कवर्धा (विश्व परिवार)। कबीरधाम जिले के पंडरिया से 20 किमी दूर वनग्राम बकेला के जंगलों में 1979 में जैन धर्म के तेईसवें तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथ भगवान की 12वीं शताब्दी की प्रतिमा एव मंदिर के भग्नावशेष प्राप्त हुए थे उस स्थान पर अब भगवान पार्श्वनाथ के मंदिर का जीर्णोद्धार कार्य चल रहा है। उस समय जैन समाज के लिए उक्त मूर्ति प्राप्ति हेतु तत्कालीन पंडरिया विधायक स्व. श्री फूलचंद जी लोढ़ा के प्रयासों से तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री वीरेंद्र कुमार जी सकलेचा ने पंडरिया जैन मंदिर में दर्शनार्थ रखने हेतु प्राप्त हुई ।
वर्तमान में उसी स्थान पर राजस्थान के सफेद संगमरमर से यहां पर श्री बकेला चिंतामणि पार्श्वनाथ जैन श्वेताम्बर तीर्थ ट्रस्ट द्वारा जीर्णोद्धार का कार्य चल रहा है। इसका निर्माण राजस्थान से आए कारीगर कर रहे हैं। सफेद संगमरमर से बने इस मंदिर की उम्र 500 साल से भी ज्यादा होगी। इस मंदिर में राजस्थान के मकराना के खदानों से निकाला गया 22867 घनमीटर सफेद संगमरमर का उपयोग किया जायेगा तथा मंदिर की ऊंचाई शिखर सहित 65 फिट होंगी। वर्तमान में मंदिर का लगभग 90% कार्य पूर्ण हो गया है।
जैन धर्म के छत्तीसगढ़ के एकमात्र प्राचीनतम तीर्थ में जीर्णोद्धार पश्चात श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ भगवान की भव्य प्रतिमा स्थापित की जाएगी। ट्रस्ट के प्रचार प्रमुख आशीष जैन बताते हैं कि निर्माण कार्य 2025 के अंत तक पूरा करने का लक्ष्य है। 2026 में प्रतिमा की प्राण-प्रतिष्ठा खरतरगच्छाचार्य श्री जिन पियूष सागर सूरि जी म सा द्वारा सम्पन्न कराने की भावना है ।
यह मंदिर करीब 20 हजार वर्गफीट क्षेत्र में बन रहा है। इसमें गर्भगृह और गुण मंडप (परिक्रमा स्थल) रहेगा। मुख्य मंदिर के बाहर दो और मंदिर बनाए जा रहे हैं। बाईं ओर गणधर श्री गौतम स्वामी जी और दाईं ओर दादा गुरुदेव का मंदिर होगा। तीनों मंदिरों की प्राण-प्रतिष्ठा एक साथ होगी।
तीन ओर नदी से घिरा, मैकल पर्वत श्रृंखला भी
बकेला का यह स्थान प्राकृतिक रूप से तीन ओर हाफ नदी से घिरा है तथा चारों ओर मैकल पर्वत की श्रृंखला फैली हुई है। यहां आने वाले श्रद्धालु प्राकृतिक सौंदर्य में रम जाते हैं। बकेला के आस पास पर्यटन की दृष्टि से भोरमदेव ,कान्हा किसली,अमरकंटक दीवान पटपट, दलदली की बाक्साइट की खदानें सहित अनेक पर्यटन के स्थान है जिससे यह मंदिर आस्था और पर्यटन का केंद्र बनेगा।
10 एकड़ क्षेत्र में फैला है तीर्थ स्थल
