- स्लग- पर्यावरण के प्रति समर्पित समाजसेवी संस्था पीपला
- रोप चुके हैं 2000 से अधिक पौधे, सालभर चलता है कार्यक्रम.
- जब तक सांसें हैं, हर सांस देश और माटी के लिए कुर्बान
रायपुर (विश्व परिवार)। तपती धरती, पिघलते ग्लैशियर, घटती हरियाली, रेत में गुम होती नदियों की धार, कृषि भूमि के घटते रकबे और बढ़ते धार (मरूस्थल) ने विश्व समुदाय के माथे पर चिंता की लकीरें खींच दी हैं। शासन-प्रशासन में फैले भ्रष्टाचार ने उपजाऊ भूमि को बंजर कर दिया है. जिधर देखो, उधर हाहाकार, कहीं पानी के लिए त्राहि-त्राहि तो कहीं दावानल. प्रदूषण ने जमीन, जल और जंगल पर ऐसा कहर बरपाया है, कि वातावरण न घर में और न ही घर के बाहर जीने के लायक रहा। पर्यावरण के संरक्षण के प्रति घोर लापरवाही का दंश झेल रहा है मानव समाज.जलवायु परिवर्तन के चलते समय से पूर्व वर्षा, नौतपा में बारिश, कहीं बाढ़, तो कहीं सूखा, कुल मिलाकर प्रकृति में उत्पन्न असंतुलन ने पूरे विश्व समाज को असंतुलित कर दिया है।आखिर, इसके मूल में क्या है? यह सब कुछ जानकर भी, समाज अनजान बना हुआ है. बेखौफ पेड़ों की कटाई और जल, थल, नभ में बढ़ते प्रदूषण ने इनसानी सोंच की दशा और दिशा को स्पष्ट कर दिया है। एक तरफ दुनिया जिम्मेदारी से हाथ खींच रही है, तो वहीं पर्यावरण संरक्षण की दिशा में रायपुर जिले के आरंग की पीपला संस्था के बढ़ते कदम की जितनी तारीफ की जाए कम है।इस संस्था ने चार-पांच साल के अल्प समय में हजारों पौधे लगाकर कर अनुकरणीय प्रयास किया है। इनका प्रयास आठों काल, बारहों महीना चलते रहता है। इनके निष्ठावान सदस्य कहते हैं, जब तक सांसें हैं, हर सांस देश और माटी के लिए कुर्बान है। इनके प्रयास से आरंग शहर और आसपास हरियाली लगातार बढ़ती ही जा रही है। जो अपने आप में एक मिसाल है।
सांसें हो रही है कम, आओ पेड़ लगाए हम। इस ध्येय वाक्य को चरितार्थ कर रही है, आरंग की संस्था पीपला वेलफेयर फाउंडेशन (पीपला). संस्था की स्थापना 2021 में हुई थी. तब से आज तक पीपला वेलफेयर फाउंडेशन पर्यावरण संरक्षण की दिशा में प्रतिदिन कार्य करता आ रहा है। बरसात आते ही नगर में पौधरोपण तथा वर्ष भर,लगाए पौधों की देखभाल सिंचाई व संरक्षण का काम किया जाता है। जगह-जगह स्वच्छता, तालाबों की साफ-सफाई, पौधारोपण व संरक्षण टीम के सदस्यों का रोज का काम है। संस्था द्वारा लगाए अनेकों पौधे बड़े होकर लोगों को छाया और ऑक्सीजन दे रहे हैं। संस्था के सदस्य कहते हैं, कि पौधे कोई भी लगाए संरक्षण हम सबकी जिम्मेदारी है। लोगों द्वारा लगाए अधिकतर पौधे समय पर सिंचाई और देखभाल नहीं होने के कारण मर जाते हैं। लोग यह सोचते हैं कि जो पौधा लगाए हैं, देखभाल भी उन्हीं की जिम्मेदारी है।
कोविड के गर्भ से जन्मा है पीपला
इस संस्था का सिंबाल ही चौबीसों घंटे ऑक्सीजन देने वाले पीपल के पत्ते हैं। अब तक यह संस्था 2000 से अधिक पौधे रोपित कर चुकी है। जिनमें सैकड़ों पौधे बड़े होकर फल व आक्सीजन दे रहे हैं।
प्रतिदिन करते हैं पौधों की देखभाल
यह संस्था पौधारोपण के साथ साथ रोपित पौधों की प्रतिदिन देखभाल करते हैं। पौधे रोपित करने के साथ-साथ उनके संरक्षण पर विशेष ध्यान दिया जाता है। यही कारण है कि इनके लगाए अधिकतर पौधे बड़े हो रहे हैं। इनका कहना है पौधे रोपित करने से ज्यादा आवश्यक इनका संरक्षण करना है। सरकार या लोग चाहे जितना भी पौधे रोपित कर लें। संरक्षण नहीं हुआ तो सभी व्यर्थ है।
