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“अशुद्ध खानपान से स्वास्थ्य भी विगड़ा तथा धर्म से भी भृष्ट हो गये”- मुनि श्री संघान सागर महाराज

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भोपाल (विश्व परिवार)। यंहा पर संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागरजी महामुनिराज के परम प्रभावक शिष्य शंकासमाधान प्रणेता मुनि श्री प्रमाणसागर महाराज विद्यासागर प्रवंध संस्थान में विराजमान है प्रवक्ता अविनाश जैन विद्यावाणी ने बताया मुनि श्री के प्रतिदिन प्रातःकाल8:35 से दिव्य प्रवचन माला चल रही है जिसमें बड़ी संख्या में धर्म श्रद्धालु लाभ ले रहे है उपरोक्त कार्यक्रम का प्रसारण लाईव होता है जिसका लाभ संपूर्ण भारत के धर्मश्रद्धालु उठा रहे है। इस अवसर पर मुनि श्री संधान सागर महाराज ने आचार्य श्री विद्यासागर महाराज का हायकू “खेती बाड़ी है, भारत की मर्यादा साड़ी है” “भारत को शक्तिशाली बनाना है,तो लौट चलो उस भारत की ओर” उन्होंने कहा कि भारत कृषी प्रधान देश रहा है, 70% भूमी कृषी पर आधारित है,नये नये उद्योग खुले है,और नये नये अविष्कार भी हुये है उन्होंने कहा कि भारत की उन्नति तो हुई है लेकिन जो शुद्ध और स्वास्थ्य वर्धक खानपान था उसके स्थान पर पैकैट वाले अशुद्ध खाद्यान्नों ने ले लिया जिससे व्यक्ति का स्वास्थ भी विगड़ा और वह धर्म से भी भृष्ट हो गये” मुनि श्री ने कहा कि पहला सुख निरोगी काया और दूसरा सुख घर में हो “माया” को प्राथमिकता दे दी उस “माया” के कारण किसी के पास इतना समय ही नहीं बचा कि “शुद्ध भोजन” बनाये तथाअपने परिवार के स्वास्थ्य का ख्याल रख सके समयाभाव के कारण पैकैट फूड का प्रचलन बड़ा और बीमारियों को भी आमंत्रण मिल गया,पहले हर मौहल्ले में एक किराने की दुकान अवश्य हुआ करती थी लेकिन आजकल मेडिकल शाप आवश्यक हो गयी है मुनि श्री ने कहा फास्टफूड के आने से मनुष्य की रोग प्रतिरोधक क्षमता घट गयी, पहले के लोग मौटा पहनते थे और मौटा खाते थे और 100 वर्ष से अधिक जीते थे,लेकिन आजकल पतला पहनते और फास्टफूड तथा होटल में जाकर अशुद्ध भोजन करते इस कारण मनुष्य की आयू भी क्षींण हो गयी है। मुनि श्री ने कहा कि आप लोगों ने धन तो बहूत कमाया है,लेकिन अपने स्वास्थ को गंवाया है,उन्होंने पांच प्रकार के सफेद जहर का वर्णन करते हुये कहा कि उपरोक्त कारणों से व्यक्ति का स्वास्थ्य विगड़ा है इन सभी चीजों से बचना चाहिए मुनि श्री ने कहा कि अस्पताल तो नरक का द्वार है सही दिशा में एक कदम भी चलोगे तो आप मंजिल के करीब होगे, हमेशा यह भावना हमेशा भाना चाहिये कि “जब भी मेरा अंत हो तो अस्पताल में न ले जाकर किसी संत के चरणों में ले जाना जिससे सही से समाधिमरण कर मुक्ति को प्राप्त कर सकों।

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