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जिन मंदिर और जिनवाणी का महत्व – और मुंबई में हुई दुर्भाग्यपूर्ण घटना पर एक गंभीर प्रश्न

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(विश्व परिवार)। भारतवर्ष, विशेष कर इसकी आध्यात्मिक भूमि, हमेशा से धार्मिक सहिष्णुता, आस्था और आध्यात्मिक चेतना का केंद्र रही है। इसी भूमि पर जन्मा “जैन धर्म” न केवल अहिंसा का प्रतीक है,, बल्कि आत्म कल्याण, संयम और सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। जैन धर्म में तीर्थंकरों की वाणी (जिनवाणी) और जिन मंदिरों का अत्यंत पवित्र स्थान है।
जिनवाणी का महत्व:
जिनवाणी वह दिव्य वाणी है जो केवलज्ञान प्राप्त तीर्थंकरों द्वारा समवसरण में दी गई। यह वाणी जीवों के कल्याण का मार्ग बताती है। आगम शास्त्रों में इसे मोक्ष का द्वार कहा गया है। इसका अनादर केवल ग्रंथ का नहीं, बल्कि मुक्ति पथ का अनादर है।
जिन मंदिर – आत्मशुद्धि का पवित्र धाम:
जिन मंदिर केवल पत्थरों की इमारत नहीं होते, बल्कि वहाँ अरिहंत भगवान की प्रतिमाएँ विराजमान होती है। वह स्थान आत्मा के शुद्धिकरण, ध्यान, तप, भक्ति और शांति का केंद्र होता है। जैन समाज इस पवित्रता को जीवन से भी अधिक महत्व देता है।
मुंबई के विले पारले पर स्थित श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर पर बुलडोजर – क्या यह न्याय है-?
हाल ही में मुंबई में एक प्राचीन जिन मंदिर को तोड़े जाने की घटना ने न केवल जैन समाज को, बल्कि हर धर्मप्रेमी और अहिंसक नागरिक को गहरी पीड़ा दी है। एक मंदिर, जहाँ प्रतिदिन पूजा होती है, जहाँ आत्मा की उन्नति के लिए तपस्वी उपवास करते हैं, वहाँ यदि मशीनें भेजकर प्रतिमा और संरचना को ध्वस्त किया जाए — तो यह केवल दीवारों का नहीं, आस्था का विध्वंस है। देव, शास्त्र और गुरु – इनकी निंदा या अनादर को “त्रिविध दोष” कहा गया है, जो नरक गति का कारण बनता है। मंदिर में चोरी, अपवित्रता, या तोड़फोड़ — ये सभी महापापों की श्रेणी में आते हैं। जिनवाणी और मंदिर का अनादर करने वाले प्राणी को तीव्र वेदना वाले नरकों में जाना पड़ता है। ऐसे जीव को अनेक भवों तक अज्ञान, दुःख और क्लेश में भटकना पड़ता है।
इसलिए ऐसे कार्यों को केवल कानूनी मुद्दा नहीं समझा जाना चाहिए, यह धार्मिक मूल्यों पर आघात है। अगर किसी भी समाज की आस्था को इस प्रकार कुचला गया, तो सामाजिक समरसता और धार्मिक सौहार्द कैसे बचेगा-?
हमारी अपील: महाराष्ट्र एवं भारत सरकार से निवेदन है कि इस विषय की निष्पक्ष जाँच कर दोषियों पर उचित कार्यवाही हो। टूटे मंदिर का पुनः निर्माण उसी पवित्र स्थान पर कराया जाए और प्रतिमाओं का सम्मानपूर्वक पुनः प्रतिष्ठापन हो।
सभी समाजों को एक होकर धार्मिक स्थलों की रक्षा करनी चाहिए, क्योंकि धर्म और संस्कृति हमारी सबसे बड़ी विरासत है। जैन धर्म का मूल मंत्र है — “जियो और जीने दो”। आइए, इसी भावना को जीवित रखें — आस्था को ठेस नहीं, सुरक्षा दें।

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