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“मानव जीवन,निर्ग्रंथ गुरु,अच्छा कुल बहुत ही बड़े पुण्य से मिलता है” -मुनि श्री समतासागर

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(विश्व परिवार)। “हम और आप सभी को मनुष्य जीवन ही नहीं मिला बल्कि अच्छे बुरे का भेद करने के लिये अच्छी बुद्धि मिली जिसे पाकर हम “हम और आप सभी धर्म ध्यान कर रहे है, अपने हित अहित का निर्णय करने के लिये सक्षम है” उपरोक्त उदगार निर्यापक श्रमण मुनि श्री समतासागर महाराज ने प्रातःकालीन प्रवचन सभा में व्यक्त किये।
मुनि श्री ने निगोद से लेकर मनुष्य जीवन तक की इस यात्रा का वर्णन सुनाते हुये कहा कि हजारों वर्षो तक तो निगोद में पड़े रहे जैसै तैसे निगोद से निकले और एक इंद्रिय हुये जंहा पर मात्र स्पर्श इंद्रिय थी, तत्पश्चात दो इंद्रिय हुये और जिव्हा मिली तथा अंदर की आबाज बाहर निकली फिर तीन इंद्रिय बने तो हमें सूंघने की शक्ती के रुप में नासिका मिल गयी,और फिर चार इंद्रिय बने तो सुनने के लिये कान मिल गये और पंच इंद्रिय बने तो देखने के लिये आंख मिल गयी और जब संज्ञी पंचेन्द्रिय बने तो हमें अच्छे बुरे की पहचान हो गई और आज यंहा पर बैठकर पंच परमेष्टी की आराधना कर रहे है। उन्होंने गृहस्थ के षठ आवश्यक देव पूजा, गुरु की बंदना तथा स्वाध्याय, संयम तप और दान करना यह गृहस्थ के षठ आवश्यक माने गये है,इन आवश्यकों को करके एक गृहस्थ अपने आत्मधर्म की ओर आगे बड़ता है, लेकिन इस धर्म का सबसे बड़ा बाधक तत्व अज्ञानता, मिथ्यात्व ,और मोह का परिणाम है, मुनि श्री ने कहा “मोह से आच्छादित एवं ढंका हुआ ज्ञान अपने स्वभाव को प्राप्त नहीं होंने देता उन्होंने सुकुमाल मुनि की कथा सुनाते हुये कहा कि जब तक महलों में रहे मोह के बशीभूत रहे वह इतने नाजुक थे कि उनको सरसों का दाना भी चुभता था, लेकिन जैसे ही उनको अपनी मृत्यू का भान हुआ तो सीधे दीक्षा लेकर बन को निकल पड़े और जंगल में अपनी आत्मा में ऐसे लीन हुये कि पूर्व भव की बैरी स्यालनी उनका भक्षण करती रही,लेकिन वह अपनी तपस्या से च्युत नही हुये और उसी भव से मोक्ष को प्राप्त हुये। उन्होंने कहा कि धर्म मजबूरी में तथा मजदूरी में नहीं किया जाता धर्म तो मजबूती के साथ किया जाता है,”मानव जीवन,निर्ग्रंथ गुरु,अच्छा कुल बहुत ही बड़े पुण्य से मिलता है” आप लोगों का यह पुण्य ही है जो आपको निरंतर मुनिसंघ और आर्यिकासंघ के दर्शन और उनको आहार कराने का सौभाग्य मिल रहा है,अपने दृव्य और मन की शक्ती का उपयोग करो धर्मात्मा ही इसका सदुपयोग करता है।

इस अवसर पर मुनि श्री पवित्र सागर महाराज ने सम्वोधित करते हुये भगवान का अभिषेक विधी बताई इस अवसर पर ऐलक श्री निश्चयसागर,ऐलक श्री निजानंद सागर सहित क्षु. संयम सागर मंचासीन थे। राष्ट्रीय प्रवक्ता आविनाश जैन विद्यावाणी एवं प्रचार प्रमुख मनीष जैन बड़जात्या ने बताया दि. जैन बड़ा मंदिर में मान स्तंभ के भगवान का अभिषेक एवं शांतिधारा मुनि श्री समतासागर महाराज के मुखारविंद से संपन्न हुई। प्रवक्ता अविनाश जैन ने बताया गुरुदेव आचार्य श्री विद्यासागर जी महामुनिराज के समाधि स्थल चंद्रगिरी तीर्थ डोंगरगढ़ सेनिर्यापक श्रमण मुनि श्री समतासागर तथा मुनि श्री पवित्र सागर स संघ एवं आर्यिका रत्न गुरुमति माताजी एवं आर्यिकारत्न दृणमति माती सहित सभी 46 माताजी का श्री सम्मेद शिखर तीर्थ की ओर विहार जारी है।श्री सुमतिनाथ दि. जैन बड़ा मंदिर दुर्ग में आर्यिका संघ दर्शनार्थ मंदिर जी में पधारी एवं जिनविंव के दर्शन तथा विराजमान मुनिसंघ की वंदना की रायपुर दि. जैन बड़ा मंदिर मालवीय रोड़ के अध्यक्ष यशवंत जैन सचिव सुजीत जैन तथा कोषाध्यक्ष दिलीप जैन लोकेश जैन,महावीर जैन,विजय जैन,रवि जैन सहित राष्ट्रीय प्रवक्ता अविनाश जैन विद्यावाणी ने श्री फल अर्पित कर मुनिसंघ और आर्यिकासंघ को श्री फल अर्पित कर रायपुर पधारने का अनुरोध किया।

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