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होली के बाद बाजार में दिखेंगे इको फ्रेंडली लाल मटका

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बिलासपुर(विश्व परिवार) होली के बाद न्यायधानी के बाजार और प्रमुख स्थानों पर इको फ्रेंडली लाल मटका दिखेगा। गर्मी बढ़ने के साथ कुम्हारों का चाक घूमने लगा है। कोरोना महामारी के बाद से मिट्टी के घड़ों की मांग तेजी से बढ़ी है। स्वास्थ्य के लिए लाभदायक और प्लास्टिक का उपयोग कम करने का बेहतर विकल्प है। न्यायधानी सहित आसपास के ग्रामीण अंचलो में गर्मी की आहट होते ही कुम्हारों के घर बड़े पैमाने पर मटके तैयार होने शुरू हो गए हैं। मटके तैयार करने में व्यस्त कुम्हारों का कहना है कि महंगाई के चलते अब मिट्टी के घड़े व अन्य सामग्री तैयार करना मुश्किल हो रहा है। फिर भी पूरा प्रयास है कि अधिक से अधिक मटके का निर्माण इस साल संभव हो। कुम्हारों का पूरा परिवार इस काम में जुट गया है। तोरवा पेट्रोल पंप, कुम्हारपारा,मगरपारा, शनिचरी सहित आसपास गांव में इन दिनों गर्मी को देखते हुए बड़े पैमाने में मटके तैयार किए जा रहे हैं। वही कुम्हारों ने बताया कि गर्मी के इस सीजन में मटकों की मांग रहती है।

मांग को देखते हुए मटके तैयार किए जा रहे हैं। मिट्टी आसपास के जगहों से लाई जाती है। कच्ची सामग्रियों की बढ़ी हुई कीमत के कारण अब इस व्यवसाय में भले ही पहले जैसा मुनाफा नहीं रहा। लेकिन सरकारी योजनाओं और लोगों की बढ़ती मांग के बीच कुम्हारों में अब उम्मीद की किरण जगी है। लोग अब फ्रीज के पानी के बजाए मटके के पानी पीना अधिक पसंद कर रहे हैं। यही स्थिति रही तो निश्चित ही कुम्हारों के जीवन में भी बड़ा बदलाव दिखेगा। कुम्हारों का यह भी कहना है कि होली के बाद शहर के लगभग सभी प्रमुख स्थानों पर लाल मटके नजर आने लगेंगे।

गलियों में घूम-घूम कर बेचते हैं मटका

गर्मी को देखते हुए कुम्हार विकास प्रजापति ने बताया की होली के बाद शहर व आसपास के गांव में घूम-घूम कर मटका बेंचना शुरू कर देते हैं। इस साल देशी मटकों की कीमत 50 रुपये से 80 रुपये के बीच होगी। वहीं चंदिया के मटके 60 रुपये से लेकर 100 रुपये तक बिकेगा। राजस्थान से आने वाले मटके 80 से 150 रुपये तक हो सकता है। प्रतिस्पर्धा के दौर में मटके और मिट्टी के बर्तन बेचना भी आसान नहीं रहता। कई स्थानों पर खुलने वाले सार्वजनिक प्याऊ में भी इन मटकों की मांग रहती है।

अक्षय तृतीया पर सबसे ज्यादा बिक्री

बिलासपुर में हर साल अक्षय तृतीया के दिन सबसे ज्यादा मिट्टी के मटके बिकते हैं। इस साल 10 मई को यह पर्व मनाया जाएगा। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह दिन सबसे खास होता है। वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की इस तृतीया तिथि को सबसे खास दिन माना जाता है। छत्तीसगढ़ी परंपरा के मुताबिक इस दिन बच्चे अपने घरों में गुड्डे गुड़ियों की नकली शादी रचाते हैं। जिसके लिए मिट्टी के बर्तन खरीदे जाते हैं। घरों में नए घड़े की पूजा-अर्चना कर पानी रखा जाता है। यही कारण है कि बाजार में इस दिन भारी भीड़ जुटती है।

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