- दिगंबर जैन संतों की साधना विश्व का आठवां अजूबा
दिल्ली (विश्व परिवार)| परम पूज्य सुरिगच्छाचार्य श्री विराग सागर जी महामुनिराज के परम प्रभावक शिष्य जिनागम पंथ प्रवर्तक “जीवन है पानी की बूंद महाकाव्य” के मूल रचयिता राष्ट्रीय योगी भावलिंगी संत श्रमणाचार्य श्री विमर्श सागर जी महामुनिराज ने अपने विशाल चतुर्विधि संघ के साथ राजधानी दिल्ली के सुप्रसिद्ध श्री दिगंबर जैन लाल मंदिर में विराजमान है।
परम पूज्य आचार्य प्रवर श्री विमर्श सागर जी महामुनिराज ने कल दिनांक 11. 7.2024 को प्रातः केशलोंच की विधि संपन्न की दिगंबर जैन संत परंपरा में केशलोंच उनकी साधना के एक अभिन्न और आवश्यक कर्तव्य है।
क्या हे केशलोंच
दिगंबर जैन मुनि बिना किसी क्लेश के अपने हाथ से ही अपने मस्तक तथा दाढ़ी मूंछों के बालों को उखाड़ कर अलग करने की क्रिया जैन शासन में केशलोंच कहा जाता है दिगंबर जैन साधुओं के 28 मूलगुण में से यह एक मूलगुण है।
केशलोंच के भेद
उत्कृष्ट मध्यम और जो जधन्य के भेद से केशलोंच के तीन प्रकार होते हैं जो लोंच 2 महीने में किया जाता है वह उत्कृष्ट है जो 3 महीने में किया जाता है वह मध्यम है और जो 4 महीने में किया जाता है वह जधन्य केशलोंच कहलाता है सभी दिगंबर जैन मुनि 4 महीने के अंदर – अंदर ही केशलोंच कर लेते हैं कभी चार माह का उल्लंघन नहीं करते।
जैन मुनि क्यों करते हैं केशलोंच
दिगंबर जैन मुनिराजों के पास सलाई मात्रा भी परीग्रह नहीं होता पूर्ण परिग्रह के त्यागी होते हैं अतः क्षौर कर्म नहीं करा सकते कोई अस्त्र हिंसा का कारण होने से पाप से भयभीत मुनि अपने साथ नहीं रखते अतः केशलोंच ही करते हैं।
केशलोंच उपवास पूर्वक
केशलोंच की साधना उस दिन उपवास पूर्ण धारण की जाती है कभी भी जैन मुनिराज उस्तरा आदि से मुंडन नहीं करते दिगंबर जैन मुनियों की कठोर साधना विश्व का आठवां अजूबा है जो सभी के लिए आश्चर्य जनक है।