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ऐसा कोई भी अक्षर नहीं है जिसमे मन्त्र बनने का सामर्थ ना हो, ऐसी कोई भी वनस्पति नहीं है जिसमे औषधि बनने का सामर्थ न हो

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  • 108 निर्यापक श्रमण श्री समतासागर महाराज जी

डोंगरगढ़ (विश्व परिवार)। श्री दिगम्बर जैन चंद्रगिरी अतिशय महातीर्थ क्षेत्र में 108 आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी कि समाधी स्थली में 108 निर्यापक श्रमण श्री समतासागर महाराज जी ने कहा कि ऐसा कोई भी अक्षर नहीं है जिसमे मन्त्र बनने का सामर्थ न हो। वर्णमाला के जितने भी अक्षर हो देशी – विदेशी ऐसा कोई भी अक्षर नहीं है जिसमे मन्त्र बनने का सामर्थ न हो। वर्णमाला का प्रत्येक अक्षर मन्त्र बन सकता है और प्रकृति में आने वाली प्रत्येक वनस्पति औषधि बन सकती है। ठीक इसी तरह से यह भी कहा गया है कि ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं जो सर्वथा अयोग्य हो। उसमे कोई विशेषता न हो, कोई गुण ही न हो ऐसा कोई व्यक्ति मिलेगा ही नहीं। गुणों में हिन अधिकता हो सकती है। किसी में अच्छाइयाँ ज्यादा हो सकती है, किसी में बुराइयाँ ज्यादा हो सकती है। लेकिन बुराइयाँ ज्यादा होने के बाद भी कोई न कोई अच्छाई उसके पास हो सकती है | इसलिए नीतिकार कहते हैं कि ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं है जो सर्वथा अयोग्य हो। अब विशेष बात यह है कि इन सब में संयोजना करने वाला दुर्लभ है |

वर्ण मिलाकर शब्द बनाना फिर शब्द मिलाकर मन्त्र बनाना आदि सब संयोजन करने वाला दुर्लभ है जो इसका ज्ञाता माना जायेगा। अगर ज्ञाता है तो वर्णमाला के सारे अक्षर मन्त्र बन सकते हैं और ज्ञाता नहीं है संयोजना उसकी सही नहीं है तो बिगड़ जायेगा काम। दूसरी बात किस वनस्पति को कितने अनुपात में मिलाना उसके गुण – दोष जानकर मिलाकर औषधि बनाना | इसी प्रकार व्यक्तियों को पहचानकर उनके गुणों को समझकर के उपयोग करने पर इस धरती पर विरला ही पुरुष होता है। हमारे गुरुदेव एक ऐसे कुशल पारखी थे जो अच्छाई में से अच्छाई तो निकालते ही थे, कभी – कभी बुराइयों में से भी अच्छाइयाँ निकाल लेते थे |

उनके चरणों में आने वाला व्यक्ति कभी निराश होकर नहीं गया | कोई विशेष जन आया तो उसे समय देकर संतुष्ट किया, मार्गदर्शन दिया उनकी योग्यता के अनुसार, कोई तर्क – वितर्क करने आया तो उसे समय देकर तर्क – वितर्क देकर संतुष्ट किया, कोई सामान्य जन आया तो उसे देखकर संतुष्ट कर दिया, जब कोई विकलांग या वृद्ध आया तो उसे भी करुणा कि दृष्टि से देखकर संतुष्ट कर दिया। गुरुवर के दरबार में सभी प्रकार के रास्ते थे – यदि कोई भरकर के आया तो उसे खाली कराने कि कला भी गुरुवर के पास थी और कोई जरुरतमंद खाली हाँथ आया तो उसकी झोली भरने कि कला भी गुरुवार के पास थी। जहाँ जो भी दिखा, जहाँ जो भी आवश्यकता महसूस हुई गुरुदेव ने अपनी साधना से, अपने तपोबल से, अपनी दूरदर्शिता से, अपने वात्सल्य से, स्नेह से प्राणी मात्र का कल्याण किया है। आज हम सभी उनकी अंतिम तपो भूमि, साधना स्थली के साथ – साथ समाधि स्थली अतिशय क्षेत्र चंद्रगिरी डोंगरगढ़ जो अपने आपमें महातीर्थ बन चुकी है उपस्थित है। बार – बार मन करता है कि गुरुवर भव – भवान्तर का कितना सातिशय पुण्य लेकर आये थे कि उनकी संयोजना से बड़े – बड़े काम आसान होते गए, बड़े – बड़े काम सरल होते गए | जितने भी पूरे देश में जो कार्यकर्त्ता बने है ये पैदायशी कार्यकर्त्ता थोड़े ही थे, इन्हें तरासकर तैयार किया है । जो जय जयकार उनके सामने होता था मिनट टु मिनट आज भी हो रही है। चंद्रगिरी का मंदिर तैयार हो रहा है | आचार्य श्री कि कल्पना, दूरदर्शिता जहाँ कलाकार कि कला फैल हो जाती थी उसके आगे कि कला गुरु के पास होती थी, शिल्पियों को मार्गदर्शन देते थे |

