(विश्व परिवार)-पावन पुनीत परम पूज्य गुरुदेव,महामुनि ब्रम्हांड संत, 108 आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के जीव ने अपने नश्वर देह का त्याग किया 17 व 18 फरवरी 2024 के दरमियानी रात्रि को, तीसरे प्रहर (त्रियामा) के समापन व चतुर्थ प्रहर (उषा) के आरम्भ में , उस समय माना जाता है कि विभिन्न प्रकारेण देवी देवता विचरते हैं और ऐसे ब्रह्मकाल के पलों को मोक्ष गमन का समय बनाया आचार्य श्री आपने….हे वर्तमान के वर्धमान स्वीकारों हमारा वंदन नमोस्तु गुणगान….
काव्य रचना:-
आचार्य श्री को अभी हम पर और कृपा बरसाना था
हे गुरुदेव आपको ऐसे तो न जाना था..
आपसे बहुत कुछ जाना था,
जो कुछ भी अनजाना था
और भी ज्ञान अभी तो हमको पाना था-2
हे गुरुदेव आपको ऐसे तो न जाना था ।।1।।
विद्याधर से विद्यासागर हुए आप,
सिर्फ जैन नही जन-जन के आदर्श हुए आप,
हिंसा पीड़ित विश्व में अहिंसा अलख और जगाना था,
हे गुरुदेव आपको ऐसे तो न जाना था ।।2।।
विद्या के सागर थे आप,
वीतरागता के गागर थे आप,
ब्रम्हांड में अभी और ऊर्जा बरसाना था-2
हे गुरुदेव आपको ऐसे तो न जाना था ।।3।।
सरल सादगी की मूरत थे आप,
महावीर की परछायी और सूरत थे आप,
आपमें जिनवाणी का अदभुत नज़ारा था-2
हे गुरुदेव आपको ऐसे तो न जाना था ।।4।।
हर जीव से मित्रता की सीख देते रहे आप,
इंडिया नही भारत कहिए की गूंज देते रहे आप,
आपकी मुस्कुराहट से खिलता हमारा जमाना था-2
हे गुरुदेव आपको ऐसे तो न जाना था ।।5।।
चल चरखा सूत से स्वदेशी प्रीत जगाई आपने,
गऊशाला, जीवदया की राह दिखाई आपने,
बहुत सी प्रतिभास्थली अभी और जगमगाना था-2
हे गुरुदेव आपको ऐसे तो न जाना था ।।6।।
चन्द्रगिरि को तीर्थ बनाया आपने,
चरम तीर्थेश की महिमा बताया आपने,
डोंगरगढ़ को समाधिस्थल बनाना था,
छत्तीसगढ़ के मान को बढ़ाना था
लेकिन …हे गुरुदेव आपको ऐसे तो न जाना था
लेकिन ..हे गुरुदेव आपको ऐसे तो न जाना था ।।7।।