विचित्र बाते प्रणेता मुनी श्री सर्वार्थ सागर जी ने कहा की
कोल्हापूर(विश्व परिवार) l आचार्य विशुद्धसागर जी महाराज ससंघ ने एक वर्ष के अंतर्गत 7 राज्यों के सीमा को पार किया है l उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, मध्य प्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक और महाराष्ट्र 7 राज्यों में एक साल में विहार होकर आचार्य विशुद्धसागरजी महाराज ससंघ नांदणी चौमासा के लिए मंगल प्रवेश हुआ l
संत ना देखा ऐसा ग्रंथ ना देखा –
भीषण गर्मी में आप और हम अपने घरोसें बाहर नहीं निकलना चाहते हैं, वही धन्य है ये दिगंबर मुद्रा जो कोई भी मौसम हो, कोई भी परिस्थिती हो, अपने चर्या में लिन रहते है l दिगम्बर मुनी बनना आसन काम नहीं है l
सर्वार्थ सागरजी महाराज बताते हैं की कैसे संत है चर्या शिरोमणी आचार्य विशुद्धसागरजी महाराज –
आचार्य विशुद्धसागरजी महाराज ये एक ऐसे संत है जिनकी आध्यात्म की गेहराई से सत्यार्थ का बोध होता है l ये एक ऐसे संत है की जिनकी आगमयुक्त वाणी से एकांतवादीयों के मान का खंडन हो जात है l ये एक ऐसे संत है जिनकी मौन रुपी सत्र से महान से महान कार्य संचारीत हो जाते है l ये एक ऐसे संत है जिनके चरणो में शीतलता मिलती है l जिनकी एक मुस्कुराहट से सारी थकान मीट जाती है l ये वो संत है जिनकी एक छवी से सारे दुःख दर्द मीट जाते है l ये ऐसे संत है जिनके रोम रोम में णमोकार मंत्र की मेहक है l
गुरू के उपकारोंको सदैव स्मरण करना है l बंधुओ क्या आपको पता हैं? आपके यहाँ भगवान महावीर स्वामी के प्रतिनिधी चलकर आए हैं l आपने भगवान महावीर स्वामीजी को तो नहीं देखा, किंतु ये दिगंबर मुद्रा भगवान महावीर स्वामी का दिग्दर्श कराती है l यह हम सबके श्रद्धा के केंद्र, आस्था के देवता और सम्यक पथ को बताने वाले, हमारे गुरू चर्याशिरोमणी आचार्य भगवन विशुद्धसागरजी महाराज हैं l यह हमेशा जिवन में याद रखना हैं l कहते हैं की हृदय का मैल जल से नहीं ; संतों के चरण रज से धुलता हैं l
गुरू की भक्ती करणे से क्या मिलता है यह विचित्र बाते प्रणेता मुनी श्री सर्वार्थ सागरजी ने बताया –
गुरू के दर्शन से पाप नष्ट हो जाते हैं l गुरू के दर्शन से भ्रम नष्ट हो जाते हैं l गुरू के दर्शन से आत्मा को शांती मिलती हैं l गुरू के दर्शन से यशकीर्ती मिळती हैं l गुरू के दर्शन से पुण्य प्राप्त होता हैं l गुरू के दर्शन से अमंगल कार्य भी मंगल हो जात हैं l गुरू के दर्शन से स्वर्ग की प्राप्ती होती हैं l
आचार्य विशुद्धसागर जी गुरुदेव संग मुनीराजोंको जानीए परम पूज्य सर्वार्थ सागरजी मुनीराज के मुखारविंद से –
धरती के ऐसे देवता जो तन से विशुद्ध, मन से विशुद्ध, चर्या से विशुद्ध और चर्चा से विशुद्ध ऐसे वितराग आचार्य भगवन विशुद्ध सागरजी महाराज है l
जो सुव्रत के धारी है, ऐसे ये मुनी सुव्रत सागर जी है l जिनकी देशना सुनकर के सारे प्रश्नोका समाधान हो जाता है वो अनुत्तर सागरजी मुनीराज है l जिनके अंदर नेक की नेक भरा है ऐसे ये प्रणेय है l जिनको देखकर के स्वतः सिद्धी हो जाती है ऐसे ये सर्वार्थ है l जिनकी मुद्रा देखकर के आप स्वयं देखे ये साम्य मुद्रा के धनी है l
बंधूओ ये दृढ संकल्पी है, इन्होने दृढ संकल्प के साथ पुरे विश्व में जैनध्वज को फैराया है इसलिए ये संकल्प है l जिनकी युवा मुद्रा को देखकर के इनके चेहरे में सौम्यता झलकती है इसलिए ये सौम्य है l जिनके कंठ में सरस्वती विद्यमान है ऐसे ये सारस्वत है l
बंधूओ जिन्होने कषाय भावों को जीत लिया है इसलिए ये संजयंत है l जो सदभावों का संदेश फैला रहे है ऐसे ये सद्भाव है l जिनकी यश चहूँ और फैल रही है ऐसे ये यशोधर है l जो निरंतर मुक्तीपथ के लिए यत्न कर रहे है ऐसे ये यत्न है l जो स्वयं निर्ग्रंथ मुद्रा में विराजमान है और जिन्होने 200 ग्रंथो से अधिक ग्रंथो का सृजन किया है ऐसे ये निर्ग्रंथ है l जिनके अंदर किंचित भी मोह नहीं है ऐसे ये निर्मोह है l जो शंका से रहित है ऐसे ये निशंक है l
जिनके अंदर किंचित भी विकल्प नहीं है ऐसे ये निर्विकल्प है l जिन्होने इंद्रीयोंको जीत लिया है ऐसे ये जितेंद्र है l जो नमोस्तु शासन की ध्वजा को फैला रहे है ऐसे ये जयंत हैं l जीनका ज्ञान निर्मल हैं ऐसे ये सुभग है l जो सिद्ध की प्राप्ती के लिए पुरुषार्थ कर रहे है ऐसे ये सिद्ध है l
जो स्वतः मंगलमयी है ऐसे ये सिद्धार्थ है l जो हमेशा मुस्कुराते रहते है ऐसे ये सहर्ष है l जो सत्यार्थ का बोध करा रहे है ऐसे ये सत्यार्थ है l बंधुओ जो सार्थक पर आधीत है ऐसे ये सार्थक है l जो सार्थ पथ के पथक है वो ऐसे सार्थ है l जिनका सम्यग्दर्शन पवित्र है ऐसे ये समकित है l जो सम्यक पथ पर चल रहे है और हम सब को सम्यक पथ पर चला रहे है ऐसे ये सम्यक है l