- विश्व में हर तीसरा व्यक्ति भारत में निर्मित दवाइयों का सेवन करता है… डॉ. दीपेंद्र सिंह
- हमारे पूर्वजों द्वारा प्रदान की गई पारंपरिक ज्ञान पर आधारित प्रक्रिया का पालन करना है सतत विकास… मुख्य अतिथि अरुण कुमार पांडे
रायपुर(विश्व परिवार)। श्री रावतपुरा सरकार यूनिवर्सिटी विद्यार्थियों को कैरियर सहयोगी विशेष क्षेत्र में बेहतर तरीके से तैयार करने की दिशा में अग्रसर है। इसी कड़ी में फार्मेसी विभाग द्वारा “औषधि विकास के लिए पारंपरिक स्वदेशी औषधीय पौधों के हालिया रुझान और भविष्य की संभावनाएं” विषय पर एक राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया गया, जिसमें भारत के विभिन्न राज्यों से शोध विद्वान, शिक्षाविद और विद्यार्थियों सहित 500 से अधिक पंजीयन हुए जिसमें सभी प्रतिभागी, शोधकर्ता और प्रोफेसर भी ऑनलाइन संगोष्ठी से जुड़े।
सेमिनार के संयोजक फार्मेसी विभाग के प्राचार्य डॉ. विजय कुमार सिंह ने दो दिवसीय सेमिनार के विषय पर विस्तार से बताते हुए कहा कि इस सेमीनार का मुख्य उद्देश्य पारंपरिक औषधीय पौधों के उपयोग से नई औषधियों के विकास के लिए नवीनतम प्रगति, शोध उपलब्धियों तथा अवसरों की तलाश करना है।
यूनिवर्सिटी का संक्षिप्त परिचय देते हुए तथा विद्यार्थियों को ज्ञान अर्जन के दौरान जिम्मेदार एवं अच्छे नागरिक बनाने के उद्देश्य से संस्थान की स्थापना के मुख्य उद्देश्य पर प्रकाश डालते हुए यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रो. एस.के. सिंह ने कहा कि ज्ञान सार है, लेकिन ज्ञान का सार है उसे व्यवहार में लाना। छात्रों को अपने ज्ञान का उपयोग वास्तविक जीवन में अच्छे समाज एवं राष्ट्र के निर्माण में करना चाहिए।
अपने संबोधन में कुलसचिव डॉ. सौरभ कुमार शर्मा ने स्वदेशी पारंपरिक पौधों पर आधारित थीम का चयन करने के लिए फार्मेसी विभाग को बधाई दी तथा कहा कि आधुनिकता एवं तकनीक के इस युग में पौधों से प्राप्त होने वाली सभी औषधियां दुर्लभ होती जा रही हैं तथा प्राचीन काल में विभिन्न महामारियों की रोकथाम के लिए आयुर्वेद में वर्णित विधियों से उपचार किया जाता रहा है।
सेमिनार के मुख्य अतिथि डॉ. दीपेंद्र सिंह चेयरमैन, ईआरसी फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया, नई दिल्ली ने औषधीय पौधों की उपलब्धता के कुछ आंकड़े साझा करते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ में 1500 से अधिक औषधीय पौधे सूचीबद्ध हैं और राज्य के आदिवासी लोगों को स्वदेशी औषधीय प्रजातियों के उपयोग और उपचार की प्रक्रिया के बारे में बहुत अच्छी जानकारी है। साथ ही डॉ. सिंह ने कहा कि दुनिया में हर तीसरा व्यक्ति भारत में निर्मित गोलियों का सेवन करता है, क्योंकि दुनिया के किसी भी हिस्से में खोजी गई कोई भी दवा भारत से होकर ही गुजरी है, क्योंकि विश्व स्तर पर दवा निर्माण से संबंधित अत्याधुनिक सुविधाएं उपलब्ध हैं।
राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन समारोह के मुख्य अतिथि श्री अरुण कुमार पांडे आईएफएस एडिशनल सीसीएफ वन विभाग छत्तीसगढ़ ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि, हमारे पूर्वजों द्वारा प्रदान की गई पारंपरिक दवाओं की सीखने की प्रक्रिया का पालन करने और बनाए रखने के लिए पारंपरिक ज्ञान पर आधारित सतत विकास का महत्व है क्योंकि वेदों, उपनिषदों के अनुसार प्रत्येक पौधे और पेड़ का औषधीय महत्व है और श्री पांडे ने छत्तीसगढ़ के आयुर्वेद चिकित्सकों की मदद से वन औषधालय की स्थापना के बारे में भी चर्चा की और बताया कि कुछ औषधीय पौधे जैसे ग्लोरिसा सुपरबा जिससे आम तौर पर कलिहारी के रूप में जाना जाता है और लाल लता (वेंटिलागो डेंटिकुलता) पौधे के औषधीय बीज का तेल त्वचा रोगों को दूर करने के लिए उपयोगी हैं ।
प्रथम दिवस के तकनीकी सत्र में प्रो.चंचल दीप कौर प्रिंसिपल आरसीपीएसआर रायपुर, डॉ नागेंद्र सिंह चौहान वरिष्ठ वैज्ञानिक औषधि परीक्षण प्रयोगशाला और अनुसंधान केंद्र, रायपुर और प्रोफेसर डॉ सुशील के शशि वनस्पति विज्ञान विभाग, जीजीयू, रायपुर राष्ट्रीय संगोष्ठी के रिसोर्स पर्सन थे।
सेमिनार में डीन अकादमिक डॉ. आरआरएल बिराली, मुख्य पी.आर.ओ श्री राजेश तिवारी ,आयोजन सचिव डॉ. वीणा देवी सिंह और फार्मेसी विभाग के सभी स्टाफ सदस्य तथा विद्यार्थी मौजूद रहे। मंच का संचालन डॉ. सिंदुरा भार्गव ने किया। एस.आर.यू के प्रति- कुलाधिपति श्री हर्ष गौतम ने पारंपरिक चिकित्सा के महत्व पर आधारित सेमिनार के आयोजन के लिए फार्मेसी विभाग को बधाई दी।