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हे निराकार जब तुम्हें दिया आकार तो स्वयं साकार हो गया -108 निर्यापक श्रमण श्री समतासागर महाराज जी

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डोंगरगढ़ (विश्व परिवार)। “हीरा तो केवल हीरा है,फर्क केवल इतना है, एक हीरा खान के अंदर है और एक हीरा शान पर चड़ा हुआ है ।” उसी प्रकार हम सभी की आत्मा है, जो हीरा होते हुये भी खान के अंदर पड़े हीरा के समान है”। हीरा मुख से न कहे लाख हमारो मोल” उपरोक्त उदगार निर्यापक श्रमण समतासागर महाराज ने श्री सिद्धचक्र महामंडल विधान में आचार्य गुरुदेव विद्यासागरजी महाराज की तपोस्थली चंद्रगिरी तीर्थ डोंगरगढ़ में प्रातःकालीन धर्म सभा को सम्वोधित करते हुये व्यक्त किये” – मुनि श्री ने कहा कि हमारी तुम्हारी आत्मा की कोई किमत नहीं लेकिन वही हमारी आत्मा परमात्मा बने तो शान पर चड़े हुये चमकदार आभावान हीरे के समान है।आप सभी लोग भी अपने घर परिवार और सभी सुख सुविधाओं को छोड़कर असुविधाओं के साथ इस चंद्रगिरी तीर्थ पर समवशरण में बैठकर श्री सिद्धचक्र महामंडल विधान की आराधना वह भी आचार्य गुरुदेव विद्यासागर जी महाराज की समाधि के एक वर्ष पूरे होंने पर उन पावन तिथियों में उन सिद्धों की आराधना कर रहे हो जो कि अदृश्य तथा अमूर्त है।

जिनको देखा नहीं जा सकता वह सिद्ध परमात्मा शरीरातीत तथा कर्मातीत है एवं शुद्ध तत्व के रूप में है। आगम कहता है कि “दृश्यमान है तो देखिये अदृश्य अमूर्त है तो उसके बारे में चिंतन कीजिये।” गुरुवर आचार्य श्री ने शुद्ध आत्मतत्व का प्रतिपादन करते हुये “मूकमाटी” महाकाव्य में पक्तियाँ लिखी है ” यह जो कुछ भी दिख रहा है, सो मै नहीं हूं और मेरा भी नहीं है” मुझमें देखने की शक्ति है | मै सभी का सृष्टा हूँ और सभी का दृष्टा हूँ ज्ञेय जगत में जितने भी दृश्य है उन दृश्यों को हमारी चक्षु इंद्रिय पकड़ सकती है लेकिन चक्षु इंद्रिय के पकड़ने की भी एक सीमा और मर्यादा हुआ करती है। दृश्य होते हुये भी हमारी चक्षु इंद्रिय उसे पकड़ नहीं पाती है। अदृश्य तो हमारी पकड़ से परे है ही दृश्य पदार्थ भी हमारी पकड़ से परे हो जाते है | मुनि श्री ने कर्म बंध की स्थिति से परिचय कराते हुये कहा कि शरीर में रहने वाली इंद्रियां पदार्थों का परिचय प्राप्त करती है तथा उनमें प्रवर्त होती है, तथा अपनी प्रवर्ती में राग द्वेष करती है, राग द्वेष से ही कर्म का बंध होता है तथा कर्म के बंध से उसे नयी गति मिलती है और उसी गति में उसे शरीर मिलता है तथा शरीर में इंद्रियां मिलती है और जब इंद्रियां विषयों की ओर जाती है और विषयों में राग द्वेष करती है तो पुन्ह: कर्म का बंध होता है और यह चक्र निरंतर चलता रहता है । “इस संसार चक्र को जिन्होंने समयसार का अनुभव करते हुये तोड़ दिया ऐसे ही सिद्ध भगवान हमारे लिये अदृश्य, अमूर्त, अरस, अरुप, अगन्ध स्वभाव के है। जिनके बारे में लिखा नहीं जा सकता।

