- “आहवान – संघ शिरोमणि भावलिंगी संत का”
नई दिल्ली (विश्व परिवार)। “मैं चाहता हूँ भारत वर्षीय समस्त जैन समाज श्रद्धा और भक्तिभाव से भगवान ऋषभदेव का ज्ञान कल्याणक महोत्सव फालान वदी एकादशी को “प्रथम धर्मतीर्थ प्रवर्तन पर्व ” के रूप में मनायें। यह पर्व जैन धर्म के आध तीर्थकर भगवान ऋषभदेव द्वारा जैन धर्म के प्रवर्तन की प्राचीनता का संदेश जन-जन तक पहुँचाने का एक विशेष अवसर है।
प्रथम धर्मतीर्थ प्रवर्तन पर्व ही हमारे लिए जिनागम पंथ दिवस का प्रतीक है, जो हमारे जैन धर्म के गौरव और अखण्डता को दर्शाता है। आइए, हम सभी मिलकर इस दिन को “जिनागम पंथ दिवस” के रूप में मनाकर जैन एकता का संकल्प लें और जैन धर्म की समृद्ध परंपरा को जीवित रखें।”
परम पूज्य संघ शिरोमणि भावलिंगी संत श्रमणाचार्य श्री 108 विमर्शसागर जी महा-मुनिराज के द्वारा जैनधर्म की प्राचीनता सम्पूर्ण विश्व को दिखलाने के लिए किये गए इस आह्वान को राजधानी दिल्ली में बृहद् स्तर पर मनाने का संकल्प आन्चार्य विमर्शसागर गुरुभक्त परिवार, दिल्ली ” ने लिया। राजधानी दिल्ली के सुप्रसिद्ध “यमुना स्पोर्टस् कॉम्प्लेक्स” में की गयी विशाल समवशरण की रचना । भारत वर्ष से हजारों की तादाद में जिनागम पंथी गुरु भक्तों ने महोत्सव में शामिल होकर आगामी प्रतिवर्षों में “प्रथम धर्मतीर्थ प्रवर्तन दिवस ” मनाते रहने का संकल्प दोहराया ।
मूर्धन्य विद्वान् डॉ. श्रेयांस जैन बड़ौत ने अपने वक्तव्य में कहा – “निःसन्देह आन्चार्यश्री एक महान एवं दूरदृष्टा आचार्य है जिन्होंने जैन धर्म की प्राचीनता को जन-जन तक पहुंचाने के लिष्ट प्रथम धर्मतीर्थ प्रवर्तन दिवस मनाने का आह्वान किया है। जैन धर्म की एकता और अखण्डता के लिए विचार – विमर्श करने वाले आचार्यश्री का सम्पूर्ण जैन समाज सदैव ऋणी रहेगा।”
आयोजन के मुख्य अतिथि रहे भारतवर्षीय तीर्थक्षेत्र कमेटी के अध्यक्ष-श्रीमान जम्बुप्रसाद जैन के साथ अनेकों विद्वान एवं समाज श्रेष्ठियों ने महान टीका ग्रंथ “अप्पोदया” का विमोचन किया।
दिल्ली महानगर के अर्द्धशताधिक उपनगरों से सैकड़ों की तादाद में सामाजिक संगठनों ने समवशरण में विराजित प्रथम तीर्थकर आदिनाथ स्वामी की महामह पूजा कर भगवान का केवलज्ञान महोत्सव मनाया। विवेक विहार के जैन मंदिर से प्रातः 11 बजे श्रीजी के दिव्य रथ के साथ आन्चार्य संघ पदविहार करते हुए “यमुना स्पोर्टस् काम्प्लेक्स” पहुँचा। वहाँ सुसज्जित विशाल समवशरण में विराजमान होकर गणधर के रूप आचार्य श्री की दिव्य देशना भव्य जीवों को प्राप्त हुयी।
सुप्रसिद्ध भजन सम्राट विमर्श रत्न रूपेश जैन की स्वर लहरियों ने विशाल जनमेदिनी को जिनागम पंथ मय बना दिया। हजारों की संख्या में उपस्थित श्रद्धालुओं के हाथ में लहराते हुए जिन धर्म के ध्वज एवं घूमते हुए ज्योतिर्मय दीप ऐसे प्रतीत हो रहे थे मानो सम्पूर्ण आकाश मण्डल ही धरा पर उतर आया हो।
