(विश्व परिवार)। अनेक साधुओं की जन्म एवं कर्म भूमि धर्मनगरी मुंगाणा में आचार्य वर्धमानसागर संघ सहित विराजित है आचार्य संघ सानिध्य में प्रतिदिन प्रातःपंचामृत अभिषेक ,शास्त्र प्रवचन, दोपहर को स्वाध्याय ,शाम को श्रावक श्राविकाओं संस्कार शिविर का आयोजन चल रहा हैजिसमें हितेंद्र सागर आर्यिका महायश मति सहित साधु की कक्षा में सैकड़ो धर्मावलंबी भाग ले रहे हैं ।मुनि हितेंद्र सागर ने प्रवचन में बताया कि बहुत पुण्य से मनुष्य जीवन मिलता है जिसमें जैन कुल में जन्म लेकर आप देव, शास्त्र ,गुरु और संत समागम का लाभ मिला है संत समागम से आपको व्रत ,नियम संयम धारण करना चाहिए।
मुनि ने बताया कि संयम दीक्षा धारण कर उत्तम समाधि होने पर भव्य जीव को अगले दो भव से आठ भव में सिद्धालय की प्राप्ति होती है। मुनिहितेंद्र सागर ने कहानी के माध्यम से समय का सदुपयोग करने की प्रेरणा दी।करणमल अध्यक्ष एवं अनिरुद्ध मैदावत अनुसार मुनि ने बताया कि मनुष्यभव में जीव ने अनेक बार जतन पुरुषार्थ किए पर कभी सुख की प्राप्ति नहीं हुई, चारों गतियो में अनादि काल से भ्रमण कर रहे हैं कभी अग्नि जलाकर हवन किया कुतप भी किया किंतु सच्चा सुख नहीं मिला सच्चा सुख आत्मा में है पीछी कमंडल सहित संयम धारण करने से सच्चा सुख प्राप्त होता है। जीवन में दीक्षा धारण कर आत्मा का कल्याण करना चाहिए आचार्य वर्धमान सागर ने मात्र 18 वर्ष की उम्र में दीक्षा धारण कर कितनी धर्म प्रभावना कर रहे हैं।