बिलासपुर(विश्व परिवार)। कहते है कि किसी भी शहर की ऐतिहासिक विरासत ही उस शहर की पहचान बनती है। अब हमारे शहर में कुछ ऐसा विशेष हुआ कि जब भगवान श्री राम अयोध्या में विराजे हैं, वैसे ही हमारे शहर का सबसे पुराना सरकंडा पुल ने भी ऐतिहासिक धरोहर के साथ धार्मिक महत्व भी प्राप्त कर लिया और शहरवासियों की आस्था भी अब इस पुल से जुड़ गई है। क्योंकि 22 जनवरी को भगवान श्रीराम के प्राण प्रतिष्ठा के दिन शहर को सरकंडा से जोड़ने वाले इस पुल का नाम राम सेतु कर दिया गया। वहीं से एक नया अध्याय शुरू हुआ है अब यह शहरवासियों के लिए आस्था का केंद्र भी बन चुका है।
यह शहर का पहला पुल है और इसे अंग्रेजों के जमाने में बनाया गया था। वर्तमान में इस पुल पर यातायात नहीं होता है। पुराना पुल होने की वजह से इसका एक ऐतिहासिक महत्व भी है। शहर के विकास में भी इस पुल ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। ऐसे में इस पुल के प्रति शहरवासियों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए प्रशासन भी इसे संजोकर रखने का प्रयास करते आ रहा था, लेकिन किस तरह से संजोना है यह कोई खास समझ प्रशासन के अधिकारियों को भी नहीं आ रहा था। इसी दौरान देशभर में भगवान श्री राम की अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा की तिथि तय हो गई और 22 जनवरी को प्राण प्रतिष्ठा की तिथि तय हुई। ऐसे में पुरा देश राममय हो गया और भगवान श्री राम की भक्ति में डूब गए। इसी दौरान शहर के कुछ बुद्धिजीवी के मत पर हामी भरते हुए इस पुल पर राम सेतु बनाने का निर्णय लिया। जो सभी को पसंद आया और इसके बार राम सेतु बनकर यह पुल धार्मिक महत्व प्रदान कर रही है। इसका विधिवत नामकरण 22 जनवरी को किया गया। वहीं अब शहरवासियों के लिए राम सेतु धार्मिक महत्व की जगह बन चुका है। इससे अब यह पुल भी हमेशा के लिए अमर हो चुका है।
चौपाई ने बढ़ाया धार्मिक महत्व
पूरे पुल में चौपाई व दोहा लिखा गया है। कुछ चौपाई राम चरित्र मानस से तो कुछ हनुमान चालीसा से लिया गया है। जिसे सुनने व पढ़ने से मन तृप्ति हो जाता है और भक्ति का संचार खुद बखुद होने लगता है। साथ ही राम सेतु का मनमोहक चित्रण भी किया गया है। यह भी देखने लायक है। जो पुल को धार्मिक महत्व प्रदान कर चुका है।