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जो नकारात्मकता की ओर जाऐंगे वह टूट जाऐंगे और जो सकारात्मकता की ओर आगे बड़ेगे वो निखर जाऐं

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भोपाल (विश्व परिवार)। “आत्महीनता” की भावना जिसके अंदर आ जाती है,वह अपने ही दोष और अपनी कमिओं से ग्रसित होकर स्वंय से “अस्वीकृती” के भाव प्रकट कर लेता है, जो अनेक प्रकार की दुर्वलताओं को जन्म देता है” उपरोक्त उदगार मुनि श्री प्रमाणसागर महाराज ने अवधपुरी में व्यक्त किये।
मुनिसंघ के प्रवक्ता अविनाश जैन ने बताया मुनि श्री प्रतिदिन भावनायोग के माध्यम से मनुष्य के अंदर की नकारात्मकता को दूर करने के लिये नकारात्मक श्व्दों के माध्यम से दिव्य बचन सुना रहे है। मुनि श्री ने “अस्वीकृती” शव्द की व्याख्या करते हुये कहा कि अपने आपको भी कभी हीन दृष्टि से मत देखो यदि कोई कमी या दुर्वलता है,तो उसे पहचानो और “दृण संकल्प” के माध्यम से उसे दूर करो। मुनि श्री ने कहा कि “जंहा स्वीकृति है वंहा शांति है,जंहाअस्वीकृति है वंहा अशांति” यदि आपके अंदर कोई गुण है तो उसकी प्रशंशा करो उन्होंने कहा कि व्यक्ति जब स्वंम को औरों से तुलना कर “जब हम स्वंय अस्वीकृती का भाव रखते है,तो अंदर से आत्महीनता की भावना आ जाती है, फिर हम कोई कार्य को करना भी चाहे तो नहीं कर पाते उन्होंने कहा कि अपने में गुण नहीं होंने पर भी उन गुणों का बखान करना आत्मप्रशंसा है में उसकी बात नहीं कर रहा लेकिन यदि कोई गुण आपके अंदर है,तो उसे स्वीकार करोऔर आगे बड़ो मुनि श्री ने एक घटना का उल्लेख करते हुये कहा कि एक बच्चा फटे पुराने कपड़े पहन कर स्कूल गया शिक्षक ने उसे इग्नोर किया लेकिन उस बच्चे ने अपनी योग्यता और लगन से पूरे स्कूल में टांप किया तो सभी आश्चर्य चकित रह गये जब शिक्षक ने उससे पूंछा कि तुमने टांप कैसे किया? तो उसने जबाब दिया कि लोगों ने तो मुझे अस्वीकार कर दिया लेकिन मेंने उस अस्वीकार भाव को ही कड़ी महनत कर उस”अस्वीकृति” को ही अवसर मैं बदलने का निश्चय कर लिया। मुनि श्री ने कहा कि अस्वीकृति को अवसर मैं बदला जा सकता है,औरों के कारण अपने आपको अस्वीकार मत करो तथा औरों के अस्तित्व को भी अस्वीकार भी मत करो कुछ लोग ऐसे भी होते है कि अपने आगे किसी को कुछ गिनते ही नहीं यह उनके अंदर का अहंकार है,जो अस्वीकृत होंने पर भी अपने आपको बनाये रखते है मुनि श्री ने कहा कि “अस्वीकृति” किसी को तोड़ सकती है,तो किसी को तराश भी सकती है”जो नकारात्मकता की ओर जाऐंगे वह टूट जाऐंगे और जो सकारात्मकता की ओर आगे बड़ेगे वो निखर जाऐंगे उन्होंने भोपाल की एक पुरानी घटना का जिक्र करते हुये कहा कि साधन संपन्न व्यापारी पिता ने नाराज होकर अपने युवा दंपत्ति को घर से निकाल दिया वह युवा दंपत्ति में योग्यता थी और वह पिता से क्षुव्ध नहीं हुये उन्होंने उनका आभार प्रकट करते हुये कहा कि पिताजी आपने हमें पड़ाया लिखाया हम आपके आभारी है हम जा तो रहे है, हां आपसे एक आपेक्षा अवश्य रखते है कि जबभी आपको हमारी आवश्यकता महसूस हो तो आप हमें अवश्य याद करना और वह घर छोड़कर निकल गये मन में कोई सिकायत का भाव नहीं था योग्यता थी और देखते ही देखते समय बीता उसने अपनी योग्यता तथा आत्मविश्वास के बल पर अपने मित्रों के साथ खुद का व्यापार खड़ा किया और आज उसका बहूत बड़ा विजनेस एम्पायर है, मुनि श्री ने कहा कि आत्मविश्वास के बल पर अस्वीकृति को भी स्वीकृति में वदल सकते है।इस अवसर पर मुनि श्री संधान सागर महाराज सहित समस्त छुल्लक मंचासीन थे।

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