- भावलिंगी यंत श्रमधाचार्य श्री विमर्शसागर जी महामुनिराज
- अहिंसा विमर्श परिवार ने रोधधानी में कराया ऐतिहासिक अनुष्वान
नई दिल्ली (विश्व परिवार)। श्री जिनवाणी माता का इस जगत पर असीम उपकार है। हमें अरहंत सिंह परमात्मा का स्वरूप बताने वाली माँ जिनवाणी है। श्रमणधर्म एवं श्रावक धर्म का स्वरूप बताने वाली एकमात्र माता जिनवाणी है। सिम् भगवान का अनंत गुण वैभव जिनवाणी माता हमें बताती है लेकिन ध्यान रखना, जिनवाणी के हम पर महान उपकार हैं जिनवाणी को पढ़कर ही हम अपने आत्मा में उन सिद्ध गुणों को अनुभव कर पाते हैं। सिद्ध चक महामण्डल विधान में आप बैठे हैं यहाँ से संकल्प लेकर जाना किप में प्रतिदिन जिनवाणी का स्वाध्याय (अवश्य करूंगा” आपका इस अनुध्यान में आना सफल हो जाएगा। यह मांगलिक उद्बोधन परम पूज्य भावलिंगी संते आचार्य श्री 108 विमर्श-सागर जी महामुनिराज ने सिद्धन्चक महामण्डल विधान के मध्य सिहतीर्थ मण्डपम् में दिया ।
पूर्वाचार्यों के कठिन परिश्रम से प्राप्त हो रही आज हमें माँ जिनवाणी
अनुष्ठान के मध्य पोन्नूर से पधारे श्रावक श्रेष्ठी श्री विजय जी शाह ने दिखाये पूर्वाचार्यों के द्वारा एवं धर्मात्मा श्रावकों के द्वारा हस्तलिखित ताड़-पत्र जिनमें कठिन परिश्रम के द्वारा जिनवाणी को लिपिबद्ध किया गया है। उन्होंने बताया पहले भाज की तरह प्रिंटिंग प्रेस उपलब्ध नहीं थे, यह तो उन माचार्य भगवंतों और धर्मात्मा श्रावकों का हम पर उपकार है जिन्होंने कोटे से ताड़ पत्र के ऊपर माँ जिनकणी की अंकन-टंकण किया।
जिनवाणी की रक्षा का एक मात्र उपाय है जिनवाणी का स्वाध्याय करना।
केन्द्रिय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन जी ने भावलिंगी सेत आचार्यश्री के चरणों में अपनी भावविनयांजलि समर्पित करते हुए कहा- जैन संतों का समागम सानिध्य हमें अतिशय पुष्प योग से मिला करता है। हॉस्पीटल का डॉक्टर तो शरीर के रोग ठीक करता है किन्तु भव-भव के रोगों को ठीक करने वाले ये जैन संत ही हुआ करते हैं। आज मेरा परम सौभाग्य रहा, जो मुझे भावलिंगी संत आचार्य श्री विमर्श सागर जी गुरुदेव के दर्शन प्राप्त हुए हैं।