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घर से बाहर निकले तो आप होली के रंग से बच नहीं सकते ऐसे ही यदि आप अपने स्वभाव से बाहर निकले तो कर्मों के रंग से बच नहीं सकते- श्रमण मुनि श्री समता सागर जी महाराज

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रायपुर { विश्व परिवार } । शंकर नगर रायपुर में प्रातःकालीन धर्म सभा निर्यापक मुनि श्री समता सागर जी महाराज ने कहा भारतीय संस्कृति उत्सव प्रधान संस्कृति है त्योहार मनुष्य ही मनाते है पशु पक्षी नहीं मनाते क्यों कि वह किसी प्रकार से तनाव ग्रहस्त नहीं रहता लेकिन मनुष्य चिंता और तनाव में रहता है उसे विकल्प बहूत आते है,अपने अपने कार्यों की व्यस्तता से वह अस्त व्यस्त हो जाता है उदासीनता और परेशानी उसके जीवन में भर जाती है ,इन सभी के बीच में भारतीय संस्कृति के पवित्र पर्व और त्योहार आते है जो उदासीनता और परेशानियों से हटकर प्रसन्नता की ओर ले जाते है। मुनि श्री ने कहा कि यह मंदिर आपकी श्रद्धा के केंद्र है और श्रद्धा से भरा व्यक्ती अपने आराध्य स्थल को कुछ न कुछ अवश्य देता ही है।

हमारे पूर्वजों की संस्कृति रही है कि गरीबी में घर में बैठकर रुखी रोटी भले ही खाता है लेकिन जब भी वह मंदिर आयेगा तो भगवान की आरती शुद्ध घी के दिया से ही करता है” जब वह भगवान की आरती घी से करता है तो एक दिन ऐसा आता है कि उसकी भी आरती उतरने लगती है भारतीय संस्कृति त्याग और श्रद्धा की है जितने भी पर्व त्योहार आते है वह सभी पर्व त्योहार आपको धर्म से जोड़ते है। पर्व और त्योहारों को विकृति का रुप प्रदान कर दिया है न दिवाली खराब थी न दशहरा खराब था न होली खराब है सभी का कोई न कोई उद्देश्य है व्यक्तिओं को परंपराओं से जोड़ने का एक मेसेज है उन पर्व की परंपराओं को समझा नहीं और मेंसेज भी विगाड़ कर रख दिया।
“होली” पर कींचड़ फैकने लगे व्यसन को अपनाने लगे त्योहार के उद्देश्य को ही समाप्त कर दिया

” आचार्य कुंद कुंद स्वामी कहते है कि तुम जब तक रत्नत्रय के स्वभाव में रहोगे तुम्हारे ऊपर कर्मो का रंग नहीं चड़ेगा जैसे ही आपका उपयोग बाहर की ओर गया कि कर्मो का रंग चड़ जाता है। आचार्य श्री ने मूकमाटी में लिखा है “कर” पर “कर” दो बच पाओगे,अन्यथा जैल में पछताओगे” इसके भी दो अर्थ है पहला सामाजिक व्यवस्था पर है यदि आपने समय से सरकार का कर चुका दिया तो ही आप बच पाओगे अन्यथा जैल में जाओगे दूसरा आध्यात्मिक पक्ष है कर पर कर दो अर्थात “हाथ पर हाथ धर कर ध्यान में बैठ जाओअन्यथा कर्मों की जेल में सड़ जाओगे “होली खेलें मुनिराज अकेले बन में” कर्म काठ की होली बनाओ और उसमें ध्यान की अग्नि जलाओ मुनि श्री ने कहा कि जैन धर्म में होली का कोई उल्लेख नजर नहीं आता, लेकिन यह लौकिक पर्व के रूप में आप सभी मनाते है पर्व हमारे अंदर खुशियाँ प्रदान करते है सभी से प्रेम व्यवहार का संदेश प्रदान करते है

इस अवसर पर मुनि श्री पवित्रसागर महाराज ने भी सम्वोधन दिया।इस अवसर पर ऐलक श्री निश्चय सागर ऐलक निजानंद सागर क्षु.संयम सागर महाराज मंचासीन थे।राष्ट्रीय प्रवक्ता अविनाश जैन एवं स्थानीय प्रचार प्रमुख अतुल जैन गोधा ने बताया मुनि श्री समतासागर महाराज को पड़गाहन कर आहार देंने का सौभाग्य “विश्वपरिवार” को मिला दौपहर में सामायिक उपरांत मुनिसंघ का मध्यान्ह विहार शंकर नगर से फाफाडीह स्थित दि. जैन मंदिर के लिये हुआ। प्रातःकाल 8:30 बजे से धर्म सभा होगी एवं 10 बजे से आहार चर्या संपन्न होगी। एवं मध्यांह में विहार होकर मुनिसंघ मालवीय रोड़ स्थित दि. जैन बड़ा मंदिर में आऐंगे। यंहा पर आगामी 16 मार्च से 19 मार्च तक श्री समवसरण महामंडल विधान का आयोजन किया जा रहा है।

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