिया है.

प्रधानमंत्री मोदी की गारंटी से संवरी जिंदगी

जनजातीय नायकों को समुचित सम्मान दिलाने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बिरसा मुंडा के जन्मदिन 15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर मनाने की पहल की. इसके साथ ही प्रदेश के हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम गोंड रानी कमलापति के नाम पर कर जनजातीय समाज को गौरवान्तवित किया. प्रदेश में डबल इंजन सरकार के प्रयासों से वन क्षेत्रों में रहने वाले जनजातीय समाज के लोगों को वनाधिकार पट्टा मिला और पेसा एक्ट लाकर उनके जीवन में नया सवेरा लाने का काम हुआ है. जनजातीय क्षेत्रों में प्राथमिक पाठशालाओं, माध्यमिक पाठशालाओं, हाईस्कूल, हायर सेकेंडरी और कन्या शिक्षा परिसरों की संख्या तेजी से बढ़ रही है.

जनजातीय युवाओं को रोजगार से जोड़ा

जनजातीय युवाओं को स्व-रोजगार के नए अवसर उपलब्ध करवाने के लिये प्रदेश में बिरसा मुंडा स्व-रोजगार योजना, टंट्या मामा आर्थिक कल्याण योजना और मुख्यमंत्री अनुसूचित जनजाति विशेष परियोजना वित्त पोषण योजना लागू की गई है. विशेष पिछड़ी जनजातीय बैगा, भारिया, सहरिया, कोल समाज की बहनों को एक हजार रुपया प्रतिमाह आहार अनुदान दिया जा रहा है. डबल इंजन सरकार के प्रयासों से जनजाति कल्याण की कई योजनाओं का लाभ जमीनी स्तर तक पहुंच रहा है. इससे सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक स्तर पर जनजातीयों का विकास हुआ है और वह तीव्र गति से समाज की मुख्यधारा में आकर राष्ट्र निर्माण में अपनी भूमिका निभा रहे हैं.

जनजातीय वर्ग के कल्याण के लिए कार्य

मध्य प्रदेश की बैगा, भारिया और सहरिया जनजातियों के उत्थान के लिए प्रदेश सरकार ने खाका तैयार किया है. मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव के निर्देश पर मध्य प्रदेश सरकार ने प्रदेश में पीएम जनमन के तहत होने वाले विभिन्न विकास कार्यों एवं कल्याण गतिविधियों का रोडमैप तैयार कर लिया है. इसके तहत प्रदेश में विशेष पिछड़ी जनजातीय क्षेत्रों का कायाकल्प करने की तैयारी है. रोडमैप के अनुसार 100 जनसंख्या वाले गांव या बसाहटों को भी पक्की सड़क से जोड़ा जाएगा. 981 संपर्क विहिन बसाहटों में 2403 किलोमीटर लंबाई की 978 सड़कें बनाई जाएंगी. इन सड़कों पर 50 पुल बनाने की तैयारी की गई है. रोडमैप के अनुसार इस पर तीन साल में 2354 करोड़ रुपए खर्च होंगे.

जनजातीय वर्ग की भूमिका महत्वपूर्ण

देश की कुल जनसंख्या में जनजातीय जनसंख्या का प्रतिशत 8.63 है और मध्यप्रदेश में जनजातीय समुदाय की संख्या तकरीबन 1 करोड़ 53 लाख है, जो कुल आबादी का 21 प्रतिशत से अधिक है. प्रदेश के 20 जिलों के 89 विकासखंड जनजातीय समुदाय बहुल हैं. राज्य विधानसभा की 47 सीटें और लोकसभा की 6 सीटें अनुसूचित जनजातीय समुदाय के लिए आरक्षित हैं. 35 सीटें ऐसी हैं जिनमें जनजातीय मतदाताओं की भूमिका निर्णायक है.

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