प्राचीन ही नहीं अनादि-अनिधन है जैन धर्म जैन धर्म की शाश्वतता को दर्शाते हुए
आचार्य श्री ने बताया • भगवान महावीर स्वामी जैन धर्म के अंतिम धर्म तीर्थ प्रवर्तक थे, उनसे पहले भी भगवान आदिनाथ से लेकर 23 तीर्थकर और हुये जिन्होंने जैन धर्म का मात्र प्रवर्तन किया किन्तु जैनधर्म की स्थापना किसी ने नहीं की, क्योंकि जैनधर्म का जन्म नहीं होता, जैन धर्म शाश्वत है अनादि अनिधन धर्म है। आद्यतीर्थकर भगवान आदिनाथ स्वामी की फाल्गुन कृष्ठा एकादशी के शुभ दिवस इस भरत क्षेत्र में प्रथम दिव्यध्वनि खिरी थी, अतः इस दिन को भारत वर्षीय सम्पूर्ण जैन समाज को “प्रथम धर्मतीर्थ प्रवर्तन दिवस के रूप में अवश्य मनाना चाहिए।
जैन समाज प्रतिवर्ष मनाये “प्रथम धर्मतीर्थ प्रवर्तन दिवस “-“जिनागम पंथ दिवस “।
• भावलिंगी संत श्रमणाचार्य श्री विमर्शसागर जी महामुनिराज । “सुनेगा भारत – दिव्यध्वनि” शीर्षक के साथ राजधानी से गूंजी विमर्श वाणी
कब हुआ था जैन धर्म का प्रवर्तन ? किसने किया था जिनशासन का प्रवर्तन ? क्या भगवान महावीर स्वामी ने दिया था जैन धर्म को जन्म ? नहीं, नहीं’, भगवान महावीर तो इस अवसर्पिणी काल के चौबीसवें एवं अंतिम तीर्थकर हुए हैं। वास्तव में यथार्थता की तह तक हम पहुँचते हैं तो ज्ञात होता है, जैन धर्म का कभी जन्म नहीं होता । हाँ, जैन धर्म का जन्म नहीं होता अपितु जैन धर्म का मात्र प्रवर्तन होता है। जी हाँ इस अवसर्पिणी काल में जम्बुद्वीप के दक्षिण भाग में भरत क्षेत्र में सर्वप्रथम जैन धर्म का प्रवर्तन करने वाले थे -इस युग के आदिकाल में जन्मे अंतिम कुलकर राजाधिराज नाभिराज के पुत्र प्रथम तीर्थकर भगवान आदिनाथ स्वामी ।
पंचकल्याणक महोत्सवों से मण्डित प्रथम तीर्थेश ऋषभदेव स्वामी को जब फालगुन कृष्ण एकादशी के शुभ दिन 1000 वर्ष की साधना काल के पश्चात् विश्व के चराचर पदार्थों को दर्पणवत् परिपूर्ण झलकाने में समर्थ केवलज्ञान की प्राप्ति हुयी और सौधर्म इन्द्र द्वारा भव्यातिभव्य समवशरण की रचना की गरी ‘आकाश के मध्य भगवान आदिनाथ स्वामी ने समवशरण सभा के मध्य विराजकर जिन धर्म का प्रवर्तन किया। यही दिवस “प्रथम धर्मतीर्थ प्रवर्तन दिवस ” कहलाया। आज ही के दिन भगवान की वाणी जिनागम के रूप इस धरा पर प्रवर्तित हुयी अर्थात यही दिवस “जिनागम पंथ दिवस “कहलाया।
राजधानी दिल्ली में प्रथम बार मनाया गया “प्रथम धर्मतीर्थ प्रवर्तन दिवस ”
जिनागम पंथ प्रवर्तक भावलिंगी संत संघ शिरोमणि राष्ट्रयोगी श्रमणाचार्य 108 श्री विमर्शसागर जी महामुनिराज ससंघ (37 पीछी) सानिध्य में’ यमुना विहार के सुप्रसिद्ध यमुना स्पोर्टस् कॉम्प्लेक्स में बहु वृहद् रूप में राजधानी में प्रथम बार “भगवान आदिनाथ स्वामी का केवलज्ञान महामहोत्सव” अर्थात “प्रथम धर्मतीर्थ प्रवर्तन दिवस” अर्थात् “जिनागम पंथ दिवस” के रूप में मनाया गया ।