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आचार्य श्री शांति सागर जी महाराज ने जैन धर्म की संस्कृति, जिनवाणी और जिनालयों का संरक्षण किया उनका शताब्दी महोत्सव बनाना हम सब का परम कर्तव्य है – आचार्य श्री वर्धमान सागर जी

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पारसोला(विश्व परिवार)। पंचम पट्टाघीश आचार्य श्री वर्धमान सागर जी घरियाबाद कस्बे के पारसोला नगर सन्मति भवन में संघ सहित विराजित है आज के धर्म सभा में बताया कि श्रावक के क्या कर्तव्य हैं देव शास्त्र गुरु के प्रति, परिवार के प्रति ,माता-पिता के प्रति उनकी क्या भावना होना चाहिए। आचार्य श्री शांति सागर जी का आचार्य पधरोहण का शताब्दी वर्ष अक्टूबर 2025 से प्रारंभ होना है आचार्य शांति सागर जी ने चारित्र का पालन कर ज्ञान अर्जित किया गृहस्थ अवस्था में उन्होंने साधुओं की आहार दान से वैया वृत्ति से, उन्हें कंधे पर बिठाकर नदी पार कराते थे। उन्होंने 18 वर्ष की उम्र में जुते चप्पल का त्याग कर दिया आज का श्रावक किसी साधु को लेने जाता है ,या मंदिर तक भी आप आते हैं तो बगैर चप्पल जूते के नहीं आते हैं यह विचारणीय प्रश्न है। आचार्य श्री ने गृहस्थ अवस्था में माता-पिता का सम्मान किया उनकी आज्ञा का पालन कर उनकी समाधि होने तक उन्होंने घर पर रहकर संयम की साधना की आज के श्रावक माता-पिता का सम्मान नहीं करते हैं। सातगौड़ा जी ने सिद्धक्षेत्र की वंदना की वहां असहाय निर्बल व्यक्तियों को भी अपने कंधे पर बिठाकर शिखरजी में एवं राजगृही के पर्वत पर वंदना कराई। उन्होंने स्वाध्याय प्रेमी मलगोड़ा को आत्महत्या करने से बचाया। उनके मन में करुणा और अहिंसा सदा प्रवाहित होता रहता था। आचार्य श्री वर्धमान सागर जी ने बताया कि आत्मा में व्रत से विशुद्धी बढ़ती है रागद्वेष मिथ्यात्व कम होता है भगवान की भक्ति उमंग, उत्साह, निष्फल निस्वार्थ भाव से करना चाहिए इससे आत्मा पर लगे कर्मों का क्षय होता है सच्चा वैराग्य होने पर ही व्यक्ति दीक्षा लेता है। विशुद्धी बढ़ने पर ज्ञान प्राप्त होता है ।खरा होने के लिए स्वर्ण के समान तप रूपी अग्नि में तपना होता है। आचार्य श्री वर्धमान सागर जी ने कहा कि प्रथमाचार्य श्री शांति सागर जी महाराज ने क्षुल्लक अवस्था से ही आगम चर्या का पालन किया उन्होंने गुरु से दीक्षा ली। आचार्य बनने के बाद उन्होंने जैन धर्म के संस्कृति, जिनवाणी और जिनालयों का संरक्षण किया उनका आचार्य पद का शताब्दी महोत्सव मनाना हम सब का परम कर्तव्य है उनके उपकारों को चुकाने का यह अवसर हमें मिला राजेश पंचोलिया ने बताया कि आचार्य श्री के प्रवचन के पूर्व शिष्य मुनि श्री हितेंद्र सागर जी ने प्रवचन में बताया कि संसारी प्राणी भौतिक निधि चाहते हैं जबकि साधु श्रमण दीक्षा रूपी निर्ग्रन्थ निधि चाहते हैं मुनिश्री ने भाव और द्रव्य श्रुत की चर्चा कर विवेचना की। आपने बताया कि प्रथमाचार्य श्री शांति सागर जी महाराज के दीक्षा गुरु श्री देवेंद्र कीर्ति स्वामी ने 13 वर्ष की उम्र में भट्टारक पद और 15 वर्ष की उम्र में श्रमण निर्ग्रन्थ दीक्षा ली। उन्होंने भौतिक संपदा छोड़कर दीक्षा ली 105 वर्ष की उम्र में उनकी सल्लेखना समाधि सिद्ध क्षेत्र श्री सम्मेद शिखर जी में हुई। समाज अध्यक्ष जयंतीलाल कोठारी एवं चातुर्मास कमेटी अध्यक्ष ऋषभ पचौरी ने बताया कि प्रातः काल आचार्य श्री के सानिध्य में श्री जी का पंचामृत अभिषेक हुआ बाहर से आए अतिथियों ने पूर्वाचार्यौ के चित्रों का अनावरण कर दीप प्रज्वलन किया ।आचार्य श्री के चरण प्रक्षालन कर जिनवाणी भेंट की।

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