Home रायपुर एनआईटी रायपुर में ‘लिविंग अ पर्पसफुल लाइफ’ विषय पर हुआ व्याख्यान सत्र...

एनआईटी रायपुर में ‘लिविंग अ पर्पसफुल लाइफ’ विषय पर हुआ व्याख्यान सत्र का आयोजन, स्वामी आत्मविद्यानंद गिरी जी ने सिखाए क्रिया योग के द्वारा जीवन जीने के मंत्र

46
0

रायपुर (विश्व परिवार)। एनआईटी रायपुर में दिनांक 11 मार्च 2025 को “प्रबोधन” कार्यक्रम के अंतर्गत स्वामी आत्मविद्यानंद गिरी जी का विशेष व्याख्यान आयोजित किया गया। स्वामी आत्मविद्यानंद गिरी जी क्रिया योग संस्थान के उपाध्यक्ष हैं और वे पिछले दो दशकों से दुनियाभर में क्रिया योग का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। व्याख्यान का विषय ‘लिविंग अ पर्पसफुल लाइफ’ था, कार्यक्रम का आयोजन विशेष रूप से छात्रों, शिक्षकों और कर्मचारियों के लिए किया गया था, जिससे वे कर्मयोग और आध्यात्मिक जीवन के महत्व को गहराई से समझ सकें। इस कार्यक्रम में निदेशक (प्रभारी) डॉ. समीर बाजपेई, डीन (छात्र कल्याण) डॉ. नितिन जैन, समन्वयक, श्री प्रकाश मिश्रा, डॉ. मंजू शुक्ला, श्री सूरज निषाद, संस्थान के अलुमिनी, फैकल्टी मेम्बर्स, पीएचडी स्कॉलर्स और छात्र उपस्थित रहे।
कार्यक्रम का शुभारंभ वंदे मातरम् के सामूहिक गान के साथ हुआ, जिससे पूरी सभा में राष्ट्रभक्ति और ऊर्जा का संचार हुआ। डॉ. बाजपेई ने मुख्य अतिथि स्वामी आत्मविद्यानंद गिरि जी का स्वागत किया और उन्हें स्मृति चिन्ह भेंट किया। डॉ. बाजपेई ने बताया कि प्रबोधन कार्यक्रम का उद्देश्य प्रतिष्ठित वक्ताओं को आमंत्रित कर ज्ञानवर्धक सत्र आयोजित करना है, ताकि विद्यार्थियों में जीवन मूल्यों का विकास किया जा सके।
इसके पश्चात स्वामीजी ने अपने संबोधन की शुरुआत एक श्लोक के साथ की और सर्वव्यापी दिव्य शक्ति को नमन किया। उन्होंने जीवन को एक सतत सीखने और आत्म-खोज की यात्रा बताया और यह भी कहा कि इंसान अक्सर अपने सच्चे उद्देश्य को लेकर भ्रमित रहता है। महाभारत के एक श्लोक का उल्लेख करते हुए, स्वामीजी ने समझाया कि बुद्धि ही मनुष्यों को पशुओं से अलग बनाती है, जिससे वे सही और गलत में अंतर कर सकते हैं। उन्होंने जीवन के सार को समझाते हुए कहा कि महान व्यक्ति खुद को एक उच्च उद्देश्य के लिए समर्पित कर देते हैं, जो उन्हें उन लोगों से अलग करता है जो बिना किसी नैतिक दिशा के जीवन व्यतीत करते हैं। एक कहानी के माध्यम से उन्होंने यह संदेश दिया कि समय का सही उपयोग करना और समाज में सार्थक योगदान देना कितना महत्वपूर्ण है, जिससे व्यक्ति अपने विचारों और कर्मों के माध्यम से एक योगी बन सकता है।
स्वामीजी ने यह भी बताया कि हर व्यक्ति को अपने जुनून पर ध्यान देना चाहिए, अपनी ताकत और कमजोरियों को पहचानना चाहिए और अपने रास्ते पर भरोसा रखना चाहिए। उन्होंने सेवा कार्यों में भाग लेने, समाज को कुछ देने, कृतज्ञता विकसित करने और संतुष्ट रहने की आवश्यकता पर जोर दिया। स्वामीजी ने एक श्लोक साझा किया और यह समझाया कि सांस और मानसिक शांति के बीच गहरा संबंध है। उन्होंने कहा कि अगर हम अपनी सांसों को नियंत्रित करना सीख लें तो हमारा मन शांत हो जाता है। उन्होंने क्रिया योग की अवधारणा को समझाया – “क्रि” (क्रिया) और “या” (दिव्यता) – जो एक प्राचीन और वैज्ञानिक ध्यान पद्धति है, जो सांस और कर्म को आत्मा से जोड़ती है। स्वामीजी ने बताया कि क्रिया योग के कई लाभ हैं, यह न केवल शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक रूप से व्यक्ति को सशक्त बनाता है, बल्कि आत्म-जागरूकता को भी गहरा करता है, जिससे मोक्ष की प्राप्ति में सहायता मिलती है।
कार्यक्रम का समापन प्रश्नोत्तर सत्र के साथ हुआ जिसमें उपस्थित लोगों ने स्वामी जी से कार्यक्रम से संबंधित प्रश्न भी पूछे। इस कार्यक्रम ने छात्रों और संकाय सदस्यों को आध्यात्मिकता और योग के महत्व को समझने का अवसर दिया और उन्हें एक संतुलित जीवन जीने की दिशा में मार्गदर्शन प्रदान किया।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here