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ब्लड कैंसर के इलाज का बदलता स्वरूप

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(विश्व परिवार)। ब्लड कैंसर या हेमेटोलॉजिकल कैंसर अलग-अलग प्रकार के होते हैं जो खून, बोन मेरो और लिम्फेटिक सिस्टम को प्रभावित करते हैं। इनके लक्षण और प्रभाव एक-दूसरे से काफी अलग हो सकते हैं। इस वजह से इनके लक्षणों की समझ होना बहुत ज़रूरी है, ताकि जल्द से जल्द रोकथाम के संभावित उपायों और कारगर इलाज पर ध्यान दिया जा सके। ग्लोबोकैन 2022 रिपोर्ट के अनुसार भारत में 70,000 से ज़्यादा लोगों की मृत्यु ब्लड कैंसर से होती है। इस रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि सालाना ब्लड कैंसर के 1,20,000 नए मामले सामने आते हैं, जिनमें 30,000 बच्चे भी शामिल हैं।
ब्लड कैंसर के प्रकार
ब्लड कैंसर के मुख्य रूप से तीन प्रकार हैं: ल्यूकेमिया, लिम्फोमा और मल्टीपल मायलोमा
ल्यूकेमियाः यह कैंसर बोन मेरो और खून को प्रभावित करता है। ल्यूकेमिया एक्यूट (जल्द बढ़ने वाला), या क्रोनिक (धीरे बढ़ने वाला) हो सकता है। इसके भी कुछ प्रकार होते हैं जैसे- एक्यूट माइलॉयड ल्यूकेमिया (एएमएल), एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया (एएलएल), क्रोनिक माइलॉयड ल्यूकेमिया (सीएमएल), और क्रोनिक लिम्फोसाइटिक ल्यूकेमिया (सीएलएल)। एक्यूट ल्यूकेमिया में जान का खतरा होता है इसलिए इसके मरीज़ को जल्द इलाज की ज़रुरत होती है, वहीं क्रोनिक ल्यूकेमिया का इलाज समय के साथ इसकी गंभीरता के आधार पर किया जा सकता है।
लिम्फोमाः इस कैंसर की शुरुआत लिम्फैटिक सिस्टम में होती है, जो इम्यून सिस्टम का हिस्सा होता है। लिम्फोमा के दो मुख्य प्रकार हैं- हॉजकिन लिंफोमा और नॉन-हॉजकिन लिंफोमा। नॉन-हॉजकिन लिंफोमा बहुत सामान्य है और इसके भी कई प्रकार होते हैं, जिनके इलाज के तरीके भी अलग-अलग हैं।
मल्टीपल मायलोमाः यह कैंसर बोन मेरो में पाई जाने वाली एक प्रकार की वाइट ब्लड सेल, प्लाज़्मा सेल्स में होता है। मल्टीपल मायलोमा में शरीर हेल्दी ब्लड सेल्स और एंटीबॉडी बनाने में सक्षम नहीं होता, जिससे रोगप्रतिरोधक क्षमता कम होने के साथ-साथ हड्डियां कमज़ोर और किडनी खराब हो जाती है। ध्यान देने वाली बात यह भी है कि छत्तीसगढ़ में मल्टीपल मायलोमा के मामले बढ़ते जा रहे हैं।

संभावित कारण
ब्लड कैंसर के वास्तविक कारणों को अभी तक सटीकता से समझा नहीं जा सका है, लेकिन कुछ संभावित कारणों का पता लगाया गया है।

