(विश्व परिवार)-नागरिकता संशोधन कानून-2019 (सीएए) 2019 को लागू कर भाजपा ने लोकसभा चुनाव में उतरने से पहले हिंदुत्व के तरकश में एक और तीर सजा लिया है। पार्टी की पूरी रणनीति बेरोजगारी, महंगाई और जाति गणना का सवाल खड़ा करने की कोशिश में जुटे विपक्ष को हिंदुत्व और राष्ट्रवाद की पिच पर उतारने की है। यही कारण है कि राम मंदिर निर्माण , अनुच्छेद-370 के खात्मे और तीन तलाक को दंडनीय अपराध बनाने के बाद भाजपा ने इस पिच पर विपक्ष को चित करने के लिए सीएए की गुगली डाल दी है।
सरकार की रणनीति और उम्मीदों के अनुरूप ही इस मामले में विपक्ष की ओर से तीखी प्रतिक्रिया सामने आ रही है। विपक्षी दल सीएए के साथ सरकार की आलोचना कर रहे हैं। ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी ने इसे विभाजनकारी और गोडसे की सोच पर आधारित फैसला बताया है। वहीं, कांग्रेस ने इसे चुनाव से पहले बहुसंख्यकों के ध्रुवीकरण की कोशिश बताया है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमृल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी ने तो इसे पूरी तरह से अस्वीकार्य बताया है। जाहिर तौर पर भाजपा को विपक्ष से ऐसी ही प्रतिक्रिया की उम्मीद थी। भाजपा ने भी इस पर पलटवार करते हुए इसे विपक्ष की हिंदू विरोधी सोच बताई।
हिंदुत्व व राष्ट्रवाद के मुद्दों को चरणबद्ध तरीके से पहनाया अमली जामा
मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में हिंदुत्व और राष्ट्रवाद से जुड़े अहम मुद्दों को ताबड़तोड़, मगर चरणबद्ध तरीके से अमली जामा पहनाया। सत्ता में आते ही पहले साल 2019 के मानसून सत्र में तीन तलाक को दंडनीय अपराध बनाया। फिर इसी सत्र में 5 अगस्त को अचानक जम्मू-कश्मीर को दो केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजित कर दशकों पुराने अनुच्छेद-370 को निरस्त कर दिया। उसी साल, नवंबर में सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने राममंदिर के पक्ष में फैसला दिया। इसके महज एक महीने बाद शीतकालीन सत्र में सरकार सीएए पर मुहर लगवाने में कामयाब रही।
ताकि आक्रामकता के साथ पार्टी से जुड़ा रहे परंपरागत मतदाता
भाजपा के पास हिंदुत्व और राष्ट्रवाद से जुड़े कई मुद्दे और उपलब्धियां हैं। इसके बावजूद ठीक चुनाव से पहले सीएए लागू करने के अलग सियासी निहितार्थ हैं। दरअसल, देश में एक बड़ा वर्ग हिंदुत्व और राष्ट्रवाद से प्रभावित है। यही भाजपा का पंरपरागत और मजबूत मतदाता वर्ग है। चुनाव में उतरने से पहले भाजपा चाहती है कि इस विचारधारा से जुड़े 22 से 25 फीसदी मतदाता बीते दो चुनाव की तरह ही इस चुनाव में भी मजबूती और पूरी आक्रामकता के साथ उससे जुड़े रहें।
चार साल लंबा इंतजार क्यों
सरकार के सूत्र बताते हैं कि सीएए लागू करने में हुई देरी का एक कारण विपक्ष और अल्पसंख्यकों के एक समूह का विरोध भी रहा। हालांकि, इस विरोध की आंच छह महीने में ही ठंडी पड़ गई थी। इसके बाद अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की प्रक्रिया चली। इस बीच, नियम तय करने को लेकर माथापच्ची हुई। बाद में तय किया गया कि इसे राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होने के बाद ठीक चुनाव से पहले लागू किया जाए। इस कानून को लागू करने का प्रयास मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में भी हुआ था। तब, साल 2016 में लोकसभा में पारित हुआ विधेयक राज्यसभा में अटक गया था। इसके बाद इसे संसदीय समिति को सौंप दिया गया था।
मुस्लिमों से भेदभाव को सरकार ने किया खारिज
सीएए का विरोध करने वालों कहना है कि इस कानून में मुस्लिमों के साथ भेदभाव किया गया है। जब नागरिकता देनी है, तो उसे धर्म के आधार पर क्यों दिया जा रहा है। इसमें मुस्लिमों को क्यों नहीं शामिल किया गया। सरकार ने इसका जवाब देते हुए कहा था कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान इस्लामिक देश हैं। वहां पर गैर-मुस्लिमों को धर्म के आधार पर सताया जाता है, प्रताड़ित किया जाता है। इसकी वजह से गैर-मुस्लिम यहां से भागकर भारत आए हैं। इसलिए गैर-मुस्लिमों को ही इसमें शामिल किया गया है।