शिष्य, मुनि, आर्यिका सभी में कुछ न कुछ योग्यता होगी। योग्यता हो या न हो उन्होंने योग्यता का आंकलन किया और तरासकर यह स्वरुप प्रदान किया। हमारा संघ संकल्पित है गुरु के प्रति | एक भव में या जन्म जन्मान्तर तक जब तक उनके निकट न पहुच जाये, जब तक उनके जैसा न बन जाये, जब तक उनको पुनः प्राप्त न करले हम सबकी एक – एक स्वास गुरुवर के लिये समर्पित है।केवल पिछियों वालो के लिये ही नहीं करोडो – अरबो – खरबों उनके भक्त भी यही भावना भाते हैं कि वो जहाँ – जहाँ जायेंगे हम भी उनके पीछे – पीछे जायेंगे और मोक्ष भी प्राप्त करेंगे, ये भावना भाते हैं।आने वाले दिनों में 1 से 6 फरवरी तक आयोजन है आयोजन में विशेष प्रयोजन है | गुरुवर ने घोर उपसर्ग सहन करके इतनी प्रतिकुलता में भी इतनी उत्कृष्ट समाधि, इतनी जागृत समाधि, अपना आदर्श प्रस्तुत किया है। उस साधना के लिये हम अर्घ्य समर्पित करेंगे | इसलिए जो जहाँ भी है अपने सारे कार्य को गौण करके, सारे कार्यक्रमों को निरस्त करके एक लक्ष्य डोंगरगढ़ चंद्रगिरी पधारने का बनाना है और आराधना के रूप में सिद्ध चक्र मंडल विधान में लाभ ले। दोपहर में आचार्य श्री कि पूजा करके इस आयोजन को आयुष्ठान बनाये | आर्यिकाएं इतनी दूर से पद विहार कर भोपाल से आये हैं | अपने गुरुवर के प्रति अपने भाव अप्रीत करेंगे।जो इस यात्रा को साथ चलकर सफल बना रहे हैं। सभी मुनि आर्यिका संघ उपस्थित है सभी इस आयोजन को अनुष्ठान बनाने में लगे हैं | आचार्य श्री का जीवन महत्वपूर्ण रहा है संघ, समाज, साधना, साहित्य और संस्कृति के लिये। अनुशासन, अनुकम्पा अपने गुरुवर के जीवन में एक साथ दिखाई देती थी। उन्हें किसी कि जरुरत नहीं लेकिन हम उनके लिये कुछ करते हैं तो वह अपन अपने लिये करते हैं | उन्हें सहारे कि जरुरत हो या न हो यदि हम उनको सहारा देते हैं तो हमें मोक्ष मार्ग का सहारा, रत्नात्रय का सहारा मिलता है | आचार्य श्री कि उदारता, दूरदर्शिता, मनो विनोद हमारे गुरुवर के जीवन में झलकते थे| अपनी तकलीफ कभी नहीं बताई और अपने शिष्यों कि तकलीफ उनके चेहरे से ही समझ जाते थे । जो आवश्यकता होती थी उसके अनुरूप देकर संतुष्ट करते थे |

गुरुवर बात जरा गहरी है, गुरुवर बात जरा गहरी है, क्योंकि हम सबकी जिन्दगी आप में ही ठहरी है | इस अवसर पर मुनि श्री आगम सागर महाराज एवं मुनि श्री पुनीत सागर महाराज, ऐलक श्री धैर्य सागर महाराज ऐलक श्री निश्चयसागर महाराज ऐलक श्री निजानंद सागर महाराज सहित आर्यिका गुरुमति माताजी,आर्यिका दृणमति माताजी सहित बड़ी संख्या में आर्यिकायें मौजूद थी | माताजी ससंघ के साथ भोपाल से पद विहार कर जो लोग चाद्रगिरी आये थे उनको तिलक लगाकर, श्रीफल – मोमेंटो भेंट कर अध्यक्ष सेठ सिंघई किशोर जैन, निर्मल जैन, सुभाष चन्द जैन, चंद्रकांत जैन, सप्रेम जैन, डोंगरगढ़ जैन समाज के अध्यक्ष श्री अनिल जैन, कोषाध्यक्ष श्री जय कुमार जैन, सचिव श्री यतीश जैन, सुरेश जैन, निशांत जैन, विद्यातन पदाधिकारी श्री निखिल जैन, दीपेश जैन, अमित जैन, सोपान जैन, जुग्गू जैन, यश जैन, प्रतिभास्थली के अध्यक्ष श्री पप्पू भैया सहित समस्त पदाधिकारियों ने उनका सम्मान किया। विद्यातन के अध्यक्ष श्री विनोद बडजात्या ने बताया कि 1 फरवरी 2025 से 6 फरवरी 2025 तक होने वाले प्रथम समाधि स्मृति महोत्सव कि पूर्ण रूपरेखा बना ली गयी है जिसमे सभी साथियों को कार्यविभाजन कर आवास, यातायात, भोजन, सिक्यूरिटी आदि व्यवस्था सुनिश्चित कर दी गयी है एवं देश – विदेश के सभी लोगो से करबद्ध निवेदन किया है कि सभी उक्त कार्यक्रम में अपनी गरिमामयी उपस्तिथि दर्ज कर धर्म लाभ लेवे।

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