HIGHLIGHTS
- शिक्षा के मामले में इंदौर का नाम पूरे देशभर विख्यात है, लेकिन स्कूली शिक्षा की बात करें तो प्रदेश के जिलों में ही इंदौर काफी पिछड़ गया है।
- राज्य शिक्षा केंद्र ने समग्र शिक्षा अभियान के तहत सभी जिलों की रैंकिंग जारी की है।
इंदौर संभाग सबसे पीछे यानी 10वें नंबर पर है। सात बिंदुओं पर हुए मूल्यांकन में इंदौर बी स्थिति काफी खराब है।
इंदौर (विश्व परिवार)– शिक्षा के मामले में इंदौर का नाम पूरे देशभर विख्यात है, लेकिन स्कूली शिक्षा की बात करें तो प्रदेश के जिलों में ही इंदौर काफी पिछड़ गया है। राज्य शिक्षा केंद्र ने समग्र शिक्षा अभियान के तहत सभी जिलों की रैंकिंग जारी की है। इस रैंकिंग में इंदौर जिला 48वें नंबर पर है। वहीं इंदौर संभाग सबसे पीछे यानी 10वें नंबर पर है। सात बिंदुओं पर हुए मूल्यांकन में इंदौर बी स्थिति काफी खराब है। सबसे ज्यादा खराब स्थिति साक्षरता अभियान, टीचर ट्रेनिंग, सरकारी योजनाओं का क्रियान्वयन में रही।
राज्य शिक्षा केंद्र द्वारा जारी रैंकिंग में पिछले साल इंदौर 29वें पायदान पर था। इस बार 19 पायदान पिछड़कर 58.76 फीसदी अंक के साथ 48वें नंबर पर आ गया है। प्रदेश की आर्थिक राजधानी होने के नाते यहां शिक्षा विभाग के आला अफसर निरीक्षण करने आते हैं। बजट में भी कमी नहीं रहती है। बावजूद शिक्षा गुणवक्ता से लेकर स्कूल इमारत अधोसरंचना तक में इंदौर जिले की स्थिति खराब है। संभाग भी सबसे पीछे 60.77 फीसदी अंक के साथ आखिरी पायदान पर है।
प्रशिक्षण को गंभीरता से नहीं लेते शिक्षक
राज्य शिक्षा केंद्र द्वारा समग्र शिक्षा अभियान के तहत जारी की गई रैंकिंग में इंदौर जिले की कई कमियां सामने आई हैं। इस बार जिले में प्रारंभिक कक्षा में महज 11 हजार बच्चों का ही प्रवेश हो पाया। प्राथमिक स्तर के स्कूलों में बच्चों को शब्द पढ़ना, बोलना, जोड़-घटाव, गिनती आदि तक समझने और बोलने में दिक्कत है। इसका सीधा मतलब है कि शिक्षक अपनी जिम्मेदारी से बचे रहे।
बच्चों को बेहतर शिक्षण के लिए सालभर शिक्षकों का प्रशिक्षण कार्यक्रम चलता है, लेकिन कई शिक्षक इस प्रशिक्षण को गंभीरता से नहीं लेते है। हर साल स्कूलों की मरम्मत के लिए लाखों रुपए जारी होते है। लेकिन कई स्कूल ऐसे है, जहां भवन अधोसरंचना, मूलभूत सुविधाएं काफी कम है। कई स्कूलों में फर्नीचर तक नहीं है। कई स्कूल ऐसे है, जहां टाटपट्टी पर बैठाकर पढ़ाया जाता है।
प्रदेश सरकार द्वारा विद्यार्थियों के लिए कई तरह की योजनाएं चलाई जाती हैं, लेकिन जिले में इन योजनाओं का सही तरीके से क्रियान्वयन नहीं हो पाया। यही कारण है कि कई स्कूलों में दो साल बाद भी गणवेश वितरण तक नहीं हो पाया है। कई बच्चे पात्र होने के बाद छात्रवृत्ति से वंचित हैं। जिले में इस बार 75 हजार से अधिक बच्चे ड्राप आउट हैं। सत्र बीतने को है, लेकिन जिम्मेदार अफसर इन बच्चों को शिक्षा से जोड़ने में असमर्थ रहे हैं।
इंदौर का रिपोर्ट कार्ड-
नामांकन और ठहराव 12.8% अंक
सीखने के परिणाम और गुणवत्ता 12.5% अंक
शिक्षक प्रशिक्षण 9% अंक
समानता 3.5% अंक
अधोसंरचना और सुविधाएं 8.3% अंक
बजट 8.1% अंक
नव भारत साक्षरता कार्यक्रम 4.6% अंक
ऐसे पिछड़ते गए हम
2021-22 में 23वीं रैंकिंग
2022-23 में 29वीं रैंकिंग
2023-24 में 48वीं रैंकिंग