Home धर्म “धर्मायतन” से राष्ट्र तथा धर्म की पहचान होती है – निर्यापक श्रमण मुनि...

“धर्मायतन” से राष्ट्र तथा धर्म की पहचान होती है – निर्यापक श्रमण मुनि श्री समतासागर महाराज जी

24
0

राजनंदगांव (विश्व परिवार)|  दि. जैन मंदिर परिसर में धर्मसभा को सम्वोधित करते हुये निर्यापक श्रमण मुनि श्री समतासागर महाराज ने जैनधर्म का इतिहास बताते हुये कहा कि सन् 1925 में “मोहन जोदड़ो और हड़प्पा” की खुदाई हुई और उस खुदाई में जो अवशेष मिले उसमें योग मुद्रा तथा कायोत्सर्ग मुद्रा के भित्तिचित्र दिखे उससे यह सिद्ध हुआ कि भारतीय संस्कृति धर्म प्रधान संस्कृति रही है और उस संस्कृति में जैन संस्कृति का विशेष स्थान रहा है | “धर्मायतन” से राष्ट्र तथा धर्म की पहचान होती है| ” उन्होनें कहा कि भले ही जैनियों की संख्या बहुत कम रही हो लेकिन हमारे पूर्वजों ने जो काम देश और दुनिया के लिये किया उससे आज भी हम सभी लोगों की पहचान पूरी दुनिया में विशेष रूप से बनी हुई है| उन्होंने कहा कि जैन मुनियों की चर्या और जैन धर्म का मार्ग कोई आज – कल का मार्ग नही है यह तो भगवान ऋषभदेव के काल से चला आ रहा है| हां इतना अवश्य हुआ है कि इस युग में आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज हुये जिन्होंने श्रमण संस्कृति को एक नई पहचान देकर समाज को जीवंत किया तथा नई पीढी में जो युवा धर्म से दूर रहते थे उनको धर्म से जोड़ा| उन्होंने कहा कि समाज का कोई “धर्मायतन” से सारी समाज एक रहती है| यहाँ से विचारों का संग्रह करने का केंद्र होता है इसलिये प्रत्येक परिवार को इसे अपना मानकर इससे जुड़ना चाहिये| जिनबिम्ब और जिनायतन आपकी अपनी पहचान है तथा आपके सबसे बड़े सूचना केंद्र है| इसमें आने वाले सभी श्रद्धालुओं को अनुशासन के साथ – साथ कर्तव्य का भी पालन करना चाहिये| इससे आपकी विशुद्धि बड़ती है| लाखों – करोड़ों लोग पूजा पाठ करके सम्यक् दर्शन प्राप्त कर रहे है। उन्होंने कहा कि जब हम श्रवणवेलगोला की हजारों बर्षो से खड़ी विशाल प्रतिमा “गोमटेश बाहुबली” को देखते है तो चामुंडराय जीवंत हो उठते है| आज भी संपूर्ण दक्षिण ही नहीं बल्कि भारत में राजा चामुंडराय का नाम बड़े ही सम्मान से लिया जाता है जिन्होंने इस विशाल प्रतिमा का निर्माण किया था| मुनि श्री ने भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु का अनुभव सुनाते हुये कहा कि जब वह उस पहाडी़ पर पहुंचे और उन्होंने प्रत्यक्ष दर्शन किये तो लिखा कि गोमटेश बाहुबली की इस विशाल प्रतिमा को देखकर मै विस्मय और विमुक्त हो गया अर्थात वह आश्चर्य के साथ उसे देखते रह गये। दूसरा उदाहरण उन्होंने जबलपुर की आटा पीसने वाली उस मां का दिया जिसने अपने परिवार का पालन पोषण करते हुये एक मढिया बना कर जिनेन्द्र प्रभु विराजमान कर दिये| वह स्थान आज “पिसनहारी की मढिया” के नाम से जबलपुर का शानदार तीर्थक्षेत्र बना हुआ है| उन्होंने कहा कि राजाओं के महल भले ही खंडहर हो गये हों लेकिन उस मां की पसीने की कमाई आज भी जीवंत है। उन्होंने कहा कि धर्म का इतिहास कभी पुराना नहीं होता है जब भी लिखा जाता है वह नया ही होता है। इस अवसर पर मुनि श्री पवित्रसागर जी,ऐलक श्री निश्चयसागर जी, ऐलक श्री निजानंद सागर जी,क्षु. श्री संयम सागर जी महाराज मंचासीन रहे। राष्ट्रीय प्रवक्ता अविनाश जैन विद्यावाणी एवं प्रचार प्रमुख निशांत जैन ने बताया मुनिसंघ राजनांदगांव दि. जैन मंदिर में विराजमान है रविवार को प्रातः8 बजे से श्री शांतिनाथ महामंडल विधान एवं मुनिसंघ की देशना होगी सभी धर्म श्रद्धालुओं से निवेदन है समय पर दि. जैन मंदिर के सभाकक्ष में पधारें।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here