(विश्व परिवार)। एक सामान्य जीवन जीने वाले पिता, रवींद्र ने पिछले बारह महीनों में अपनी एक साल की बेटी जीविशा की लगभग 13,000 तस्वीरें खींची हैं। यह कोई मामूली बात नहीं है। जहां हम डिजिटल युग में तस्वीरों को क्षणिक स्मृति मानते हैं, रवींद्र के लिए यह उनके दिल के बेहद करीब है।
रवींद्र कहते हैं कि “जब जीविशा पहली बार मुस्कुराई, पहली बार बैठी, और पहली बार अपने नन्हे कदमों से चली, मैं इन पलों को केवल याद नहीं करना चाहता था, मैं इन्हें सहेजना चाहता था,” ।
हर दिन, हर पल के साथ, उन्होंने कैमरा उठाया और अपनी बेटी के मासूम पलों को कैद किया। चाहे वह सुबह की हंसी हो, बारिश में खेलने की खुशी, या रात में सोते समय उसके शांत चेहरे की तस्वीर—हर फोटो में एक कहानी छिपी है। उनकी पत्नी लता कहती हैं, “वो इसे सिर्फ एक शौक नहीं मानते, यह उनके लिए जीविशा के बचपन को हमेशा अपने पास रखने का एक तरीका है।”
यह केवल तस्वीरें नहीं हैं। यह पिता का अपनी बेटी के बचपन को अमर करने का प्रयास है। “मैं चाहता हूं कि जब जीविशा बड़ी हो और इन तस्वीरों को देखे, तो उसे अपने बचपन की मासूमियत और हमारे प्यार का एहसास हो,” रवींद्र भावुक होकर कहते हैं।
बचपन की यादों का पुलिंदा
जब जीविशा एक दिन बड़ी होगी और इन तस्वीरों को देखेगी, तो ये केवल तस्वीरें नहीं होंगी। ये उसके बचपन की महक होंगी, वह पल होंगे जो वह खुद याद नहीं कर सकती लेकिन महसूस कर सकेगी।
सोचिए, जब वह अपने माता-पिता के बिना इस दुनिया में होगी, तो क्या यह तस्वीरें उसके लिए एक सहारा नहीं बनेंगी? जब वह अकेली होगी, ये तस्वीरें उसके माता-पिता के प्यार और उनकी मौजूदगी का एहसास कराएंगी।
रवींद्र मानते हैं, “हमेशा हमारे साथ रहना संभव नहीं है, लेकिन इन तस्वीरों के जरिए मैं और लता हमेशा उसके पास रहेंगे। शायद वह हमें कभी खोने का गम महसूस न करे।”
क्या यह एक रिकॉर्ड है?
दुनिया में रोज़ाना नए रिकॉर्ड बनते हैं। कुछ लोग अपनी शारीरिक क्षमता दिखाते हैं, तो कुछ अपनी बौद्धिक क्षमता। रवींद्र का यह प्रयास किसी रिकॉर्ड की परिभाषा में फिट हो या न हो, लेकिन यह एक पिता के सच्चे और गहरे प्रेम का प्रमाण ज़रूर है।
जहां कुछ लोग रवींद्र के इस जुनून को ओवर-एंबिशन कह सकते हैं, वहीं बहुत से माता-पिता इसे एक प्रेरणा मानेंगे। “मैं चाहता हूं कि यह कहानी हर माता-पिता को यह एहसास कराए कि हमारे बच्चों का बचपन कितना कीमती है।”
जीविशा के लिए एक तोहफा
हर तस्वीर एक तोहफा है। जब जीविशा पहली बार अपने बालों में सफेदी देखेगी और इन तस्वीरों को पलटेगी, तो उसके चेहरे पर मुस्कान होगी और आंखों में नमी। रवींद्र के इस प्रयास ने यह साबित कर दिया है कि पिता का प्यार शब्दों से परे है।
यह कहानी केवल तस्वीरों की नहीं, बल्कि एक पिता के अपने बच्चे के प्रति निस्वार्थ प्रेम और उसके बचपन को हमेशा के लिए संजोने के भाव की है। क्या आप भी अपने बच्चों के लिए ऐसा कुछ कर रहे हैं?