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व्यक्ती चाहे बड़ा हो या छोटा, परिचित हो या अपरिचित,देशी हो या विदेशी हो यदि वह अपने कर्तव्य पथ का पालन कर रहा है,तो समझना वह अपने ही धर्म का पालन कर रहा है:- निर्यापक श्रमण मुनि श्री समता सागर महाराज

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रायपुर { विश्व परिवार }।  मालवीय रोड दिगंबर जैन मंदिर रायपुरमें समवसरण विधान के प्रथम दिवस “धर्म का स्वरुप क्या है,और उसे जीवन में प्राप्त कैसे करें? इस प्रश्न का का उत्तर देते हुये निर्यापक श्रमण मुनि श्री समता सागर जी महाराज ने कहा कि मालवीय रोड़ के इस प्रागंण में जंहा “समवसरण विधान” को संपन्न किया जा रहा है किसी समय आचार्य गुरूदेव की देशना को भी आप सभी लोगों ने उनके श्री मुख से सुना था मुनि श्री ने कहा कि जब सैनिक अपने कर्तव्य का पालन कर रहा है तो समझना वह अपने धर्म का ही पालन कर रहा है” मां गृहणी बनकर अपने कर्तव्य का पालन करती है,बच्चे उधम करते है शांत नहीं रहते तो यह उन बच्चों का धर्म ही तो है, यदि बच्चा पैदा होंने के पश्चाताप यदि न रोवे तो अच्छा नहीं माना जाता बच्चे यदि ऊधम करें तो यह बच्चों का धर्म माना जाता है, पानी का स्वभाव शीतल है लेकिन निमित्तों के प्रभाव से उष्णता भले ही उसमें आ जाये लेकिन वह जल अपने स्वभाव को नहीं छोड़ता उसे अग्नि पर डाल दिया जाये तो वह अग्नी को बुझाने का कार्य करता है किसी प्यासे को पानी मिल जाऐ तो वह प्यास को बुझा दिया करता है जैसी शक्ती शीतल जल में है वही शक्ति उस उष्ण जल में भी हुआ करती है,स्वर्ण को कींचड़ मेंडाल दो,छेद दो भेद दो तपा दो फिर भी वह अपने स्वभाव को छोड़ने बाला नहीं,उसी प्रकार इस जीव द्रव्य के अंदर इस आत्मा के अंदर जो परिणाम है रत्नात्रय दशलक्षण का भाव है बस्तु का अपना स्वभाव है,जीवदया के परिणाम है यह जीव का अपना धर्म है।

आचार्य महाराज ने बस्तु के स्वभाव का नाम धर्म है उत्तम क्षमा दि दस धर्मों का पालन करना,रत्नात्रय धर्म और जीवों की रक्षा करने का नाम भी धर्म है मुनि श्री ने कहा कि जीवन में जीवों के प्रति दया रखने से अहिंसाधर्म का पालन होता है और अहिंसा धर्म के पालन से ही रत्नात्रय धर्म का पालन होता है, और जंहा पर रत्नात्रय धर्म का पालन है वंही दशधर्म का पालन होता है यही धर्म का सच्चा स्वरूप है। मुनि श्री ने कहा कि “समयसार” पड़ने बाला कुलाचारी होंना आवश्यक है सुनीति शतक में आचार्य गुरुदेव ने लिखा है कि प्यास बुझाने के लिये पानी पिओगे तो वह अमृत है, लेकिन पानी के अंदर ही चले गये और तैरना आता नहीं तो जीवन से ही हाथ धो सकते हो उसी प्रकार गृहस्थी में रहकर शुद्धता की भूमिका तो बनाई जा सकती है लेकिन समयसार का स्वाध्याय रत्नात्रय को धारण करके निर्ग्रंथता से प्राप्त किया जा सकता है।मुनि श्री ने कहा कि मुनिसंघ का प्रवेश रायपुर के महानगर में हुआ सभी कालोनियों के जिनालयों की बंदना के पश्चात मालवीय रोड़ के इस जिनालय में समवसरण विधान हो रहा है जिसमें यह प्रांगण खचाखच भरा हुआ है। अक्सर में कहा करता हूं कि “जो पानी से नहाता है वह लिवास बदलता है,जो पसीने से नहाता है वह इतिहास को बदलता है”

मुनि श्री ने कहा कि आपने व्यापार में वृद्धि की लेकिन परिवार घट गये पहले के जमाने में पूरी क्रिकेट टीम एक ही घर में हो जाया करते थे आजकल तो “हम दो हमारे दो बाकी सब को फैक दो” आजकल तो एक या दो बच्चे का चलन आ गया, यह बहूत चिंता का विषय है कि आगे क्या होगा? श्रावकाचार ने यह कभी नहीं कहा कि अपने परिवार को छोटा रखो मुनि श्री ने कहा कि यदि गृहस्थ धर्म को स्वीकार किया है तो संतानोत्पत्ति में भी ध्यान दो जो संतान आऐगी वह अपने भाग्य को साथ में लेकर आऐगी इसलिये चिंता मत करो मुनि श्री ने कहा कि जितने लोग आते है वह अपने अपने भाग्य लेकर आते है। मुनि श्री ने नैनागिर पंचकल्याणक की घटना का उल्लेख करते हुये कहा कि जिस बोर से पानी नहीं निकल रहा था तो कमेटी बालों ने आचार्य श्री के कमंडल का जल जब उसमें डाल दिया तो इतना पानी निकला कि पानी की कमी नजर नहीं आई।उन्होंने पुरानी और नई दौनों कमेटियों को आशीर्वाद देते हुये कहा कि जो आशीर्वाद आपने आचार्य गुरुदेव से मंदिर निर्माण के लिये लिया था उसे पूर्ण करना आप सभी का धर्म है। मुनि श्री ने कहा कि अपने कर्तव्य का पालन करना ही सबसे बड़ा धर्म है। मुनि श्री ने कहा कि घर पर रात्री भोजन का त्याग और शादी विवाह में जाकर रात्री भोजन करते हो तो यह आप अपने धर्म को बदनाम करते हो सार्वजनिक रुप से तो धर्म का पालन करना ही करना चाहिये।

इसअवसर पर मुनि श्री पवित्रसागर महाराज ने धर्मोपदेश दिया मंच पर ऐलक श्री निश्चयसागर जी ऐलक श्री निजानंद सागर जी एवं क्षु. संयमसागर जी महाराज विराजमान थे। कार्यक्रम में उपस्थित राष्ट्रीय प्रवक्ता अविनाश जैन विद्यावाणी एवं स्थानीय प्रचार प्रमुख अतुल जैन गोधा ने बताया प्रातः भगवान का अभिषेक एवं शांतिधारा के उपरांत समवसरण विधान का शुभारंभ विधानाचार्य धीरज भैयाजी ने प्रारंभ कराया इस अवसर पर श्रावक श्रैष्ठी के रुप में चंद्रगिरी समाधी स्थल के अध्यक्ष विनोद बड़जात्या समवसरण में उपस्थित हुये मुनिसंघ को शास्त्रभेंट कर धर्म सभा में प्रश्न रखा मुख्य मेंनेजिंग टृस्टी नरेन्द्र गुरुकृपा तथा अन्य पदाधिकारियों ने उनका सम्मान किया।इस अवसर पर रायपुर महानगर से बड़ी संख्या में धर्मश्रद्धालु उपस्थित थे शंकरनगर, टैगोरनगर,फाफाडीह के श्रद्धालुओं ने विधान में सम्मलित होकर धर्मलाभ लिया।

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