मुनि श्री ने कहा जो स्वभाव सिद्धों का है वही स्वभाव हमारा तुम्हारा है। आचार्य गुरुदेव हमेशा कहा करते थे कि भगवान में और हमारी – तुम्हारी आत्मा में कोई खास अंतर नहीं है जो फरक है वह उपादान की दृष्टि से है। हम जो सिद्धों की आराधना कर रहे है वह अपने यथार्थ स्वरुप की ही आराधना कर रहे है उन्होंने इन पक्तियों को कहते हुये विराम दिया “हे निराकार जब तुम्हें दिया आकार,स्वयं साकार हो गया।  बना रहा था बहुत दिनों से मूर्ती तुम्हारी अलख – अलेखी, आज हुई पूरी तो मैंने शक्ल स्वंय अपनी ही देखी” इससे भी बड़कर काम कर गयी पूजन बेला, चला चड़ाने अर्घ्य स्वयं तो मेरा ही श्रंगार हो गया। हे निराकार जब तुम्हें दिया आकार तो स्वंय साकार हो गया” मुनि श्री ने कहा कि सिद्धों को अर्घ्य समर्पण करने से हमारी ही अपनी आत्मा का श्रंगार हो रहा है। उपरोक्त जानकारी देते राष्ट्रीय प्रवक्ता अविनाश जैन विद्यावाणी एवं प्रचार प्रमुख निशांत जैन, सप्रेम जैन ने बताया प्रातः कालीन बेला में भगवान का अभिषेक एवं शांतिधारा की गई तत्पश्चात आचार्य गुरुदेव विद्यासागरजी महाराज के परोक्ष तथा वर्तमान आचार्य समयसागर जी महामुनिराज के आशीर्वाद से निर्यापक मुनि समतासागर महाराज मुनि श्री आगमसागर महाराज एवं मुनि श्री पुनीत सागर महाराज आर्यिकारत्न गुरुमति माताजी एवं आर्यिकारत्न दृणमति माताजी,ऐलक धैर्यसागर जी ऐलक निश्चयसागर जी,ऐलक निजानंद सागर महाराज की उपस्थिति मेंअर्हम जीव दया परिवार दिल्ली द्वारा मुनि श्री प्रणम्य सागर महाराज की प्रेरणा से प्रतिभास्थली पर अपना बड़ा अनुदान देकर सोलर वाटर टेंक का लोकार्पण किया तथा जीव दया के क्षेत्र में नवीन गौ शाला का लोकार्पण किया गया।

इस अवसर पर चंद्रगिरी तीर्थ विद्यायतन अध्यक्ष श्री विनोद बड़जात्या,श्री दिगम्बर जैन अतिशय महातीर्थ क्षेत्र कमेटी अध्यक्ष सेठ सिंघई किशोर जैन, महामंत्री श्री निर्मल जैन, श्री चंद्रकांत जैन, श्री प्रदीप जैन विश्वपरिवार के साथ विधानाचार्य नितिन भैया, खुरई,धीरज भैया राहतगड़, संजीव भैया कटंगी, मनोज भैया जबलपुर,अविनाश भैया भोपाल ने विधिवत विधान का कार्य संपन्न कराया| राष्ट्रीय प्रवक्ता अविनाश जैन ने बताया दौपहर में आचार्य गुरुदेव विद्यासागरजी महामुनिराज एवं नवाचार्य समयसागर महाराज की अष्टद्रव्य से पूजन की गई आर्यिकारत्न गुरुमति माताजी ने अपने मुखारविंद से मंत्रोच्चारण किया जिसका संचालन ऐलक धैर्यसागर महाराज ने किया एवं स्वर मनोज भैया ललितपुर ने किया उसके पूर्व चंद्रगिरी तीर्थक्षेत्र कमेटी विद्यायतन के अध्यक्ष विनोद बड़जात्या, मनीष जैन बिलासपुर,निखिल जैन डोंगरगढ़, अविनाश जैन विदिशा, सुकमाल जैन दिल्ली विवेक जैन लाभांडी रायपुर एवं पदाधिकारियों ने विद्या प्रमाणिक संघ दिल्ली के पदाधिकारी विपिन जैन संदीप जैन तथा जगदीश प्रसाद जैन का अंग वस्त्र तथा प्रतीक चिंह के रुप में आचार्य गुरुदेव का आकर्षक चित्र भेंट किया। ज्ञातव्य रहे त्यागी वृतिओं की संपूर्ण भोजन व्यवस्था उनके सौजन्य से हो रही है जिसकी व्यवस्था विदिशा के सुनील सिंघई एवं रीतेश डव्वू भैया देख रहे है।

इस अवसर पर विदिशा, भोपाल, इंदौर, राजनांदगाँव, दुर्ग, रायपुर, भिलाई, विलासपुर,वृति नगरी पिंडरई, नेवरा,केवलारी, धनौरा, लाल वर्रा,नोहटा, राजिम, महरोनी,सन्ना आदि शहरों से श्रावक दृव्य के थाल सजाकर लाऐ थे। इस अवसर पर मुनि संघस्थ ब्र अनूप भैया रिंकू भैया सुवोध चतुर सौरभ जैन सहित बड़ी संख्या में बालब्रहम्चारी एवं आर्यिकासंघ से सम्वंधित बहनें उपस्थित थी। प्रतिभास्थली की बेटियों ने अपने नृत्य नाटिका और देश प्रेम की आकृषित नृत्य नाटिका के माध्यम से देश प्रेम की लौ जलाई इन भावनाओं को प्रतिभास्थली के माध्यम से प्रयास किया। शाम को भगवान के समवशरण में संगीतमय आरती होगी। रात्रि 8 बजे युवा कवि सम्मेलन होगा। उक्त कार्यक्रम में जैन समाज के एवं अन्य समाज के लोग सम्पूर्ण छत्तीसढ़ एवं भारत के विभिन्न प्रान्तों से अपने गुरुवर के प्रथम समाधि स्मृति महोत्सव में शामिल हुए। उक्त जानकारी निशांत जैन (निशु) द्वारा दी गयी है।

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