बाजना (विश्व परिवार)। संत शिरोमणि आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनिश्री 108 संधानसागर जी महाराज ने वर्णमाला की प्रचवन माला के क्रम में -ऐ के ऊपर प्रवचन करते हुए कहा कि अपने ऐब देखो-दूसरे के नहीं, पूज्य मुनिश्री जी ने चार बातों पर अपनी वाणी को केन्द्रित रखा। ऐब देखना, ऐब निकालना, ऐब से बचना, ऐब से बचाना, आदमी की सबसे बड़ी कमी है, दूसरों की कमी निकालना, उसने सागर से कहा सागर तुम विशाल हो परन्तु पानी खारा है, चांद को देखा कहा चांद तुम सुन्दर हो पर काला दाग है, कोयल को देखा अच्छा गाती है परन्तु काली हो, गुलाब से कहा सुगन्धित-सुन्दर हो परन्तु कांटो से घिरे हो, मोर तुम अच्छा नाचते हो परन्तु बोली बेसुरी है। पूज्य मुनिश्री जी ने कहा इसके बाद एक फरिश्ता आया उसने कहा- अपने ऐब देखो एवं ऐब निकालों दूसरे के नहीं। साथ ही ऐब से बचो, ऐबी से भी बचो, कोयले के पास बैठने से कालापन तो लगेगा ही। शराब की दुकान के बाहर दुध भी पिओगे तो शराबी ही कहलाओगे, इसलिये ऐबी से बचो और ऐब निकालो अपने सगे-संबंधी-परिवार-समाज के भीतर से ऐब को निकालने का पुरूषार्थ करो। पूज्य मुनिश्री जी ने दूसरा शब्द लिया ऐंठ अर्थात अकड़, अकड़ तो खास मुर्दे की पहचान है, झुकता वहीं जिसमें जान है, अकडऩे वाला टूट जायेगा, ऐंठ मारना, ऐंठ दिखान, ऐंठ निकालना, ऐंठ निकल जाना। पूज्य मुनिश्री जी ने इन चारों बिन्दुओं पर भी संक्षेप में प्रकाश डाला। पूज्य मुनिश्री जी ने कहा कि ऐब निकालो, ऐंठ दूर करो और ऐश से क्यों बल्कि ऐशोआराम की बात न करो। सुविधा हमारे जीवन की दुविधा है- अंत में कहा कि ऐब-ऐंठ-ऐश से बचो तभी परम ऐश्वर्य को प्राप्त कर पायेंगे, उसी परम ऐश्वर्य को अपने भीतर धारण करने वाले सभी दुगुर्गों से बच जाता है। आज मुनिद्वय के दर्शनार्थ विदिशा से श्रीमान अशोक जी जैन एवं राजीव जी जैन ने उपस्थित हो पूर्ण धर्म लाभ लिया।
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