श्री बकेला चिंतामणि पार्श्वनाथ जैन श्वेतांबर तीर्थ ट्रस्ट के अंतर्गत तीर्थ के जीर्णोद्धार कार्य में तेजी आई है। ट्रस्ट के अध्यक्ष सुधीर डाकलीया एव सचिव प्रकाश चन्द्र जैन कोठारी नें बताया कि ट्रस्ट के पास 13.56 एकड़ भूमि है। यहां चल मंदिर, प्रभु मंदिर, उपाश्रय और धर्मशाला बने हैं। 5000 फिट का भव्य आराधना हॉल तैयार हो चुका है। 54 कमरों वाली धर्मशाला और भोजनशाला का निर्माण हो चुका है। जिसका दर्शनार्थी एवं यात्रीगण लाभ ले रहे है।
ऐतिहासिक रूप से इस तीर्थ के निर्माण का सबसे पहले स्वप्न देखने वाली छत्तीसगढ़ रत्न शिरोमणि महतरा पद विभूषिता परम पूज्या मनोहर श्रीजी मसा थी उन्होंने समाज को दिशा दी कि एक दिन यहां भव्य तीर्थ का निर्माण अवश्य होगा। इसी तारतम्य में कैवल्यधाम तीर्थ प्रेरिका परम पूज्या निपुणा श्रीजी म.सा. ने इसके कार्य को आगे बढ़ाते हुवे पंडरिया में श्री महाकौशल मूर्तिपूजक संघ के माध्यम से प्रतिवर्ष पौष बदी दशमी को मेला भराने का कार्य प्रारंभ किया गया, जो अनवरत जारी है।
पंडरिया के स्व श्री गौतम चंद लोढ़ा के प्रयासों से सन 2002 में वर्तमान खरतरगच्छाचार्य श्री जिन मनोज्ञसागरजी म.सा. दल्लीराजहरा से बकेला तीर्थ स्थल तक छरीत पालीत पदयात्री संघ निकाल कर सैकड़ों श्रावक श्राविकाओं के साथ इस प्रवित्र स्थल में पधारे तथा यहां पर भव्य तीर्थ के निर्माण के लिये ट्रस्ट का गठन किया व भूमि क्रय करने का निर्णय लिया गया।
इस तीर्थ के निर्माण में प्रारंभ से लेकर आज तक सर्वाधिक योगदान देश विदेशों में 1290 मंदिरों एवं तीर्थ की प्रतिष्ठा कराने वाले शासनरत्न, प्रेरक एवं मार्गदर्शन श्री मनोजकुमार जी बाबूमल जी हरण, सिरोही राजस्थान वालो का रहा है। जिनका अनवरत सहयोग एव मार्गदर्शन ट्रस्ट मंडल को मिल रहा है ।
इस तीर्थ में प्रथम चातुर्मास परम पूज्य मनोज्ञसागर जी म.सा. व तत्पश्चात नवकार जपेश्वरी परम पूज्य शुभंकरा श्री जी म.सा. ने किया है। तीर्थ के मुख्य मंदिर का भूमिपूजन और शिलापूजन साध्वी प पूज्य श्री मृगावती श्री जी म सा एव प्रसिद्ध विधिकारक श्री मनोज हरण जी के द्वारा किया गया था ।
इस तीर्थ में तत्कालीन मुख्यमंत्री द्वय डॉ रमन सिंह ,अजित जोगी, मंत्रीगण राजेश मूणत, बृजमोहन अग्रवाल, तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष धरमलाल कौशिक, धर्मजीत सिंह सहित अनेक राजनेताओं ने अपनी उपस्थिति विभिन्न अवसरों पर दी है तथा तीर्थ के निर्माण में अपना योगदान दिया है। तीर्थ से दिल से जुड़े हुए तीर्थ के विकास के लिए विधायक धर्मजीतसिंह का योगदान अवर्णनीय है।
इस तीर्थ के आधार स्तंभ के रूप में प्रारंभ से स्व.ज्ञानचंद लूनिया, अनुपचंद बैद, शांतिलाल लूनिया, शांतिलाल लोढ़ा, भीखमचंद लोढ़ा, रमेशचंद चोपडा, जगदीश पारख, यशवन्तराज बंगानी आज भी सक्रिय है, ट्रस्ट के अध्यक्ष के रूप में सुधीर डाकलिया एवं सचिव – प्रकाशचंद जैन कोठारी वर्तमान में कार्य कर रहे है।