पारसोला(विश्व परिवार)। प्रथमाचार्य चारित्र चक्रवती आचार्य श्री शांतिसागरजी की अक्षुण्ण मूल बाल ब्रह्मचारी पट्ट परम्परा के पंचम पट्टाधीश वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्धमान सागर जी वर्ष 2024 का वर्षायोग सम्पन्न पारसोला में कर पारसोला विराजित है ।दिनांक 5 दिसंबर कोश्रीमती विमला देवी गोहाटी असम आर्यिका श्री जिनेश मति बनी बनी। श्रीमद् जैन धर्म की यही विशेषता है कि इस धर्म में सम्यक दर्शन सम्यक ज्ञान, सम्यक चारित्र को धारण कर कर सिद्ध अवस्था को प्राप्त किया जा सकता है। सम्यक दर्शन और सम्यक ज्ञान के बाद चारित्र अर्थात साधु जीवन अपनाना जरूरी है चर्या में परिवर्तन करना ही दीक्षा है, संसार की दौड़ से दूर होना दीक्षा है ।संसारी प्राणी इच्छाओं से ग्रसित है संसार रुलाता है दीक्षा लेकर शिष्य को गुरु संगति में रहना चाहिए ।जैन धर्म तीर्थंकर भगवान द्वारा प्रतिपादित, अनुमोदित, धारित श्रमण धर्म है। प्रथमाचार्य श्री शांति सागर जी महाराज ने अपने संयम पुरुषार्थ से श्रमण परंपरा को पुनर्स्थापित किया। उत्तर भारत में चातुर्मास कर धर्म प्रभावना ,धर्म जागृति ,और सुप्त हो रही समाज को जागृत किया शिष्य को दीक्षा लेकर गुरु के प्रति कृतज्ञता को दिल में समर्पण भाव के साथ धारण करने से साधना में सफलता मिलती है । यह धर्म देशना आचार्य वर्धमान सागर जी ने दीक्षा के अवसर पर प्रकट की । राजेश पंचोलिया अनुसार आचार्य श्री ने उपदेश में बताया कि यह संसार प्रतिकूल है संयम से संसार को अनुकूल बनाया जाता है और इंद्रियों की दासता दूर की जाती है। शिष्य को गुरु को अपना जीवन समर्पित करना चाहिए ख्याति नाम यश पूजा से दूर रहना चाहिए साधु अपने जीवन में मृत्यु से भयभीत नहीं होता है साधु जीवन में साधना के बल पर मृत्यु पर विजय प्राप्त करता है । दिगंबर जैन दशा हूमड़ समाज एवं वर्षायोग समिति के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित दीक्षा समारोह कार्यक्रम सन्मति भवन सभागार में भगवान और पूर्वाचार्यों का चित्र अनावरण दीप प्रज्वलन दीक्षार्थी परिवार द्वारा किया गया। जयंतीलाल कोठारी अध्यक्ष एवं ऋषभ पचोरी अध्यक्ष चातुर्मास समिति ने बताया कि प्रथमाचार्य चारित्र चक्रवती आचार्य श्री शांति सागर जी एवम पूर्वाचार्यो को अर्ध्य समर्पित विभिन्न नगरों से पधारी समाज द्वारा किया गया।सौभाग्यशाली परिवार की 5 महिलाओं द्वारा चोक पूरण की क्रिया की गई।दीक्षार्थीयो ने आचार्य श्री ने दीक्षा की याचना की तथा आचार्य श्री एवम समस्त साधुओ दीदी भैया श्रावक श्राविकाओं तथा समाज से क्षमा याचना की।वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्धमान सागर जी के पंचामृत से चरण प्रक्षालन का सौभाग्य दीक्षार्थी परिवार को मिला। इस बेला में आचार्य श्री के द्वारा दीक्षार्थी के पंच मुष्ठी केशलोच किये गए तथा दीक्षा संस्कार मस्तक तथा हाथों पर किये गए। इसके बाद आचार्य श्री ने नामकरण किया। विमला देवी का नाम दीक्षा के बाद आर्यिका 105 श्री जिनेश मति किया पुण्यार्जक परिवार द्वारा पिच्छी कमंडल शास्त्र एवम कपड़े भेंट किये गए। आज दीक्षार्थी के केशलोच हो रहे थे, तब सभी वैराग्यमयी पलों से सभी द्रवित हो रहे थे। परिजनों के दोनों नेत्रों में एक नेत्र में खुशी के आंसू दूसरे नेत्र में दुख के आंसू भी थे। भक्तों के भजनों से वातावरण वैराग्य मय हो रहा आचार्य श्री अन्य साधुओं ने दीक्षार्थी के केशलोचन किये।परिजनों एवम अन्य भक्त जिन्हें केशलोच झेलने का अवसर मिला। वह अपने को पुण्यशाली मान रहे थे ।आज प्रातःकाल आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज के दर्शन कर उनके चरणों का प्रक्षालन किया तत्पचात श्रीमती विमला देवी के केशलोचन साधुओं ने किया मंगल स्नान किया। आचार्य संघ सानिध्य में दीक्षार्थी ने श्री जी का पंचामृत अभिषेक किया।आचार्य वर्धमान सागर जी एवं साधुओं को आहार दिया साधुओं के आहार के बाद सन्मति भवन में आचार्य वर्धमान सागर द्वारा दीक्षा संस्कार प्रारंभ हुए।