1. जेनेटिक यानि अनुवांशिक कारण: आम तौर पर ब्लड कैंसर जींस की वजह से नहीं होते लेकिन कुछ रेयर मामलों में ऐसा हो सकता है।
2. केमिकल्स के संपर्क में आना: बेंज़ीन और हर्बीसाइड जैसे ग्लाइफोसेट के संपर्क में आने से ब्लड कैंसर का खतरा बढ़ जाता है।
3. रेडिएशन के संपर्क में आना: अगर कोई व्यक्ति पहले कभी रेडिएशन के संपर्क में आया हो जैसे किसी कैंसर के इलाज या न्यूक्लियर एक्सीडेंट के दौरान, तो इससे ब्लड कैंसर का खतरा बढ़ जाता है।
4. उम्र और लिंग: बढ़ती उम्र के साथ ब्लड कैंसर का खतरा भी बढ़ जाता है, और सामान्यतया महिलाओं से ज़्यादा पुरुषों को इसका खतरा होता है।
5. वायरल इन्फेक्शन: एपस्टीन-बार वायरस जैसे कुछ वायरस लिंफोमा का कारण बन सकते हैं।

ब्लड कैंसर के लक्षण
ब्लड कैंसर के लक्षणों को समझना आसान नहीं होता है, क्यों कि ये अक्सर किन्हीं छोटी बीमारियों के लक्षणों जैसे ही लगते हैं। ब्लड कैंसर के सामान्य लक्षण हैं-

· थकान व कमज़ोरी (जिसका कारण स्पष्ट न हो)
· बुखार व रात में पसीना आना
· बार-बार संक्रमण
· आसानी से चोट लगना और खून बहना
· लिम्फ नोड्स का बड़ा हो जाना
· हड्डियों में दर्द और कमज़ोरी

