Home धर्म भावलिंगी संत श्रमणाचार्य श्री 108 विमर्शसागर जी महामुनिराज

भावलिंगी संत श्रमणाचार्य श्री 108 विमर्शसागर जी महामुनिराज

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चलो प्रभु के साथ चलो, चलो गुरु के साथ चलो ।
जीवन सुखी बनाना है, चलो धर्म के साथ चलो ।
निर्मोही जीवन, हो-हो-2, निष्काम बनाए रे ।।
जीवन है पानी की बूंद, कब मिट जाए रे ॥
मनुष्य जीवन हमें प्राप्त हुआ है। हम विचार यह करें कि हम अपने जीवन को भोग रहे हैं या जीवन जी रहे हैं। यदि गहनता से विचार किया जाए तो आप पायेंगे, अपने जीवन को मात्र भोग रहे हैं। हमेशा ध्यान रखो पुण्य-पाप के आधीन जो जीवन जिया जाता है वह मात्र जीवन को भोग है, और जो धर्म के साथ जीवन जिया जाता है वही जीवन वास्तविक जीवन है जो वास्तव में जिया जा रहा है। यह मांगलिक प्रवचन संच शिरोमणि भावलिंगी संत दिगम्बराचार्य श्री 108 विमर्शसागर जी मुनिराज ने गाजियाबाद के वसुन्धरा जैन मंदिर में उपस्थित धर्मस्य को सम्बोधित करते हुए प्रदान किया ।
आचार्य श्री ने बताया मनुष्य जीवन के अन्त में अपने साथ मात्र दो ही लेकर जाता है पहला कर्म और दूसरा धर्म । पुण्य और पाप के भेद से कर्म दो भेद रूप है। कर्म के साथ धर्म हो भी सकता है और नहीं भी, किन्तु धर्म के साथ पुण्य कर्म के फल अवश्य दिखायी देते हैं।
02 फरवरी 2025 को आचार्य श्री ससंघ वसुन्धरा गाजियाबाद से पर विहार करते हुए विवेक बिहार जैन मंदिर में पहुँचे। स्थानीय समाज ने आर संघ की भव्य मंगल गवानी की।

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