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वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्धमान सागर जी ने पंच कल्याणक के मोक्ष कल्याणक दिन बही पार्श्वनाथ मंदसौर में दी 2 दीक्षाएं

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मंदसौर (विश्व परिवार)। प्रथमाचार्य चारित्र चक्रवती आचार्य श्री शांतिसागरजी महाराज परम्परा के पंचम पट्टाधीश वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्धमान सागर जी ने सिद्धहस्त कर कमलों से दिनांक 20 अप्रैल 2025 को दीक्षा दी ब्रह्मचारी राजेश भैया मेड़ता दीक्षा बाद108 मुनिश्री ध्येय सागर जी ,ब्रह्मचारी श्री सुरेश शाह जयपुर 1 108 मुनिश्री भुवनसागर जी महाराज बने । संयम साधना से साध्य को सिद्ध किया जाता हैं। पंचकल्याणक क्या होते हैं ,किस प्रकार मनाए जाते हैं यह कार्यक्रम आप विगत पांच दिनों से भगवान के गर्भ ,जन्म, दीक्षा, केवलज्ञान, मोक्ष कल्याणक के माध्यम से देख रहे हैं ।विषय भोगों से मुक्त होकर भगवान की आत्मा सिद्धालय में विराजित हो गई है। आप 84 लाख योनियों में भ्रमण करते हैं जिसमें जन्म और मरण दोनों होता है मृत्यु को सभी देखते हैं शरीर का श्रृंगार सब करते हैं किंतु आत्मा का श्रंगार तप संयम को भूल जाते हैं। भगवान का शरीर मोक्ष कल्याणक के साथ लुप्त हो गया केवल नख और बाल शेष रहते हैं जबकि संसारी प्राणी की मृत्यु के बाद उसकी आत्मा शरीर से निकल जाती है और मृत शरीर संसार में रहता है।

हर संसारी शरीर में प्रभु और आत्मा है संसारी प्राणी पर्याय में शरीर को अपना समझकर आत्मा को भूल गए हैं इसलिए संयम धारण कर साधना से साध्य को सिद्ध करके सिद्ध बनने के लिए दीक्षा धारण कर तप से कर्मों की निर्जरा कर सिद्धालय में विराजित होते हैं। यह मंगल देशना पंचम पट्टाधीश आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज ने भगवान के मोक्ष कल्याणक और दो दिगंबर जैनेश्वरी मुनि दीक्षा के पावन प्रसंग पर प्रकट की राजेश पंचोलिया अनुसार आचार्य श्री ने बताया कि दीक्षा आमूल चूल परिवर्तन है, संयम और ध्यान से आत्मा को संसारी प्राणी समझने का प्रयास करते हैं। असंयमी प्राणी ध्यान नहीं कर सकते हैं आज दो भव्य प्राणी आप की ही तरह परिवार में माता-पिता, पत्नी ,बेटा बेटी परिजन का लालन-पालन कर संसार की असारता को समझ कर वैराग्य धारण करने हेतु गुरु की शरण में आए हैं।

क्योंकि उन्हें पता है कि गुरु शरण में ही शांति और मुक्ति का मार्ग मिलता है आदिनाथ भगवान ने भी आत्मा को साधना में लगाया शादी की साधना कर साध्य को उन्होंने भी सिद्ध किया भगवान ने भी आत्म साधना कर सिद्ध अवस्था प्राप्त की सभी का लक्ष्य सिद्धालय होना चाहिए सुरेश जी शाह ने बेटे वर्तमान के मुनि हितेंद्र सागर का लालन-पालन किया फिर गुरु शरण में गए और बेटे के संयम मार्ग का अनुसरण किया पिता के लिए पुत्र आदर्श बन गए उन्होंने काफी समय तक दीक्षा हेतु श्रीफल चढ़ाया पंचकल्याणक में मोक्ष कल्याणक के पावन दिन मुक्ति लक्ष्मी पाने के लिए दीक्षा ले रहे हैं गुरु दीक्षार्थी शिष्य की अनेक स्तर पर परीक्षा लेते हैं पहले कर पात्र में दीक्षार्थी शिष्य आहार लेता है फिर दीक्षार्थी का केशलोचन होता है इस दृढ़ता के आधार पर गुरु उन्हें दीक्षा देते हैं भगवान आदिनाथ ने भी एक वर्ष के उपवास के बाद आहार लिया संसारी प्राणी के लिए परिवार का मोह छोड़कर ,गुरु से नाता जोड़ना ,मोह की प्रबलता के कारण मुश्किल होता है ।

भगवान ने भी सभी आठ कर्मों को नष्ट कर आठ गुणों को प्रकट कर सिद्धालय में विराजित हुए आपको दीक्षा देखकर यह भावना भाना चाहिए कि हम भी परिवार का मोह छोड़कर संयम को धारण करें संयम के पुरुषार्थ से आत्मिक सुख मिलता है तभी मनुष्य जीवन सार्थक होता है सौभाग्यशाली परिवार की 5 महिलाओं द्वारा चोक पूरण की क्रिया की गई।इस बेला में आचार्य श्री के द्वारा दीक्षार्थी के पंच मुष्ठी केशलोच किये गए तथा दीक्षा संस्कार मस्तक तथा हाथों पर किये गए। इसके बाद आचार्य श्री ने नामकरण किया।7 प्रतिमा घारी ब्रह्मचारी राजेश भैया मेड़ता का दीक्षा उपरांत नूतन नाम 108 मुनि श्री ध्येय सागर किया गया। 75 वर्षीय श्री सुरेश शाह का नूतन नाम मुनि श्री भुवन सागर जी किया गया। पुण्यार्जक परिवार द्वारा पिच्छी कमंडल शास्त्र माला भेंट किये गए।कार्यक्रम प्रभावशाली संचालन आर्यिका श्री महायशमति जी ने किया। आज दीक्षार्थी के केशलोच हो रहे थे, तब सभी वैराग्यमयी पलों से सभी द्रवित हो रहे थे।परिजनों के दोनों नेत्रों में एक नेत्र में खुशी के आंसू दूसरे नेत्र में दुख केआंसू भी थे। भक्तों के भजनों से वातावरण वैराग्यमय हो रहा आचार्य श्री मुनि श्री हितेंद्र सागर जी एवम् अन्य साधुओं ने दीक्षार्थी के केशलोचन किये।परिजनों एवम अन्य भक्त जिन्हें केशलोच झेलने का अवसर मिला। वह अपने को पुण्यशाली मान रहे थे ।आज प्रातःकाल दीक्षाथियो ने श्रीजी के दर्शन कर पंचामृत अभिषेक पूजन किया, इसके पश्चात आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज के दर्शन कर उनके चरणों का प्रक्षालन किया दोनों दीक्षार्थियों के केशलोचन साधुओं ने किये इसके पश्चात दीक्षार्थियों ने हल्दी लगाकर मंगल स्नान किया। आचार्य संघ सानिध्य में दोनों दीक्षार्थियों ने श्री जी का पंचामृत अभिषेक किया।

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