ये लक्षण इस बात पर निर्भर करते हैं कि ब्लड कैंसर किस प्रकार का है और इसकी गंभीरता कितनी है। इन लक्षणों को कैंसर की शुरुआती स्टेज में समझना आसान नहीं है, जिस वजह से कैंसर की पहचान तब हो पाती है, जब ये गंभीर रूप ले लेता है।
स्क्रीनिंग और जल्द पता लगाना
कारगर इलाज के लिए ब्लड कैंसर का जल्द पता लगना बहुत ज़रूरी है। कुछ ब्लड कैंसर जल्द पहचाने जा सकते हैं, जैसे क्रोनिक लिम्फोसाइटिक ल्यूकेमिया (सीएलएल) और मल्टीपल मायलोमा की पहचान गंभीर लक्षणों से पहले ही रोटीन ब्लड टेस्ट्स से की जा सकती है, जिनमें कम्पलीट ब्लड काउंट (सीबीसी) शामिल है। अगर कैंसर की संभावना अधिक हो तो बोन मेरो एस्पिरशन और बायोप्सी जैसे खास टेस्ट्स किए जाते हैं।
बचाव के उपाय
ब्लड कैंसर से बचाव के लिए कोई उपाय नहीं है जो निश्चित तौर पर काम करे, लेकिन लाइफस्टाइल में बदलाव करके कैंसर के खतरे को कम किया जा सकता है।
हानिकारक केमिकल्स के संपर्क में आने से बचना: बेंज़ीन और ग्लाइफोसेट जैसे कार्सिनोजेंस से खुद को बचाकर, कैंसर के खतरे को कम किया जा सकता है।
एक हेल्दी लाइफस्टाइल: संतुलित आहार, नियमित व्यायाम और तंबाकू से परहेज करना स्वास्थ्य लाभ में सहायक होते हैं, जिससे कैंसर का खतरा काफी हद तक कम हो जाता है।
अनावश्यक रेडिएशन के संपर्क में आने से बचना: मेडिकल इमेजिंग (सीटी स्कैन) और रेडिएशन के दूसरे माध्यमों के संपर्क में कम आने से कैंसर का खतरा कम होता है।
इलाज प्रकिया में सुधार
रामकृष्ण केयर हॉस्पिटल में मेडिकल ऑन्कोलॉजी और बीएमटी डिपार्टमेंट के प्रमुख और सीनियर कंसलटेंट, डॉ. रवि जायसवाल के अनुसार पिछला दशक ब्लड कैंसर के इलाज के लिए बहुत प्रगतिशील रहा है, क्यों कि इसकी इलाज प्रक्रिया में काफी सुधार हुआ है, जिससे मरीज़ों की जान बचाने की संभावना बढ़ गई है। ब्लड कैंसर के प्रकार, बीमारी की गंभीरता और किसी जेनेटिक म्यूटेशन या असामन्यता के आधार अब विशेष पद्धति से इलाज किया जाता है।
1. कीमोथेरेपी और टार्गेटेड थेरेपी
सामान्यतया की जाने वाली कीमोथेरेपी आज भी ब्लड कैंसर के इलाज के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। नई टार्गेटेड थेरेपीज़ कैंसर सेल्स में किसी विशेष जेनेटिक बदलाव को ठीक करने में सहायक होती हैं जिससे इलाज प्रक्रिया और भी सटीक और कारगर हो गई है।
2. इम्यूनोथेरेपी
इस पद्धति में शरीर की ही रोगप्रतिरोधक क्षमता का प्रयोग कैंसर के इलाज में किया जाता है। सीएआर टी-सेल थेरेपी जैसे इम्यूनोथेरेपी के नए तरीकों से सामान्य थेरेपीज़ से ठीक न हो पाने वाले कुछ प्रकार के ल्यूकेमिया और लिम्फोमा को ठीक करने में बहुत मदद मिली है।
3. एलोजेनिक स्टेम सेल ट्रांसप्लांटेशन
इसे बोन मेरो ट्रांसप्लांटेशन भी कहा जाता है। इससे ल्यूकेमिया और लिम्फोमा जैसे गंभीर कैंसर का इलाज संभव है, जिसमें मरीज़ के बोन मेरो की जगह डोनर की हेल्दी स्टेम सेल्स ट्रांसप्लांट कर दी जाती हैं।
4. मल्टीपल मायलोमा और लिम्फोमा के लिए ऑटोलोगस स्टेम सेल ट्रांसप्लांटेशन
5. कैंसर की गंभीरता की जांच और पर्सनलाइज़्ड मेडिसिन
साइटोजेनेटिक और मॉलिक्यूलर टेस्टिंग से कैंसर की गंभीरता के हिसाब से मरीज़ों को अलग-अलग केटेगरी में बांटना संभव हो पाया है। जैसे कि ल्यूकेमिया अगर गंभीर नहीं है तो कम इंटेंसिव थेरेपी का प्रयोग होता है, वहीं अगर इसकी गंभीरता बढ़ गई है तो टार्गेटेड थेरेपी और बोन मेरो ट्रांसप्लांट का सहारा लिया जाता है। मरीज़ों को अलग-अलग केटेगरी में बांटने से हर मरीज़ की बीमारी की गंभीरता के आधार पर उसका इलाज हो पा रहा है।
6. सीएआर टी-सेल थेरेपी
इस पद्धति में मरीज़ की टी-सेल्स में बदलाव किया जाता है ताकि वो कैंसर सेल्स से लड़ सकें। इस थेरेपी से ऐसे ब्लड कैंसर्स का इलाज संभव हो पाया है, जिनपर सामान्य पद्धति से इलाज का कोई असर नहीं होता है।
दशकों से ब्लड कैंसर के मरीज़ों का इलाज मुख्य रूप से कीमोथेरेपी और रेडिएशन के माध्यम से ही किया जाता था, लेकिन आधुनिक तकनीक होने के बाद भी ये पर्याप्त नहीं थे। अत्याधुनिक पद्धति से पर्सनलाइज़्ड कैंसर केयर में इम्यूनोथेरेपी, टार्गेटेड थेरेपी और स्टेम सेल ट्रांसप्लांट का प्रयोग आवश्यकता अनुसार किया जाता है। इस दिशा में निरंतर प्रतिबद्धता के साथ ब्लड कैंसर के इलाज के लिए रामकृष्ण केयर हॉस्पिटल की विशेष टीम ने पूरे मध्य भारत में काफी सफलता प्राप्त की है।

 

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