कोविड के गर्भ से जन्मा है पीपला
जब कोविड-19 दुनिया में कोहराम मचा रहा था। लोगों को ऑक्सीजन के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा था। तब कुछ समाजसेवियों द्वारा एक यह संस्था का निर्माण की बीज अंकुरित हुआ। और सबसे अधिक आक्सीजन देने वाले पीपल के पत्ते को प्रतीक मानकर
2021 से यह संस्था की शुरुआत हुई। तब से अब तक यह संस्था पर्यावरण संरक्षण सहित नगर में 200 से भी अधिक रचनात्मक कार्यकर अपनी अलग ही पहचान
बना चुकी है।
हजारों पौधों का करते हैं दान
यह संस्था पौधारोपण करने के साथ-साथ लोगों को पौधरोपण व संरक्षण के लिए जागरुक भी कर रहे हैं। इस संबंध में अखिल भारतीय स्तर पर क्विज प्रतियोगिता का आयोजन, अनेकों पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन, सोशल मीडिया में प्रचार प्रसार, पौधो में मिट्टी डालकर चबूतरा निर्माण सहित बरसात में हजारों पौधे लोगों को दान करते हैं।इस तरह यह संस्था पौधारोपण के साथ-साथ लोगों को जागरूक करने का कार्य भी कर रही है।
पर्यावरण के सजग प्रहरी
कोमल लाखोटी, अभिमन्यु साहू, दूजेराम धीवर, महेन्द्र कुमार पटेल, संजय मेश्राम, पारसनाथ साहू, आनंदराम पत्रकारश्री,रमेश देवांगन, यादेश देवांगन, प्रतीक टोंड्रे,होरीलाल पटेल, राकेश जलक्षत्री, खिलेश देवांगन,मोहन सोनकर, दुर्गेश निर्मलकर, भागवत जलक्षत्री, बसंत साहू, हरीश दीवान, डुमेंद्र साहू, चुमेश्वर देवांगन,शैलेन्द्र चंद्राकर,सूरज सोनकर ,दिना सोनकर,अशोक साहू,छत्रधारी सोनकर ,सियाराम सोनकर,नीरज साहू, राहुल पटेल, रमेश चंद्राकर, रोशन चंद्राकर सहित सभी सदस्य सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं।
असली नायक तो ये शिक्षक पटेल हैं
आरं से 8 किमी की दूरी पर स्थित ग्राम चरौदा के सरकारी मीडिल स्कूल में पदस्थ महेन्द्र पटेल इस संस्था के असली नायक हैं। पूरी दुनिया सोती है, पर महेन्द्र पटेल के सपने उन्हें सोने नहीं देते. समाज हित में चौबीसों घंटे काम करते रहना इनकी जिंदगी का शगल है।इन्होंने अपने गृह ग्राम लाफिन कला व अपने विद्यालय परिसर में भी जनसहभागिता से सैकड़ों पौधे लगाए हैं। साथ ही उनकी नियमित देखभाल भी कर रहे हैं। वे बताते हैं, कि उनके देख-रेख में करीब 100 से अधिक पौधे बड़े होकर फल देने लगे हैं। शिक्षक के मार्गदर्शन में इनके विद्यालय के बच्चे भी पेड़-पौधों की देखभाल में बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं। शिक्षक महेन्द्र को पर्यावरण की इतनी गहरी चिंता है कि उन्होंने अपने घर वालों को स्वयं के निधन होने पर अपनी चिता को गोबर के कंडे से दाह संस्कार करने कह रखे हैं।साथ ही कोविड काल में स्वयं के खर्च पर पर्यावरण संरक्षण पर बहुत ही मधुर प्रेरक गीत, और लघु फिल्म बनाकर सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों को जागरूक कर रहे हैं। उन्होंने अपने मरणोपरांत भी पौधरोपण करने के लिए परिवार वालों को पौधरोपण करने के लिए कम से कम 50000०/- पचास हजार रुपए डिपाजिट करने की इच्छा जताई है। जिससे कि उनकी मृत्यु के बाद उनके परिवार के सदस्य पौधे रोपित कर सके। इतना ही नहीं, वह हर वर्ष अपने जन्मदिन पर पीपल के पौधे रोपते हैं। जिससे कि लोगों को आक्सीजन मिल सके। उन्होंने अपने पिता स्व. शिवचरण पटेल सहित गांव के स्वर्गवासी बुजुगों के नाम पर भी अनेक पौधों का रोपण कर संरक्षित कर रहे हैं।